सोमनाथ से संभल तक सभ्यतागत न्याय की लड़ाई: आरएसएस से संबंधित पत्रिका |

सोमनाथ से संभल तक सभ्यतागत न्याय की लड़ाई: आरएसएस से संबंधित पत्रिका

सोमनाथ से संभल तक सभ्यतागत न्याय की लड़ाई: आरएसएस से संबंधित पत्रिका

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Modified Date: December 26, 2024 / 03:11 PM IST
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Published Date: December 26, 2024 3:11 pm IST

नयी दिल्ली, 26 दिसंबर (भाषा) देश में मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत द्वारा आपत्ति जताए जाने के कुछ दिनों बाद, संगठन से जुड़ी एक पत्रिका के ताजा अंक में कहा गया है कि यह सोमनाथ से संभल और उससे आगे तक इतिहास की सच्चाई जानने और ‘‘सभ्यतागत न्याय’’ हासिल करने की लड़ाई है।

पत्रिका ‘ऑर्गनाइजर’ के ताजा अंक में प्रकाशित संपादकीय में कहा गया है कि बी आर आंबेडकर का अपमान किसने किया, इसे लेकर मचे कोलाहल के बीच, ऐतिहासिक रिकॉर्ड ‘‘स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं’’ कि कांग्रेस ने संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष के साथ कैसा व्यवहार किया था और ऐसे में, उत्तर प्रदेश के संभल में हाल के घटनाक्रम ने ‘‘लोगों को उद्वेलित कर दिया।’’

इसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के ‘‘ऐतिहासिक शहर’’ में अब जामा मस्जिद के रूप में ‘‘बनाए गए’’ श्री हरिहर मंदिर का सर्वेक्षण करने संबंधी याचिका से शुरू हुआ विवाद व्यक्तियों और समुदायों को दिए गए विभिन्न संवैधानिक अधिकारों के बारे में एक नयी बहस को जन्म दे रहा है।

‘ऑर्गनाइजर’ के संपादक प्रफुल्ल केतकर द्वारा लिखे गए संपादकीय में कहा गया है, ‘‘छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी चश्मे से बहस को हिंदू-मुस्लिम प्रश्न तक सीमित करने के बजाय हमें सच्चे इतिहास पर आधारित सभ्यतागत न्याय पाने के लिए एक विवेकपूर्ण और समावेशी बहस की आवश्यकता है, जिसमें समाज के सभी वर्ग शामिल हों।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘सोमनाथ से लेकर संभल और उससे परे भी, ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व की लड़ाई नहीं है। यह हिंदू लोकाचार के खिलाफ है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करने और सभ्यतागत न्याय पाने के बारे में है।’’

भागवत ने देश में कई मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर पिछले सप्ताह चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ व्यक्तियों को ऐसा लगने लगा है कि वे ऐसे मुद्दों को उठाकर ‘‘हिंदुओं के नेता’’ बन सकते हैं।

‘ऑर्गनाइजर’ के संपादकीय में कहा गया है कि भारत में धार्मिक पहचान की कहानी जाति के सवाल से बहुत अलग नहीं है।

उसने कहा, ‘‘कांग्रेस ने जाति के सवाल को टालने की कोशिश की, सामाजिक न्याय के कार्यान्वयन में देरी की और चुनावी लाभ के लिए जातिगत पहचान का शोषण किया। धार्मिक पहचान की कहानी इससे बहुत अलग नहीं है।’’

साप्ताहिक पत्रिका के संपादकीय में कहा गया है, ‘‘इस्लामिक आधार पर मातृभूमि के दर्दनाक विभाजन के बाद, इतिहास के बारे में सच्चाई बताकर सभ्यतागत न्याय के लिए प्रयास करने और सामंजस्यपूर्ण भविष्य के लिए वर्तमान को पुनः स्थापित करने के बजाय कांग्रेस और कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने आक्रमणकारियों के पापों को छिपाने का विकल्प चुना।’’

इसमें कहा गया है कि आंबेडकर ने जाति-आधारित भेदभाव के ‘‘मूल कारण’’ तक पहुंचकर इसके लिए संवैधानिक उपाय सुझाए।

इसमें कहा गया है, ‘‘सभ्यतागत न्याय हासिल करने का समय आ गया है। हमें धार्मिक कटुता और असामंजस्य को समाप्त करने के लिए इसी तरह के दृष्टिकोण की आवश्यकता है।’’

संपादकीय में कहा गया है कि इतिहास की सच्चाई को स्वीकार करने एवं ‘‘भारतीय मुसलमानों’’ को ‘‘आस्था पर हमला करने ’’ के अपराधियों से अलग करने का यह दृष्टिकोण और सभ्यतागत न्याय की तलाश करना शांति और सद्भाव को लेकर आशा प्रदान करता है।

इसमें कहा गया है, ‘‘न्याय तक पहुंच और सत्य जानने के अधिकार को सिर्फ इसलिए नकारना कट्टरपंथ और शत्रुता को बढ़ावा देगा कि कुछ उपनिवेशवादी अभिजात वर्ग और छद्म बुद्धिजीवी फर्जी धर्मनिरपेक्षता का इस्तेमाल जारी रखना चाहते हैं।’’

भाषा सिम्मी मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)