बंगाल में दोराहे पर कांग्रेसः अस्तित्व का संकट गठबंधन व पुनरुत्थान योजनाओं पर मतभेदों को बढ़ा रहा

बंगाल में दोराहे पर कांग्रेसः अस्तित्व का संकट गठबंधन व पुनरुत्थान योजनाओं पर मतभेदों को बढ़ा रहा

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  • Publish Date - March 28, 2025 / 04:11 PM IST,
    Updated On - March 28, 2025 / 04:11 PM IST

(प्रदीप्त तापदार)

कोलकाता, 29 मार्च (भाषा) पश्चिम बंगाल में अस्तित्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस 2026 के विधानसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति को लेकर बंटी हुई है और उसमें तीन गुट उभर रहे हैं। पहला धड़ा तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन की वकालत कर रहा है, दूसरा वाम मोर्चे के साथ निरंतर समायोजन का पक्षधर है जबकि तीसरा पार्टी के पुनरुत्थान के लिए अकेले चुनाव लड़ने पर जोर दे रहा है।

बंगाल में कांग्रेस अपने नेताओं के तृणमूल और भाजपा में चले जाने तथा लगातार अंदरूनी कलह के कारण कमजोर संगठनात्मक ढांचे से जूझ रही है।

पार्टी को आखिरी महत्वपूर्ण चुनावी सफलता 2011 में मिली थी, जब तृणमूल के साथ गठबंधन करके उसने वाम मोर्चे के 34 साल के शासन को समाप्त करने में भूमिका निभाई थी।

कांग्रेस का वोट शेयर 2011 में 14 प्रतिशत था जो 2021 के विधानसभा चुनाव में घटकर तीन प्रतिशत रह गया और फिलहाल विधानसभा में कांग्रेस का कोई विधायक नहीं है।

कांग्रेस के भीतर एक धड़े का मानना ​​है कि ऐतिहासिक गठबंधनों ने पार्टी को केवल कमजोर ही किया है।

इस धड़े ने 2009 के लोकसभा चुनाव और 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन को दोषी ठहराया और तर्क दिया कि इसने इस सबसे पुरानी पार्टी को कमजोर कर दिया क्योंकि इसके कई नेता ममता बनर्जी के खेमे में चले गए।

इस धड़े ने इसी तरह 2016 में बने कांग्रेस-वाम गठबंधन की भी यह कहते हुए आलोचना की कि कांग्रेस के जमीनी जनाधार को फिर से खड़ा करने के बजाय सीट-बंटवारे को प्राथमिकता दी गयी।

पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने मौजूदा मतभेदों पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘यह सच है कि हम बंगाल में राजनीतिक अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं। प्रदेश इकाई अब तीन मतों पर विभाजित है – क्या वामपंथियों के साथ बने रहना है, तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन करना है, या अकेले चुनाव लड़ना है। हालांकि, मेरा मानना ​​है कि हमें संबंधित गठबंधन के लिए वामपंथियों के साथ बने रहने से लाभ होगा।’’

इसके विपरीत, दूसरे गुट ने तर्क दिया कि राज्य में अपनी मौजूदा कमज़ोर उपस्थिति को देखते हुए कांग्रेस 2026 का विधानसभा चुनाव अकेले नहीं लड़ सकती। वे सीट बंटवारे के लिए ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को एकमात्र व्यवहार्य विकल्प मानते हैं।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शुभंकर सरकार गठबंधन पर कोई भी निर्णय लेने से पहले पार्टी के आधार को मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं।

उन्होंने कहा,‘‘कांग्रेस को वर्षों तक नुकसान उठाना पड़ा है क्योंकि गठबंधनों ने हमारी नहीं बल्कि अन्य साझेदारों की मदद की है। मेरा काम राज्य भर में पार्टी की उपस्थिति बढ़ाना है। केवल तभी हम चुनाव में गठबंधन या अकेले जाने पर चर्चा कर सकते हैं।’’

उन्होंने तृणमूल के साथ गठबंधन करने के तुक पर सवाल उठाते हुए कहा कि बंगाल में इसने पार्टी को ‘बर्बाद’ कर दिया है। उन्होंने दावा किया कि वामपंथियों के साथ गठबंधन से सीट-बंटवारे की व्यवस्था से परे कांग्रेस को कोई लाभ नहीं मिला।

वैसे तीनों पार्टियां – कांग्रेस, वाम और तृणमूल – राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस-वाम गठबंधन तृणमूल और भाजपा दोनों का विरोध करता है।

राज्य में 2011-2021 के दौरान कांग्रेस की उपस्थिति में लगातार गिरावट आई है, जब लगभग 70 विधायक और एक सांसद तृणमूल में चले गए।

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2019 के 5.6 प्रतिशत से घटकर 4.6 प्रतिशत रह गया और पार्टी को सिर्फ़ एक सीट मिली।

कांग्रेस के एक प्रमुख नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी वाम-कांग्रेस गठबंधन को बनाए रखने के प्रबल समर्थक रहे हैं।

उन्होंने रेखांकित किया कि कांग्रेस-वाम गठबंधन ने 2024 के लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है, जिसमें कांग्रेस ने 12 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई, यहां तक ​​कि उन क्षेत्रों में वोटों के मामले में तृणमूल और भाजपा दोनों से आगे रही।

चौधरी ने कहा, ‘पिछले लोकसभा चुनाव में हम 12 विधानसभा सीटों पर आगे रहे। वाम दलों और कांग्रेस के संयुक्त प्रयास से हमें यह हासिल करने में मदद मिली है। हमें अपनी आगे की राह का मूल्यांकन करते समय इन सकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।’

कांग्रेस संयुक्त मोर्चा सरकार के संक्षिप्त काल को छोड़कर 1977 तक राज्य में सत्तारूढ़ रही।

भाषा राजकुमार पवनेश

पवनेश