नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन ने कहा है कि ‘ग्लोबल साउथ’ में जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए विकसित देशों से वित्तीय सहायता की कमी विकासशील देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों पर ‘पुनर्निर्धारित’ करने के लिए प्रेरित कर सकती है।
शुक्रवार को संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा 2024-25 में, नागेश्वरन ने कहा कि विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए अजरबैजान में 2024 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी 29) में जिस नए वित्तीय पैकेज पर सहमति बनी थी, उससे ‘बहुत कम आशा’ है।
इसमें कहा गया कि देशों को अब 10 फरवरी तक 2031 और 2035 के बीच की अवधि के लिए अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या जलवायु योजनाएं प्रस्तुत करनी हैं।
नागेश्वरन ने कहा, ‘‘वित्त पोषण की कमी से जलवायु लक्ष्यों पर फिर से काम करना पड़ सकता है’’।
साल 1992 में अपनाए गए जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र रूपरेखा समझौता (यूएनएफसीसीसी) के अनुसार, उच्च आय वाले औद्योगिक राष्ट्र, जो ऐतिहासिक रूप से जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार रहे हैं, को विकासशील और कम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं को वित्त, प्रौद्योगिकी तथा क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि उन्हें दुनिया से तापमान वृद्धि से निपटने में मदद मिल सके।
इन देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और यूरोपीय संघ के सदस्य देश जैसे जर्मनी और फ्रांस शामिल हैं।
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि विकसित देशों से समर्थन की कमी के बीच घरेलू संसाधन जलवायु कार्रवाई की कुंजी होंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, विकास चुनौतियों का सामना करने के लिए संसाधन प्रभावित हो सकते हैं, जिससे सतत विकास उद्देश्यों की दिशा में प्रगति कम हो सकती है और ‘अंतरराष्ट्रीय जलवायु साझेदारी की अखंडता से समझौता’ हो सकता है।’’
नागेश्वरन ने कहा कि 2035 तक सालाना 300 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का छोटा सा लक्ष्य 2030 तक 5.1-6.8 हजार अरब डॉलर की अनुमानित आवश्यकता का एक ‘अंश’ मात्र है।
भाषा वैभव माधव
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)