नयी दिल्ली/बेंगलुरु, 15 जनवरी (भाषा) कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने बुधवार को कहा कि सामाजिक-आर्थिक एवं शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट, जिसे ‘जाति जनगणना’ के रूप में जाना जाता है, 16 जनवरी को राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष पेश नहीं की जाएगी और अगले सप्ताह इस पर विचार किए जाने की संभावना है।
सिद्धरमैया ने कहा कि मंत्रिमंडल में चर्चा और सभी की राय पर गौर करने के बाद सरकार आगे के कदम पर फैसला करेगी।
सिद्धरमैया ने नयी दिल्ली में संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमने इसे (कल) पेश करने की योजना बनाई थी, लेकिन हम इसे एक सप्ताह बाद अगली मंत्रिमंडल में पेश करेंगे। यह कल नहीं होगा।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या यह देरी कुछ समुदायों के विरोध के कारण है, उन्होंने कहा, ‘‘इस पर अभी तक मंत्रिमंडल में चर्चा नहीं हुई है, इसलिए कोई विरोध नहीं है। रिपोर्ट जनता के लिए बिल्कुल भी खुली नहीं है। मुझे नहीं पता कि इसमें क्या है। ये चर्चाएं अटकलों पर आधारित हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘(रिपोर्ट से) कोई संख्या सामने नहीं आई है। मंत्रिमंडल में इस पर चर्चा करने और सभी की राय लेने के बाद, हम तय करेंगे कि क्या करना है।’’
कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपने तत्कालीन अध्यक्ष के. जयप्रकाश हेगड़े के नेतृत्व में पिछले वर्ष 29 फरवरी को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को रिपोर्ट सौंपी थी, जबकि समाज के कुछ वर्गों द्वारा इस पर आपत्ति जतायी गई थी तथा सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर से भी इसके खिलाफ आवाज उठी थी।
इससे पहले दिन में कर्नाटक के गृहमंत्री जी. परमेश्वर ने बेंगलुरू में इस बात पर जोर दिया कि जाति जनगणना की सामग्री को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
परमेश्वर ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह तय किया गया था कि (रिपोर्ट का) सीलबंद लिफाफा कैबिनेट के समक्ष खोला जाएगा, अन्यथा जानकारी लीक हो सकती है… इस पर चर्चा होगी या नहीं, मैं अभी इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। एक बार खुलने के बाद, कम से कम सारांश जानकारी तो हमें पता चल ही जाएगी।’’
रिपोर्ट के प्रति कुछ प्रभावशाली वर्गों के विरोध और इसकी सिफारिशों के क्रियान्वयन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि सरकार ने रिपोर्ट पर करदाताओं के 160 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और इसे कम से कम सार्वजनिक किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके आधार पर कार्रवाई बाद की बात है।
उन्होंने कहा, ‘‘इसके आधार पर कार्रवाई करना सरकार के विवेक पर छोड़ दिया गया है, जो अंततः निर्णय लेगी। लेकिन कम से कम 160 करोड़ रुपये खर्च करके तैयार की गई रिपोर्ट से जानकारी तो सामने आनी चाहिए। मांग है कि रिपोर्ट की सामग्री सार्वजनिक की जाए।’’
कर्नाटक के दो प्रमुख समुदायों- वोक्कालिगा और लिंगायत ने सर्वेक्षण पर आपत्ति जताते हुए इसे ‘‘अवैज्ञानिक’’ बताया है और इसे खारिज करने तथा नए सिरे से सर्वेक्षण कराने की मांग की है।
जयप्रकाश हेगड़े के नेतृत्व वाले आयोग ने कहा था कि रिपोर्ट 2014-15 में राज्य भर के जिलों के संबंधित उपायुक्तों के नेतृत्व में 1.33 लाख शिक्षकों सहित 1.6 लाख अधिकारियों द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई थी, जब एच. कंथाराजू आयोग के अध्यक्ष थे।
सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार (2013-2018) ने 2015 में सर्वेक्षण कराया था।
तत्कालीन अध्यक्ष कंथाराजू के नेतृत्व में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को जाति जनगणना रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था। सर्वेक्षण का काम 2018 में सिद्धरमैया के मुख्यमंत्री के रूप में पहले कार्यकाल के अंत में पूरा हुआ था। हालांकि, सर्वेक्षण के निष्कर्ष, रिपोर्ट के रूप में, उसके बाद कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं और वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। उन्होंने समुदाय द्वारा मुख्यमंत्री को पहले सौंपे गए ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें अनुरोध किया गया था कि रिपोर्ट और डेटा को अस्वीकार कर दिया जाए।
भाषा अमित माधव
माधव
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