नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि अदालतों को यांत्रिक तरीके से और बिना कोई कारण बताए जमानत आदेशों पर रोक लगाने से बचना चाहिए।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि किसी आरोपी को राहत देने से केवल दुर्लभ और अपवादस्वरूप मामलों में ही इनकार किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अदालतें किसी आरोपी की स्वतंत्रता को लापरवाह तरीके से बाधित नहीं कर सकतीं।
पीठ ने कहा, “अदालतों को जमानत आदेश पर सिर्फ दुर्लभ और अपवादस्वरूप मामलों में ही रोक लगानी चाहिए, जैसे कोई व्यक्ति आतंकवादी मामलों में शामिल हो, जहां आदेश विकृत हो या कानून के प्रावधानों को दरकिनार किया गया हो। आप इस तरह से स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं कर सकते। यह विनाशकारी होगा। अगर हम इस तरह से स्थगन देते हैं, तो यह विनाशकारी होगा। (आखिर) अनुच्छेद 21 का क्या होगा।”
शीर्ष अदालत ने धनशोधन के एक मामले में आरोपी परविंदर सिंह खुराना की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए ये टिप्पणियां कीं। खुराना ने निचली अदालत द्वारा पारित जमानत आदेश पर अस्थायी रोक लगाने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा था कि अदालतों को जमानत आदेश पर “लापरवाही से” रोक नहीं लगानी चाहिए।
उच्च न्यायालय के आदेश पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा था कि यह निर्देश चौंकाने वाला है। न्यायमूर्ति ओका ने टिप्पणी की थी, “जब तक वह आतंकवादी नहीं है, तब तक रोकने का क्या कारण है?”
पिछले साल 17 जून को पीएमएलए मामले में अधीनस्थ अदालत ने खुराना को जमानत दे दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी। उच्चतम न्यायालय ने सात जून को उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी और खुराना की जमानत बहाल कर दी।
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प्रशांत सुरेश
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