जलवायु परिवर्तन को नजरंदाज नहीं किया जा सकता: प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ |

जलवायु परिवर्तन को नजरंदाज नहीं किया जा सकता: प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़

जलवायु परिवर्तन को नजरंदाज नहीं किया जा सकता: प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़

:   Modified Date:  July 2, 2024 / 07:15 PM IST, Published Date : July 2, 2024/7:15 pm IST

नयी दिल्ली, दो जुलाई (भाषा) प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली में हाल में पड़ी भीषण गर्मी के बाद भारी बारिश की ओर इशारा करते हुए मंगलवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए ‘हरित जीवन शैली’ अपनाने की आवश्यकता है।

सीजेआई राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कड़कड़डूमा, शास्त्री पार्क और रोहिणी में निचली अदालत भवनों के लिए आधारशिला रखने के वास्ते आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा, ‘‘इस साल दिल्ली ने सबसे गर्म मौसम का अनुभव किया। हमने दो उष्ण लहर के बाद एक ही दिन में रिकॉर्ड बारिश का सामना किया। हमारा बुनियादी ढांचा उस वास्तविकता को प्रतिबिंबित करना चाहिए, जिसमें हम रहते हैं – जलवायु परिवर्तन को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’’

उन्होंने कहा, ‘‘एक महत्वपूर्ण कदम हमारे दैनिक जीवन में हरित जीवनशैली को शामिल करना है, जिसमें कार्बन उत्सर्जन को कम करना शामिल है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि नयी इमारतें पर्यावरण अनुकूल होंगी और इसका निर्माण इस तरह से किया जाएगा, ताकि वे कम गर्मी अवशोषित करें।’’

सीजेआई ने 18वीं सदी के एक मामले का उल्लेख किया, जिसमें राम कामति के सेवक को उसके नियोक्ता के अपराध को कबूल करने के लिए हिरासत में यातना दी गई थी, यहां तक ​​कि कामति को इस मामले में दोषी भी ठहराया गया था और बाद में जेल में उनकी मृत्यु हो गई।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हमारी कानूनी और संवैधानिक प्रणाली मूल रूप से न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के गुणों पर आधारित है। अदालतें इन मूलभूत गुणों की संरक्षक हैं। हम अधिकार-आधारित मूल कानूनों और निष्पक्षता-आधारित प्रक्रियात्मक कानूनों को लागू करके उन्हें कायम रखते हैं।’

उन्होंने कहा कि उस मामले में बाद में यह बात सामने आयी कि दोषी के खिलाफ सबूत गढ़े गए थे।

उन्होंने कहा, ‘राम कामति की कहानी हमें याद दिलाती है कि कठोर, तत्पर और सहज न्याय कानून के शासन और प्रक्रियात्मक गारंटी के लिए अभिशाप है। अदालत का आधार मजबूत होना चाहिए – इसकी संरचनात्मक और दार्शनिक क्षमता दोनों में। इसे संविधान के अलावा किसी और की सेवा नहीं करनी चाहिए और इसे केवल वादियों की सेवा करनी चाहिए।’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालतें केवल संप्रभु सत्ता के दर्शनीय स्थल नहीं हैं, बल्कि आवश्यक सार्वजनिक सेवा प्रदाता भी हैं।

आधारशिला रखते हुए उन्होंने कहा, ‘सभी इमारतों की तरह अदालत परिसर भी केवल ईंटों और कंक्रीट से नहीं बने होते। वे उम्मीदों से बने होते हैं। अदालतें न्याय और कानून के शासन के गुणों को समझने के लिए बनाई गई हैं। हमारे सामने दायर किया जा रहा हर मामला न्याय की इसी उम्मीद के साथ है। जब हम अपने न्यायाधीशों, वकीलों और वादियों की सुरक्षा, पहुंच और आराम के लिए कदम उठाते हैं, तो हम न केवल एक कुशल प्रणाली का निर्माण करते हैं – बल्कि हम एक न्यायपूर्ण और समावेशी प्रणाली भी बनाते हैं।’

उन्होंने कहा कि नए परिसर अदालतों की दक्षता बढ़ाएंगे और लंबित मामलों की संख्या कम करेंगे।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अदालत मिसालों का भंडार और सामाजिक इतिहास का संग्रह हैं। न्यायाधीश वर्तमान कानून को लागू करते हैं, भविष्य के कानून को आकार देने के लिए पिछले कानून का सहारा लेते हैं। अपने फैसलों के माध्यम से, वे ऐतिहासिक कानूनी सिद्धांतों को समकालीन मुद्दों से जोड़ते हैं और भविष्य के लिए कानूनी परिदृश्य तैयार करते हैं।’

समारोह में प्रधान न्यायाधीश के अलावा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली, दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना, दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और दिल्ली की मंत्री आतिशी भी उपस्थित थीं।

भाषा अमित नरेश दिलीप

दिलीप

 

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