Chandrayaan-3 launching date : नई दिल्ली। चंद्रमा की सतह पर भारतीय अंतरिक्ष यान के सफलतापूर्वक उतरने की उम्मीद इस समय सभी देशवासियों को है। इस उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए इसरो कई वर्षों से प्रयासरत है। वर्ष 2019 में भी एक बार प्रयास किया गया था लेकिन सफलता नहीं मिली थी। फिर दोबारा इसरो चंद्रयान- 3 के जरिये चंद्रमा के सतह की जानकारी जुटाने को तैयार है। बता दें कि इसी महीने की 14 तारीख को भारतीय समयानुसार दो बजकर, पैंतीस मिनट (14:35) पर यान को एलवीएम- 3 रॉकेट के जरिये छोड़ा जायेगा। अभियान के सफल होते ही चंद्रमा की सतह पर अंतरिक्ष यान उतारने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन जायेगा।
चंद्रमा के बारे में पहले की अपेक्षा और गहन जानकारी जुटाने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का बहुप्रतीक्षित चंद्र अभियान, चंद्रयान- 3 लॉन्च के लिए पूरी तरह तैयार है। इसरो की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह यान 14 जुलाई, 2023 को भारतीय समयानुसार दो बजकर, पैंतीस मिनट (14:35 घंटे) पर सेकेंड लॉन्च पैड, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र-एसएचएआर, श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से छोड़ा जायेगा। इस यान का विद्युत परीक्षण पूरा हो चुका है। इस वर्ष के आरंभ में चंद्रयान- 3 ने अपनी सभी आवश्यक जांच पूरी कर ली और यह उन सभी परिस्थितियों में खरा उतरा है जो प्रक्षेपण के दौरान सामने आती हैं।
चंद्रयान- 3 एक अंतरिक्ष यान है, जो चंद्रयान- 2 का फॉलो ऑन मिशन, यानी अनुवर्ती अभियान है। दूसरे शब्दों में कहें, तो चंद्रयान- 3, चंद्रयान- 2 के बाद का अभियान है जो चंद्र सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और रोविंग की अपनी क्षमता प्रदर्शित करेगा और चंद्रमा की सतह से जुड़ी तमाम वैज्ञानिक जानकारियां जुटायेगा।
चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान तीन भागों से मिलकर बना है। दूसरे शब्दों में कहें, तो इस यान के तीन भाग है। तीनों ही भाग देश में तैयार किये गये हैं। ये तीनों हिस्से हैं- लैंडर मॉड्यूल (एलएम), प्रोपल्शन मॉड्यूल (पीएम) और एक रोवर। भले ही यह यान तीन अलग-अलग भागों से मिलकर बना है, पर इसकी बाहरी बनावट में दो ही भाग दिखाई देते हैं। पहला भाग प्रोपल्शन मॉड्यूल का है जो लैंडर को चंद्रमा की कक्षा तक लेकर जायेगा। दूसरा भाग लैंडर मॉड्यूल का है, जिसके भीतर रोवर रखा जायेगा। लैंडर मॉड्यूल का आकार चौकोर है और इसके चारों कोनों पर एक-एक पैर जैसी आकृति लगी है।
चंद्र अभियान के लिए जाने वाले चंद्रयान के इन तीनों भागों का उद्देश्य अंतर-ग्रहीय अभियानों के लिए आवश्यक तकनीकों को विकसित करना और उनका प्रदर्शन करना है। ये तीनों मॉड्यूल अपने साथ कुछ वैज्ञानिक उपकरण (पेलोड) भी लेकर जा रहे हैं।
चंद्रयान-3 के लैंडर में 5, रोवर में 2 यंत्र हैं। ये तापमान, मिट्टी व वातावरण में मौजूद तत्व व गैस ढूंढ़ेंगे। इसके लिए सॉफ्ट लैंडिंग जरूरी है, ताकि रोवर से लैंडर, लैंडर से ऑर्बिटर और ऑर्बिटर से ISRO तक इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल मिलते रहें। लैंडर-रोवर चांद के एक दिन (धरती के 14 दिन के बराबर) ही काम कर पाएंगे। रात में तापमान माइनस 180 डिग्री तक गिरेगाा। तब गारंटी नहीं कि उपकरण काम करेंगे। अगले दिन फिर सूर्य किरणों से चार्ज हुआ तो एक मौका मिलेगा।
Chandrayaan-3 launching date : स्पेस सेंटर में चंद्रमा की सतह की तरह टेस्ट किए। लैंडर को हेलिकॉप्टर, क्रेन से गिराकर जांचा। कोल्ड सिमुलेशन किया।
