सीजेआई ने भारत की विविधता को संरक्षित करने के साधन के रूप में 'संवैधानिक नैतिकता' को रेखांकित किया |

सीजेआई ने भारत की विविधता को संरक्षित करने के साधन के रूप में ‘संवैधानिक नैतिकता’ को रेखांकित किया

सीजेआई ने भारत की विविधता को संरक्षित करने के साधन के रूप में 'संवैधानिक नैतिकता' को रेखांकित किया

:   Modified Date:  June 29, 2024 / 04:52 PM IST, Published Date : June 29, 2024/4:52 pm IST

कोलकाता, 29 जून (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने भारतीय न्यायशास्त्र में ‘संवैधानिक नैतिकता’ लागू करने के महत्व पर जोर देते हुए शनिवार को विविधता, समावेशिता और सहिष्णुता सुनिश्चित करने के लिए अदालतों की प्रतिबद्धता पर जोर दिया।

राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी (पूर्वी क्षेत्र) के दो-दिवसीय क्षेत्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में सीजेआई चंद्रचूड़ ने न्याय वितरण प्रणाली में तकनीकी प्रगति के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित किया।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने सरकार पर एक निरोधक कारक के रूप में ‘संवैधानिक नैतिकता’ की धारणा पर विस्तार से बात की जिसे संविधान के प्रस्तावना मूल्यों से प्राप्त किया जाना चाहिए।

उन्होंने देश के संघीय ढांचे को रेखांकित किया, जो ‘बहुत अधिक विविधता से भरा है।’’ सीजेआई ने ‘‘भारत की विविधता को संरक्षित करने’’ में न्यायाधीशों की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया।

सीजेआई चंद्रचूड़ ने ‘समकालीन न्यायिक विकास और कानून एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से न्याय को मजबूत करना’ शीर्षक वाले सम्मेलन में कहा, ‘जब लोग अदालतों को न्याय का मंदिर कहते हैं तो मैं मौन हो जाता हूं, क्योंकि इसका मतलब होगा कि न्यायाधीश देवता हैं, जो वे नहीं हैं। वे इसके बजाय लोगों के सेवक हैं, जो करुणा और सहानुभूति के साथ न्याय करते हैं।’’

सीजेआई ने न्यायाधीशों को ‘संविधान के स्वामी नहीं, सेवक’ बताते हुए न्यायपालिका को संविधान में निहित मूल्यों के विपरीत निर्णयों में हस्तक्षेप करने वाले न्यायाधीशों के व्यक्तिगत मूल्यों और विश्वास प्रणालियों के नुकसान के बारे में चेतावनी दी।

उन्होंने कहा, ‘‘हम संवैधानिक व्याख्या के विशेषज्ञ हो सकते हैं, लेकिन न्यायपूर्ण समाज की स्थापना अदालत के संवैधानिक नैतिकता के दृष्टिकोण से ही होती है।’

नागरिकों को न्याय का प्रभावी वितरण सुनिश्चित करने में तकनीकी सहायता की आवश्यकता पर सीजेआई ने कहा, ‘‘विचार यह नहीं होना चाहिए कि केवल आधुनिकीकरण के नाम के लिए आधुनिकीकरण करना है। यह कुछ इच्छित चीज के लिए सहयोग की दिशा में एक कदम है।’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने स्वतंत्रता के बाद से उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए 37,000 से अधिक निर्णयों को अंग्रेजी से संविधान के तहत मान्यता प्राप्त सभी क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिए चल रहे कार्य में सहायता करने वाले एआई-सहायता प्राप्त सॉफ़्टवेयर की बात की।

उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के डिजिटल प्रारूप को सभी के लिए निःशुल्क उपलब्ध कराना, वादियों को यात्रा संबंधी राहत प्रदान करने के लिए अदालतों तक विकेन्द्रीकृत पहुंच, अदालत प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना और मामलों का वर्गीकरण करना भी प्रभावी न्याय में सहायता करने वाले प्रौद्योगिकी-संचालित उपायों में से कुछ हैं, जिनके बारे में प्रधान न्यायाधीश ने बात की।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कार्यक्रम में विशेष संबोधन देते हुए न्यायपालिका के सदस्यों से यह सुनिश्चित करने की अपील की कि न्याय वितरण प्रणाली में राजनीतिक पूर्वाग्रह का हस्तक्षेप न हो।

बनर्जी ने कहा, ‘न्यायपालिका ईमानदार और पवित्र होनी चाहिए। मेरा मानना ​​है कि न्यायपालिका लोगों की है, लोगों द्वारा है और लोगों के लिए है। यदि न्यायपालिका लोगों को न्याय नहीं दे सकती, तो कौन दे सकता है? यह न्याय पाने का अंतिम मोर्चा है और हमारे देश के लोकतंत्र और हमारे संविधान को बचाने का अंतिम सहारा है।’

कलकत्ता उच्च न्यायालय और पश्चिम बंगाल न्यायिक अकादमी के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टी एस शिवज्ञानम भी मौजूद थे।

भाषा अमित सुरेश

सुरेश

 

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