हम जिस देश में रहते हैं उसे ऋतुओं का देश भी माना जाता है। तीन प्रमुख मौसम से तो हम सभी परिचित हैं, गर्मी-बारिश और ठंड लेकिन हमारे देश की ऋतुओं का परिवर्तन काल सबसे सुखद होता है। कोई भी मौसम अचानक ही नहीं आता,आने से पहले वह दरवाजा खटखटाता है। ये समयकाल उसी की आहट है। ठंडी और गर्मी के मध्यकाल का ये समय ऋतुराज बसंत के नाम से जानी जाती है।
प्रकृति इस समय अपना श्रृंगार कर रही है । यही वजह है कि बसंत के समय में ऋतु बहुत सुहावनी हो जाती है। सर्दी खत्म और गर्मी शुरू होने वाली होती हैं। इस समय में न ही तो ज्यादा सर्दी होती है और न ही ज्यादा गर्मी होती है। हम में से हरेक का मन वादियों पर विचरने का होने लगता है। इस मीठी ऋतु की यही तो खासियत कि सारे जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों में नव जीवन का संचार होता है और मन मयूर हो जाता है।
बसंत के आगमन से ही वृक्षों के नए-नए पत्ते लद जाते हैं। फूलों का सौंदर्य खिलखिलाने लगता है, ये हरियाली छटा मन का मनुहार करती है। आमों के पेड़ों पर बौर आने लगता है और कोयल भी मीठी आवाज में कुहू-कुहू करने लगती है। इस सुगंधित वातावरण में आलसियों को भी सैर बैर नहीं रहता। सुबह के घूमने के फायदों से तो हम सभी वाकिफ हैं। ये सुखदायक हवा इतनी करामाती होती है कि बहुत सी बीमारियां तो इसको छूकर ही ठीक हो जाती हैं। बसंत की ये पवन मनुष्य की उम्र और बल में वृद्धि करती है।
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बसंत हमारे किसानों के लिए भी उत्सव लेकर आता है, बसंत के आगमन पर फसलें पकने लगती हैं। किसान का मन अपनी फसल को देखकर खुशी से भर जाता है। सरसों के पीले-पीले फूल खिल-खिला कर खुशी व्यक्त करते हैं। सिट्टे भी ऐसे लगते हैं जैसे सिर उठाकर ऋतुराज का स्वागत कर रहे हों। सरोवरों में कमल के फूल खिल कर इस तरह पानी को छिपा लेते हैं जैसे मनुष्यों को संकेत देते हैं कि अपने मन को खोल कर हंसों और सारे दुखों को मन में समेट लो। आसमान में पक्षी किलकारियां मारकर बसंत का स्वागत करते हैं।
बसंत ऋतु में हवा दक्षिण से उत्तर की तरफ बहती है। दक्षिण से आने वाली हवा शीतल, मंद और मतवाली होती है। इस मौसम में वीणा का स्वर मन को झंकृत कर देता है, और करें भी क्यों ना, इस बसंत में ही तो मां सरस्वती के अवतरण की तिथि आती है। बसंत पंचमी का दिवस मां सरस्वती को समर्पित है। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली मां हंस पर सवार होकर जब वीणा की तान छेड़ती है तो पूरी सृष्टि आनंद के सागर में अठखेलियां करने लगती है।
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बसंत पंचमी को ऋतुराज के आगमन में उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बसंत पंचमी के दिन शालाओं में विद्या की देवी मां सरस्वती की आराधना का दिन होता है। इस दिन लोग खेलते हैं झूला झूलते हैं और अपनी प्रसन्नता को व्यक्त करते हैं। हर घर में वसंती हलवा, केसरिया खीर बनते हैं। इस दिन लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं और बच्चे पीले रंग के पतंग उड़ाते हैं। फाल्गुन की पंचमी को बसंत पंचमी का मेला लगता है। होली को भी बसंत ऋतु का ही त्यौहार माना जाता है। इस दिन सारा वातावरण रंगीन हो जाता है और सभी आनंद से मगन होते हैं।
बसंत ऋतु सर्वगुण संपन्न है, ये संपूर्ण प्रकृति को प्रिय है। इस मौसम में जरुर कुछ नया करें, देखिएगा आपका मनोरथ को पूरा करने में पूरी प्रकृति कैसे आपका साथ देती है।
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