याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना याचिका दायर किये जाने के मामले की सीबीआई जांच का आदेश |

याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना याचिका दायर किये जाने के मामले की सीबीआई जांच का आदेश

याचिकाकर्ता की जानकारी के बिना याचिका दायर किये जाने के मामले की सीबीआई जांच का आदेश

:   Modified Date:  September 20, 2024 / 08:10 PM IST, Published Date : September 20, 2024/8:10 pm IST

नयी दिल्ली, 20 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक ऐसे मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया, जिसमें एक याचिकाकर्ता ने अपील दायर करने की बात से इनकार कर दिया था और दावा किया था कि उसने मामला दायर करने के लिए अदालत में मौजूद किसी भी वकील की सेवाएं नहीं ली हैं।

न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि हालांकि, याचिकाकर्ता भगवान सिंह ने कभी इन वकीलों से मुलाकात नहीं की और ना ही उन्हें अपील दायर करने का निर्देश दिया था, फिर भी पक्षकारों ने वकीलों की मदद से कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और न्याय प्रक्रिया को बदनाम करने का प्रयास किया।

पीठ ने कहा, ‘‘हम मामले की जांच सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) को सौंपना उपयुक्त समझते हैं। यदि आवश्यक हो तो, सीबीआई प्रारंभिक जांच करने के बाद, इसमें शामिल और जिम्मेदार पाये गए सभी व्यक्तियों के खिलाफ एक नियमित मामला दर्ज करे और कथित अपराधों और अदालत के साथ धोखाधड़ी से संबंधित सभी पहलुओं की जांच करे।’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘सीबीआई निदेशक को इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने और दो महीने के भीतर इस अदालत को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया जाता है।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि मामला उस वक्त गंभीर हो जाता है जब अधिवक्ता, जो अदालत के अधिकारी होते हैं, इसमें शामिल होते हैं और वे बेईमान वादियों के दुर्भावनापूर्ण मुकदमों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं तथा उनके गुप्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने में उनकी सहायता करते हैं।

न्यायालय ने कहा कि लोगों को न्यायपालिका पर बहुत भरोसा है और न्याय-प्रणाली का अभिन्न अंग होने के नाते ‘बार’ को न्याय की स्वतंत्रता और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है।

पीठ ने कहा ‘‘कानून के पेशे को अनिवार्य रूप से एक सेवा-उन्मुखी पेशा माना जाता है और वकीलों को अदालत का बहुत जिम्मेदार अधिकारी एवं न्याय प्रशासन में महत्वपूर्ण सहायक माना जाता है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘नैतिक मूल्यों के समग्र क्षरण तथा पेशेवर नैतिकता का स्तर गिरने की प्रक्रिया में, पेशेवर कदाचार के मामले भी बढ़ रहे हैं। अदालत में की जाने वाली कार्यवाही से बहुत शुचिता जुड़ी होती है।’’

न्यायालय ने कहा कि वकालतनामा और अदालतों में दाखिल किए जाने वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले प्रत्येक अधिवक्ता और न्यायालय में किसी भी पक्ष की ओर से उपस्थित होने वाले प्रत्येक अधिवक्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि उसने पूरी जिम्मेदारी व गंभीरता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

न्यायालय ने कहा कि किसी भी पेशेवर, खासकर कानून के पेशे से जुड़े व्यक्ति को, उसके आपराधिक कृत्यों के लिए मुकदमों से छूट प्राप्त नहीं है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि कुछ बेईमान वादियों का एक गिरोह और उनके सलाहकारों का एक समूह है, जो हमेशा व्यवस्थागत खामियों का अनुचित लाभ उठाने और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने में व्यस्त रहते हैं, जिससे अदालतों के साथ-साथ पूरे कानूनी समुदाय और कानून के पेशे की छवि को नुकसान पहुंचता है।

न्यायालय ने कहा कि गलत काम करने वालों को कानून का डर होना चाहिए कि उन्हें सजा मिलेगी, निर्दोष लोगों को भरोसा होना चाहिए कि उन पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और पीड़ितों को विश्वास होना चाहिए कि उन्हें न्याय मिलेगा।

पीठ ने कहा, ‘‘भारत जैसे लोकतांत्रिक देश का नागरिक, जो कानून के शासन द्वारा शासित है, अदालतों से वैध रूप से इसी बात की उम्मीद करता है। अदालतों को ‘न्याय का मंदिर’ कहा जाता है।’’

भाषा सुभाष वैभव

वैभव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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