किसानों को मौसम संबंधी सलाह देने वाली इकाइयों के लिए स्थायी ढांचा तैयार करने की केंद्र की योजना |

किसानों को मौसम संबंधी सलाह देने वाली इकाइयों के लिए स्थायी ढांचा तैयार करने की केंद्र की योजना

किसानों को मौसम संबंधी सलाह देने वाली इकाइयों के लिए स्थायी ढांचा तैयार करने की केंद्र की योजना

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Modified Date: January 12, 2025 / 05:07 PM IST
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Published Date: January 12, 2025 5:07 pm IST

(गौरव सैनी और सागर कुलकर्णी)

नयी दिल्ली, 12 जनवरी (भाषा) केंद्र सरकार उन जिला कृषि मौसम विज्ञान इकाइयों (डीएएमयू) के कामकाज को जारी रखने के लिए एक स्थायी ढांचा स्थापित करना चाहती है जो पिछले साल बंद होने तक तदर्थ तरीके से काम कर रही थीं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम. रविचंद्रन ने यह जानकारी दी।

‘पीटीआई-भाषा’ ने पिछले साल अगस्त में खबर दी थी कि सरकार का इरादा डीएएमयू को पुनर्जीवित करने का है, जो नीति आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप पिछले साल बंद होने से पहले लाखों किसानों को प्रखंड-स्तरीय मौसम संबंधी जानकारी प्रदान करती थीं।

रविचंद्रन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और कृषि मंत्रालय ने ‘पायलट प्रोजेक्ट’ के हिस्से के रूप में किसानों को मौसम की जानकारी प्रदान की। डीएएमयू में कृषि मौसम विज्ञानी विश्लेषण करते हैं कि मौसम की स्थिति फसलों को कैसे प्रभावित करेगी। उनकी प्राथमिक भूमिका किसानों को सलाह देना है। प्रणाली अच्छी तरह से काम करती है, लेकिन इसे तदर्थ नहीं रहना चाहिए, इसे स्थायी बनाने की जरूरत है।’’

उन्होंने कहा कि सरकार इस अहम कार्य को पूरा करने के लिए एक ठोस ढांचा स्थापित करना चाहती है।

एक आधिकारिक सूत्र ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने डीएएमयू को पुनर्जीवित करने के महत्व के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी लिखा है और इनके बंद होने से संबंधित चिंताओं को भी व्यक्त किया है।

यह पूछे जाने पर कि क्या परियोजना को बंद करने का मुख्य कारण वित्तीय बाधाएं थीं, सूत्र ने इसे ‘गलतफहमी’ कहकर खारिज कर दिया।

पहले यह बताया गया था कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय चाहता था कि कृषि मंत्रालय डीएएमयू का खर्च वहन करे।

पिछले साल अगस्त में एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया था कि सरकार का इरादा डीएएमयू को ‘औपचारिक’ बनाने का है।

अधिकारी ने कहा था, ‘‘डीएएमयू अस्थायी प्रकृति के थे, इनके कर्मचारियों को प्रति-परियोजना के आधार पर नियुक्त किया गया था। पदों की तदर्थ प्रकृति ने पूर्वानुमान की गुणवत्ता को प्रभावित किया। इस बार एक स्थायी संरचना होगी। जनशक्ति में स्थायी और संविदात्मक, दोनों कर्मचारी शामिल होंगे।’’

वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने किसानों को फसल और स्थान-विशिष्ट विस्तृत सलाह प्रदान करने के लिए ग्रामीण कृषि मौसम सेवा (जीएमएसवी) शुरू की, जिससे उन्हें दिन-प्रतिदिन के आधार पर निर्णय लेने में मदद मिली।

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहयोग से देश के कृषि-जलवायु क्षेत्रों में 130 कृषि मौसम क्षेत्र इकाइयां (एएमएफयू) स्थापित की गईं। प्रत्येक एएमएफयू चार से पांच जिलों की जरूरत को पूरा करती थी।

वर्ष 2018 में सरकार ने कृषि विज्ञान केंद्रों के परिसर में 530 जिला कृषि मौसम इकाइयां स्थापित करके सेवा की पहुंच बढ़ाने का निर्णय लिया। हालांकि, कोविड-19 महामारी ने इस प्रक्रिया को प्रभावित किया और केवल 199 डीएएमयू स्थापित किए जा सके, जिनमें से प्रत्येक में दो संविदा कर्मचारी (एसएमएस एग्रोमेट और एग्रोमेट ऑब्जर्वर) थे।

फरवरी 2023 में आयोजित व्यय वित्त समिति की बैठक में नीति आयोग के एक वरिष्ठ सलाहकार ने ‘प्रत्येक डीएएमयू में कर्मचारी उपलब्ध कराने की आवश्यकता’ का पुनर्मूल्यांकन करने का सुझाव दिया।

अधिकारी ने सुझाव दिया कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में ‘‘क्षेत्र इकाइयों के बजाय केंद्रीकृत इकाइयां हो सकती हैं, क्योंकि डेटा का संग्रह स्वचालित है।’’

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 17 जनवरी, 2024 को सभी डीएएमयू को पत्र लिखकर वित्तीय वर्ष 2023-24 के अंत तक अपना परिचालन बंद करने के लिए कहा था।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और कांग्रेस सांसद जयराम रमेश समेत कई राजनेताओं ने इस कदम का विरोध किया था।

पिछले एक साल के दौरान महाराष्ट्र स्थित कृषि मौसम विज्ञान इकाइयों के संघ ने प्रधानमंत्री, संसद सदस्यों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और कृषि मंत्रालय को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है।

डीएएमयू कर्मचारियों ने कहा कि लाखों किसान महत्वपूर्ण कृषि संबंधी सलाह के लिए उन पर निर्भर हैं, जिससे बिगड़ते मौसम और जलवायु प्रभावों का मुकाबला करने में उनके सामर्थ्य को बढ़ाने में मदद मिली है, जिससे उनके नुकसान और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत की गई दावा राशि में कमी आई है।

खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता के बावजूद भारत में कृषि मौसम संबंधी अनिश्चितताओं के प्रति संवेदनशील बनी हुई है। भारत में लू और बाढ़ ने फसल उत्पादन को बड़ा नुकसान पहुंचाया है।

भाषा संतोष सुरेश

सुरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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