नयी दिल्ली, तीन जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने जातिगत भेदभाव को एक संवेदनशील मुद्दा बताते हुए शुक्रवार को कहा कि वह देश में शैक्षणिक संस्थानों में इससे निपटने के लिए एक प्रभावी तंत्र तैयार करेगा।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को मसौदा नियमों को अधिसूचित करने का निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केंद्रीय, राज्य, निजी और डीम्ड विश्वविद्यालयों में छात्रों के साथ कोई जाति-आधारित भेदभाव न हो।
अदालत ने यूजीसी को उन संस्थानों की संख्या के बारे में जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिन्होंने यूजीसी (उच्च शैक्षणिक संस्थानों में निष्पक्षता को बढ़ावा देने के नियम) 2012 का अनुपालन करते हुए समान अवसर प्रकोष्ठ स्थापित किए हैं।
पीठ ने कहा, “हम इस संवेदनशील मुद्दे के प्रति समान रूप से सचेत हैं। हम कुछ करेंगे। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ प्रभावी तंत्र और तौर-तरीके तलाशने होंगे कि 2012 के नियम वास्तविक रूप से लागू हों।”
पीठ ने इस मुद्दे पर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी और यूजीसी को सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों के बीच इस तरह के भेदभाव की शिकायतों के बारे में छह सप्ताह में डेटा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
जाति-आधारित भेदभाव का सामना करने के बाद कथित तौर पर आत्महत्या करने वाले छात्र रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं की ओर से वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि 2004 से अब तक आईआईटी और अन्य संस्थानों में 50 से अधिक छात्रों (ज्यादातर एससी/एसटी वर्ग के) ने इस तरह के भेदभाव का सामना करने के बाद आत्महत्या कर ली।
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी के छात्र वेमुला की 17 जनवरी, 2016 जबकि टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज की छात्रा तड़वी की 22 मई, 2019 को मृत्यु हो गई थी। आरोप है कि उनके कॉलेज में तीन डॉक्टरों उनसे भेदभाव किया था।
पीठ ने कहा कि 2019 में एक जनहित याचिका दायर की गई थी लेकिन इस मुद्दे पर अब तक कोई ठोस सुनवाई नहीं हुई है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “अब से हम इस याचिका को समय-समय पर सूचीबद्ध करेंगे ताकि मामले में कुछ प्रभावी समाधान निकाला जा सके क्योंकि 2019 के बाद से कुछ भी नहीं हुआ है।”
यूजीसी के वकील ने कहा कि यूजीसी द्वारा गठित एक समिति ने सिफारिश की और आयोग ने जाति-आधारित भेदभाव को रोकने के लिए नए नियमों का मसौदा तैयार किया।
उन्होंने कहा, “मसौदा नियमों को जनता से आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित करने के लिए एक माह के लिए वेबसाइट पर डाला जाएगा और उसके बाद इसे अधिसूचित किया जाएगा।”
पीठ ने इस मामले में देरी होने पर यूजीसी से सवाल किया और कहा कि वह इतने समय तक सोता रहा और नए नियम लेकर नहीं आया।
पीठ ने कहा, “नए नियमों को अधिसूचित करने के लिए कितना समय चाहिए? आप इसे (कार्य को) एक महीने में करें और इसे रिकॉर्ड पर रखें।”
पीठ ने मामले की सुनवाई छह सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
भाषा जोहेब पवनेश
पवनेश
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