नयी दिल्ली, दो नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय 1995 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए बलवंत सिंह राजोआना की उस याचिका पर चार नवंबर को सुनवाई करेगा, जिसमें उसने अपनी दया याचिका पर फैसला लेने में ‘‘अत्यधिक देरी’’ का हवाला देते हुए मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का अनुरोध किया है।
पंजाब पुलिस के पूर्व कान्स्टेबल राजोआना की याचिका न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीके मिश्रा और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की विशेष पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है।
शीर्ष अदालत ने 25 सितंबर को राजोआना की याचिका पर केंद्र, पंजाब सरकार और केंद्र-शासित प्रदेश चंडीगढ़ के प्रशासन से जवाब मांगा था।
याचिका में राजोआना ने ‘‘उसकी मौत की सजा पर अमल में’’ और ‘‘उसकी ओर से दायर दया याचिका पर निर्णय लेने’ में ‘अत्यधिक देरी’ का हवाला देते हुए केंद्र व पंजाब सरकार को उसकी सजा घटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
चंडीगढ़ में 31 अगस्त 1995 को नागरिक सचिवालय के प्रवेश द्वार पर हुए विस्फोट में बेअंत सिंह और 16 अन्य लोगों की मौत हो गई थी। एक विशेष अदालत ने जुलाई 2007 में राजोआना को बेअंत सिंह हत्याकांड में मौत की सजा सुनाई थी।
राजोआना ने कहा कि मार्च 2012 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) ने संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत उसकी तरफ से एक दया याचिका दायर की थी।
पिछले साल तीन मई को शीर्ष अदालत ने राजोआना की मौत की सजा को कम करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि सक्षम प्राधिकारी उसकी दया याचिका पर विचार कर सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में दायर ताजा अर्जी में राजोआना ने कहा है कि उसने कुल मिलाकर लगभग 28 साल और आठ महीने की सजा काट ली है, जिसमें से उसने 17 साल मौत की सजा पाए दोषी के रूप में काटे हैं।
राजोआना ने कहा है कि शीर्ष अदालत ने एक साल से अधिक समय पहले सक्षम प्राधिकारी को उसकी दया याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था।
याचिका में एक अलग मामले में शीर्ष अदालत के अप्रैल 2023 के आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें उसने सभी राज्यों और उपयुक्त प्राधिकारियों को लंबित दया याचिकाओं पर बिना किसी देरी के फैसला करने का निर्देश दिया था।
इसमें कहा गया है, ‘उपरोक्त निर्देशों के बावजूद याचिकाकर्ता की दया याचिका पर फैसला लंबित रखा गया है।’
याचिका में दलील दी गई है, ‘‘याचिकाकर्ता की दया याचिका पर फैसला लेने में यह असाधारण और अत्यधिक देरी उन कारणों से हुई, जो उसके नियंत्रण से परे हैं और जिनके लिए वह जिम्मेदार नहीं है, ऐसे में यह (संविधान के) अनुच्छेद-21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।’’
इसमें कहा गया है कि कई मामलों में दया याचिकाओं पर फैसला लंबे समय तक लंबित रहने और दोषियों को जेल में रखे जाने का मुद्दा शीर्ष अदालत के समक्ष विचार के लिए आया है।
याचिका के मुताबिक, ऐसे एक मामले में शीर्ष अदालत ने दया याचिका के निपटारे में पांच साल से अधिक की देरी को ध्यान में रखते हुए मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का निर्देश दिया था।
इसमें कहा गया है, “सम्मानपूर्वक यह दलील दी जाती है कि इस अदालत ने (मौजूदा मामले की तरह) मौत की सजा पाने वाले दोषी की दया याचिका पर फैसला लेने में अत्यधिक देरी को लगातार उसकी मौत की सजा को कम करने के लिए वैध आधार के रूप में मान्यता दी है।’’
याचिका में कहा गया है, ‘‘मौत की सजा पाने वाला याचिकाकर्ता अपनी दया याचिका पर फैसले का लंबे समय से इंतजार कर रहा है। जीवन को लेकर अनुचित रूप से लंबे समय से बनी हुई अनिश्चितता के कारण उसे अकल्पनीय मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ रहा है, जो अनुच्छेद-21 के तहत हासिल जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।’’
भाषा पारुल शोभना
शोभना
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