Chhath Puja Surya Arghya

Chhath Puja Surya Arghya : देशभर में छठ पर्व की धूम.. महिलाएं दे रहीं उगते सूर्य को अर्घ्य, घाटों पर उमड़ा आस्था का जनसैलाब

Chhath Puja Surya Arghya : कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि नहाय खाय से लेकर सप्तमी तिथि उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक छठ पर्व मनाया जाता है।

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Modified Date: November 8, 2024 / 07:37 AM IST
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Published Date: November 8, 2024 7:27 am IST

नई दिल्ली। Chhath Puja Surya Arghya : कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि नहाय खाय से लेकर सप्तमी तिथि उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक छठ पर्व मनाया जाता है। इस दौरान भगवान भास्कर और छठी मैया की पूजा अर्चना की जाती है। छठ पूजा खास तौर पर संतान की कामना और लंबी उम्र के लिए की जाती है। छठी मैया सूर्यदेव की बहन हैं और इस पर्व पर इन दोनों की ही पूजा अर्चना की जाती है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में सात्विक भोजन किया जाता है। यूपी बिहार के लोग इस पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

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वहीं आज उगते हुए ​सूरज को अर्घ्य दिया जा रहा है। कई राज्यों के घाटों पर भक्तों का जन सैलाब देखा जा रहा हैं। नई दिल्ली से लेकर पटना तक सभी नदी, तलाबों के घाट भरे हुए हैं। छठ पूजा के अवसर पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए रांची के एक घाट पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हुए।

ऊषा अर्घ्य का महत्व

छठ पूजा का अंतिम और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उदित होते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इसके बाद सूर्य भगवान और छठ मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं। इस पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध, जल और प्रसाद से व्रत का पारण करती हैं।

रवि योग में दिया जाएगा उषाकालीन अर्घ्य

आज छठ पूजा का उषाकालीन अर्घ्य रवि योग में दिया गया। आज रवि योग सुबह में 6 बजकर 38 मिनट से दोपहर 12 बजकर 3 मिनट तक है। आज के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग दोपहर में 12 बजकर 3 मिनट से है, जो कल सुबह 6 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। सूर्य अर्घ्य के समय उत्तराषाढा नक्षत्र है, जो दोपहर 12 बजकर 3 मिनट तक है।

छठ पूजा की कथा

छठ पर्व से जुड़ी कथा के अनुसार बताया जाता है कि, राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी जिसके चलते वह बेहद ही परेशान और दुखी रहा करते थे। एक बार महर्षि कश्यप ने राजा से संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महाराज जी की आज्ञा मानकर राजा ने यज्ञ कराया जिसके बाद राजा को एक पुत्र हुआ भी लेकिन दुर्भाग्य से वो बच्चा मृत पैदा हुआ। इस बात को लेकर राजा और रानी और उनके और परिजन और भी ज्यादा दुखी हो गए। तभी आकाश से माता षष्ठी आई।

राजा ने उनसे प्रार्थना की और तब देवी षष्ठी ने उनसे अपना परिचय देते हुए कहा कि, ‘मैं ब्रह्मा के मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं इस विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और जो लोग निसंतान हैं उन्हें संतान सुख प्रदान करती हूं।’ इसके बाद देवी ने राजा के मृत शिशु को आशीष देते हुए उस पर अपना हाथ फेरा जिससे वह तुरंत ही जीवित हो गया। यह देखकर राजा बेहद ही प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी षष्ठी की आराधना प्रारंभ कर दी। कहा जाता है कि इसके बाद ही छठी माता की पूजा का विधान शुरू हुआ।

 

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