नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 2023 में रांची में प्रदर्शनों को लेकर झारखंड के भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) नेताओं और सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली झारखंड सरकार की याचिका सोमवार को खारिज करते हुए कहा कि जब भी कोई विरोध प्रदर्शन होता है तो निषेधाज्ञा का दुरुपयोग किया जाता है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा कि वह उच्च न्यायालय के 14 अगस्त, 2024 के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती।
झारखंड सरकार की ओर से पेश वकील ने सुनवाई की शुरुआत में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद आरोपियों ने विरोध प्रदर्शन किया जो हिंसक हो गया और प्रशासनिक अधिकारियों सहित कई लोग घायल हो गए।
वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय ने गलत निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि उन्हें विरोध करने का अधिकार है।
शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि आजकल जब भी कोई विरोध प्रदर्शन होता है तो निषेधाज्ञा लागू करने का चलन बन गया है।
उसने कहा, ‘‘अगर हम हस्तक्षेप करते हैं तो इससे गलत संदेश जाएगा। अगर कोई प्रदर्शन करना चाहता है तो सीआरपीसी की धारा 144 के तहत आदेश जारी करने की क्या जरूरत है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सीआरपीसी की धारा 144 का दुरुपयोग किया जा रहा है।’’
वकील ने कहा कि प्रदर्शन हिंसक हो गया और पथराव किया गया।
भाजपा नेताओं ने 11 अप्रैल, 2023 को रांची में विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें 5,000 से अधिक लोगों ने उस समय भाग लिया जब सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू थी।
उच्च न्यायालय ने पिछले साल अगस्त में भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करते हुए कहा था कि शांतिपूर्ण विरोध और प्रदर्शन आदि करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 19(1)(बी) के तहत प्रदत्त लोगों का मौलिक अधिकार है।
भाषा सिम्मी नरेश
नरेश
Follow us on your favorite platform:
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)