(माणिक गुप्ता)
कोझिकोड, 24 जनवरी (भाषा) पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) शिवशंकर मेनन ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सियासी रुख के चलते ‘शत्रुता के एक नियंत्रित स्तर’ की स्थिति है जो दोनों देशों के कुलीन वर्ग के हित में है।
यहां बृहस्पतिवार को केरल साहित्य महोत्सव (केएलएफ) के आठवें संस्करण में बोलते हुए मेनन ने पाकिस्तान को एक ‘बिल्कुल नया देश’ बताया जो अब भी अपनी राष्ट्रीय पहचान से जूझ रहा है।
उन्होंने तर्क दिया कि फिजी या डेनमार्क जैसे देशों के विपरीत भारत की पाकिस्तान के प्रति एक सुसंगत विदेश नीति नहीं हो सकती, क्योंकि उनके संबंध भारत की घरेलू राजनीति से प्रभावित होते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘शत्रुता का एक नियंत्रित स्तर है। आप शत्रुता चाहते हैं क्योंकि यह आपके राजनीतिक पदों को उचित ठहराता है और घर में आपके राजनीतिक हित को पूरा करता है। इसलिए आपने खुद को एक अजीब स्थिति में ला दिया है जो स्थिर है। उदाहरण के लिए, 2003 का युद्धविराम जिसे चार साल पहले दोबारा लागू किया गया, वह बरकरार है।’’
मेनन ने ‘भारत और विश्व: एशिया में भू-राजनीति’ विषयक सत्र में कहा, ‘‘नियंत्रण रेखा पर शांति है। इसलिए, यह एक अच्छा रिश्ता नहीं है लेकिन आप इस अजीब संतुलन को बनाए रखने में काफी खुश हैं।’’
पाकिस्तान के जटिल पहचान संकट के बारे में अपने विचार साझा करते हुए 75 वर्षीय मेनन ने कहा कि यह देश अब भी राष्ट्रीय पहचान बनाने की प्रक्रिया में है।
पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में काम कर चुके मेनन ने एक किस्सा साझा किया जब पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जिया उल-हक ने पाकिस्तान के इस्लामीकरण के लिए उनके तर्क के बारे में पूछने पर कहा कि एक मिस्रवासी इस्लाम छोड़ दे तो भी वह मिस्र का समझा जाएगा, लेकिन इस्लाम छोड़ने वाले पाकिस्तानी को भारतीय समझे जाने का जोखिम होगा।
उन्होंने पाकिस्तान की कई पहचानों के बारे में भी बात की, जिनमें उसकी सेना, जिहादी गुटों और नागरिक समाज द्वारा गढ़ी गई पहचानें शामिल हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘कई पाकिस्तान हैं, सेना का पाकिस्तान है, जिहादी ताकतों का पाकिस्तान है और हमें उनसे असली समस्या है, क्योंकि भारत के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों में उनका संस्थागत हित है। लेकिन पाकिस्तानी राजनेता, नागरिक राजनेता, वहां जाएंगे जहां उनका फायदा उन्हें ले जाएगा।’’
उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी नागरिक समाज की भारत के प्रति कोई शत्रुता नहीं है।
भारत-पाकिस्तान संबंधों से हटकर व्यापक वैश्विक व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करते हुए मेनन ने यह कहकर कुछ लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया कि उन्हें विश्वास नहीं है कि हम ‘बहुध्रुवीय दुनिया’ में रह रहे हैं। उन्होंने तर्क दिया कि इस धारणा को अक्सर सरकारों द्वारा प्रचारित किया जाता है जो ‘‘अपने देशों को भविष्य की संभावित सत्ता के ध्रुवों के रूप में स्थापित करके खुद की पीठ थपथपाते हैं।’’
मेनन ने बताया कि केवल अमेरिका ही विश्व स्तर पर, जब भी और जहां भी चाहे, अपनी सैन्य शक्ति प्रदर्शित करने की क्षमता रखता है, जो सही मायने में दुनिया में उसके सैन्य आधिपत्य को स्थापित करता है। उन्होंने कहा कि 10 साल बाद का कोई नहीं जानता, लेकिन आज का विश्व सैन्य लिहाज से एकध्रुवीय है।
चार दिवसीय साहित्यिक उत्सव 26 जनवरी को समाप्त होने वाला है और इसमें छह लाख से अधिक आगंतुकों के शामिल होने की उम्मीद है।
भाषा संतोष माधव
माधव
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)