मरीज के पास जाकर सीखने की घटती प्रवृत्ति चिकित्सा शिक्षा के लिए चुनौती: एम्स निदेशक |

मरीज के पास जाकर सीखने की घटती प्रवृत्ति चिकित्सा शिक्षा के लिए चुनौती: एम्स निदेशक

मरीज के पास जाकर सीखने की घटती प्रवृत्ति चिकित्सा शिक्षा के लिए चुनौती: एम्स निदेशक

:   Modified Date:  September 5, 2024 / 03:48 PM IST, Published Date : September 5, 2024/3:48 pm IST

(पायल बनर्जी)

नयी दिल्ली, पांच सितंबर (भाषा) अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)-दिल्ली के निदेशक डॉ. एम. श्रीनिवास ने कहा है कि मेडिकल छात्रों की ‘गूगल माताजी’ पर अत्यधिक निर्भरता और मरीजों के बिस्तर के पास बैठकर सीखने की घटती प्रवृत्ति देश की चिकित्सा शिक्षा प्रणाली के लिए अहम चुनौतियां हैं।

दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. श्रीनिवास ने पीटीआई संपादकों के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि चिकित्सा शिक्षा में सुधार और कौशल विकास आवश्यकता है क्योंकि मानव का निरंतर विकास हो रहा है।

उन्होंने कहा, ‘यह राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) का काम है जो देश की चिकित्सा शिक्षा पर गौर करता है। लेकिन दिल्ली एम्स में हमें एक फायदा है। चूंकि हम एनएमसी के दायरे में नहीं हैं, इसलिए हम शिक्षण और सीखने के तरीकों में खुद से थोड़े बहुत बदलाव और नए प्रयोग कर सकते हैं।’

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रीनिवास ने इस बात को रेखांकित किया कि बड़ी संख्या में छात्र कक्षाओं में उपस्थित नहीं हो रहे हैं और इसके बदले वे यह सोचकर इंटरनेट से सलाह ले रहे हैं कि ‘‘गूगल माताजी उन्हें शिक्षकों से अधिक सिखाएंगी।’

उन्होंने पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने पर छात्रों के बढ़ते ध्यान को लेकर भी चिंता जतायी। उन्होंने कहा कि ‘इसका मतलब है कि आप मरीज के बिस्तर के पास बैठकर सीखने को कम महत्व देते हैं। छात्रों के रूप में हमने वार्ड, आकस्मिक विभाग और ऑपरेशन थियेटर में मरीजों से और साथ ही वरिष्ठों और शिक्षकों से अधिक सीखा है।’

उन्होंने कहा, ‘‘अब शुरू से ही छात्रों का ध्यान पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने और पीजी और सुपर-स्पेशियलिटी प्रवेश परीक्षाएं पास करने पर है। फिर ये निजी पाठ्यक्रम सामने आए, ये ट्यूटोरियल और विभिन्न एजेंसियां…जिनसे छात्र गुजरते हैं और यह हमारे लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।’’

श्रीनिवास ने कहा कि जितना संभव हो सके, छात्रों को कक्षाओं में उपस्थित होने, अस्पतालों का दौरा करने और मरीजों के बिस्तर के पास रहकर सीखने पर जोर देना चाहिए। मरीजों से सीखना केवल ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि यह बातचीत के तरीकों से भी संबंधित है, जिसमें उनसे बात करना, सहानुभूति रखना और मरीज को केवल बीमारी के इलाज के लिए नहीं बल्कि एक परिवार के रूप में देखना शामिल है।’’

चिकित्सा क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग पर, डॉ. श्रीनिवास ने कहा कि यह बहुत उपयोगी होने वाला है, खासकर भारतीय संदर्भ में, इसकी विशाल आबादी के कारण।

श्रीनिवास ने कहा कि दिल्ली एम्स के अधिकतर विभाग पहले से ही निदान और रोगी-केंद्रित सेवाओं में एआई को शामिल कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘आज हमारे पास एक्स-रे में एआई है। एक रेजिडेंट डॉक्टर एक दिन में 300 एक्स-रे देख सकता है और एआई हमें यह बताने में मदद करेगा कि यह सामान्य एक्स-रे है, टीबी एक्स-रे है या कैंसर के मरीज़ का एक्स-रे है।’’

उन्होंने स्पष्ट किया, ‘मान लीजिए कि अगर किसी को तुरंत शुरुआती मदद की ज़रूरत है, तो हमें अलर्ट मिलेगा कि इस मरीज़ को तुरंत ज़रूरत है।’

डॉ. श्रीनिवास ने बताया कि किस प्रकार जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां एक बड़ी चुनौती बनती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि अपेंडिसाइटिस, हैजा और टाइफाइड से लोगों का मरना दुर्लभ है और ‘‘हमने काफी हद तक उन्हें नियंत्रित कर लिया है। लेकिन जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां अब जान ले रही हैं। हम ज़्यादातर बीमारियों के मामले में नंबर वन बन गए हैं। चाहे वह मधुमेह हो, उच्च रक्तचाप हो या मोटापा, कैंसर, इनकी संख्या विभिन्न कारणों से बढ़ रही है।’

उन्होंने कहा कि सबसे पहले ये जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां हैं, दूसरा जनसंख्या बढ़ रही है, और तीसरा जीवनकाल बढ़ रहा है।

उन्होंने यह भी बताया कि मीडिया आम जनता तक पहुंचने और उन्हें अच्छे आहार और सही जीवनशैली के बारे में शिक्षित करने में अहम भूमिका निभा सकता है।

भाषा

अविनाश मनीषा नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)