जलवायु परिवर्तन से गेहूं, चावल की पैदावार में 10 प्रतिशत तक की कमी आएगी : अधिकारियों ने चेताया |

जलवायु परिवर्तन से गेहूं, चावल की पैदावार में 10 प्रतिशत तक की कमी आएगी : अधिकारियों ने चेताया

जलवायु परिवर्तन से गेहूं, चावल की पैदावार में 10 प्रतिशत तक की कमी आएगी : अधिकारियों ने चेताया

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Modified Date: January 9, 2025 / 04:10 PM IST
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Published Date: January 9, 2025 4:10 pm IST

(गौरव सैनी और सागर कुलकर्णी)

नयी दिल्ली, नौ जनवरी (भाषा) जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत के चावल और गेहूं उत्पादन में 6-10 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है, जिससे लाखों लोगों के लिए सस्ते भोजन तक पहुंच प्रभावित होगी। वरिष्ठ अधिकारियों ने यह बात कही।

अधिकारियों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन का एक अन्य प्रभाव यह है कि समुद्र तट के पास समुद्र का पानी गर्म हो रहा है, जिससे मछलियां गहरे समुद्र के ठंडे पानी की ओर जाने को मजबूर हो रही हैं। उन्होंने कहा कि इसका असर मछुआरा समुदाय पर भी पड़ रहा है।

भारत का गेहूं उत्पादन 2023-24 फसल वर्ष में 11.329 करोड़ टन तक पहुंच गया था, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 14 प्रतिशत था, जबकि चावल की फसल 13.7 करोड़ टन से अधिक थी। चावल और गेहूं देश की 1.4 अरब आबादी के लिए मुख्य आहार हैं, जिनमें से 80 प्रतिशत लोग विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से सब्सिडी वाले खाद्यान्न पर निर्भर हैं।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन से गेहूं और चावल की पैदावार में 6 से 10 प्रतिशत की कमी आएगी, जिसका देश के किसानों और खाद्य सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।’’

उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति और तीव्रता भी कम हो रही है, जिसके कारण उत्तर-पश्चिमी भारत में सर्दियों में बारिश और बर्फबारी होती है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. रविचंद्रन ने महापात्र के साथ ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा कि इससे निकट भविष्य में हिमालय और उसके नीचे के मैदानी इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है।

जलवायु अनुकूल कृषि राष्ट्रीय नवाचार (एनआईसीआरए) के अनुसार, भारत में गेहूं की पैदावार में वर्ष 2100 तक 6-25 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है। वहीं, चावल की पैदावार में वर्ष 2050 तक सात प्रतिशत और वर्ष 2080 तक 10 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है।

सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में लगभग आधी आबादी कृषि पर निर्भर है और 80 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे तथा सीमांत किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है।

रविचंद्रन ने कहा कि समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण तट के पास मछली पकड़ने की गतिविधियों में कमी आ रही है। उन्होंने कहा, ‘‘मनुष्यों की तरह मछलियां भी ठंडे पानी को पसंद करती हैं। जैसे-जैसे-जैसे समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, मछलियां तट से दूर ठंडे पानी की ओर जा रही हैं। यह मछुआरा समुदाय के लिए बड़ी समस्याएं पैदा कर रहा है और उनकी आजीविका को प्रभावित कर रहा है।’’

रविचंद्रन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के चलते वातावरण में अस्थिरता बढ़ने के कारण मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल होता जा रहा है।

अब मौसम की कई चरम घटनाएं छोटे क्षेत्रों में कम समय में एक साथ घटित हो रही हैं।

महापात्र ने कहा, ‘‘एक अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारी वर्षा का पूर्वानुमान व्यक्त करने के लिए लगने वाला समय तीन दिन से घटकर डेढ़ दिन हो सकता है।’’

भाषा शफीक नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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