ईंधन टैंक की क्षमता बढ़ाई, ताकि प्राइमरी लैंडिंग में दिक्कत आए तो दूसरी साइट पर लैंडिंग के लिए अतिरिक्त ईंधन हो।
सॉफ्टवेयर मजबूत किया। यह लैंडिंग में मदद करेगा।
लैंडर के 6 पहिए किए। ये 50% और मजबूत हैं।
चंद्रयान-3 में लैंडर की एनर्जी एब्जॉर्बिंग कैपेसिटी दोगुनी की गई है। पहले लैंडर 2 मीटर/सेकंड से सतह से टकराने पर सुरक्षित रहने में सक्षम था। इस बार 3 मीटर/सेकंड से चंद्रमा की सतह को छूने पर भी सुरक्षित रहेगा। लैंडर में दो सेंसर लगाए हैं। एक पहले की तरह इनर्शियल सेंसर, कैमरा है। दूसरा लेजर डॉप्लर वेलोसिटीमीटर। इससे लैंडिंग के दौरान लेजर बीम चांद की सतह पर जाएगी और रिफ्लेक्ट होकर लौटेगी।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने जानकारी दी कि चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम के सॉफ्ट लैंडिंग करने में असफल रहने के कारणों का विश्लेषण कर इस बार कई सावधानी बरती गयी है। लैंडिंग के क्षेत्र को 500 मीटर गुना 500 मीटर से बढ़ा कर चार किमी गुना 2.5 किमी कर दिया है। इसमें ईंधन भी अधिक है, जिससे इसमें यात्रा करने या पथ-विचलन को संभालने या वैकल्पिक लैंडिंग स्थल पर जाने की अधिक क्षमता है। आगे कहा कि हमने सेंसर, इंजन, एल्गोरिदम और गणना की विफलता जैसी बहुत-सी विफलताओं को देखा। हम चाहते हैं कि यह आवश्यक वेग और निर्दिष्ट मान पर उतरे। इसलिए अंदर अलग-अलग विफलता परिदृश्यों की गणना और योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया गया है। विक्रम लैंडर में अब अन्य सतहों पर अतिरिक्त सौर पैनल हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह बिजली उत्पन्न करता रहे, चाहे यह चंद्र सतह पर कैसे भी उतरे।
चंद्रयान- 3 को एलवीएम-3- एम 4 रॉकेट के जरिये चंद्रमा के कक्ष में भेजा जायेगा। एलवीएम- 3 एक नया हैवी लिफ्ट प्रक्षेपण यान है, जिसे इसरो ने विकसित किया है। यह एलवीएम-3 का चौथ ऑपरेशनल फ्लाइट है, जिसका लक्ष्य चंद्रयान- 3 को जियो ट्रांसफर ऑर्बिट यानी जीटीओ में लॉन्च करना है। यह बहुउद्देशीय रॉकेट है और इसने कई बार इसे साबित किया है।
इसमें तीन स्टेज आते हैं। पहला- लॉन्च से पहले का स्टेज। दूसरा- लॉन्च और रॉकेट को अंतरिक्ष तक ले जाना और तीसरा- धरती की अलग-अलग कक्षाओं में चंद्रयान-3 को आगे बढ़ाना। इस दौरान चंद्रयान-3 करीब छह चक्कर धरती के चारों तरफ लगाएगा। फिर वह दूसरे फेज की तरफ बढ़ जाएगा।
लूनर ट्रांसफर फेज यानी चंद्रमा की तरफ भेजने का काम। इस फेज में ट्रैजेक्टरी का ट्रांसफर किया जाता है। यानी स्पेसक्राफ्ट लंबे से सोलर ऑर्बिट से होते हुए चंद्रमा की ओर बढ़ने लगता है।
लूनर ऑर्बिट इंसर्सन फेज (LOI) यानी चांद की कक्षा में चंद्रयान-3 को भेजा जाएगा।
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इसमें सात से आठ बार ऑर्बिट मैन्यूवर करके चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह से 100 किमी ऊंची कक्षा में चक्कर लगाना शुरू कर देगा।
पांचवें चरण में प्रोपल्शन मॉड्यूल और लूनर मॉड्यूल एकदूसरे से अलग होंगे।
डी-बूस्ट फेज यानी जिस दिशा में जा रहे हैं, उसमें गति को कम करना।
प्री-लैंडिंग फेज यानी लैंडिंग से ठीक पहले की स्थिति। लैंडिंग की तैयारी शुरू की जाएगी।
आठवां चरण– जिसमें लैंडिंग कराई जाएगी।
नौवां चरण– लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर पहुंच कर सामान्य हो रहे होंगे।
दसवां चरण– प्रोपल्शन मॉड्यूल का चंद्रमा की 100 किलोमीटर की कक्षा में वापस पहुंचना।
इन सभी चरणों को पूरा करने में यानी 14 जुलाई 2023 की लॉन्चिंग से लेकर लैंडर और रोवर के चांद की सतह पर उतरने में करीब 45 से 50 दिन लगेंगे।