गुजरात में प्राचीन ढांचों में भूकंप से बचाव की तकनीकों का इस्तेमाल देखा गया: विशेषज्ञ | Ancient structures in Gujarat seen using earthquake prevention techniques: expert

गुजरात में प्राचीन ढांचों में भूकंप से बचाव की तकनीकों का इस्तेमाल देखा गया: विशेषज्ञ

गुजरात में प्राचीन ढांचों में भूकंप से बचाव की तकनीकों का इस्तेमाल देखा गया: विशेषज्ञ

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:41 PM IST
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Published Date: January 10, 2021 11:53 am IST

अहमदाबाद, 10 जनवरी (भाषा) गुजरात के वाडनगर में खुदाई में मिले दूसरी-तीसरी शताब्दी सीई के ढांचों के अध्ययन से पता चला है कि उस समय भी लोगों को भूकंप से बचाव की तकनीकों के बारे में जानकारी रही होगी।

विशेषज्ञों ने कहा कि यहां से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित भूकंप संभावित क्षेत्र में आने के बावजूद इन ढांचों में कोई दरार या टूट-फूट नहीं मिली है।

पुरातत्वविद तथा राष्ट्रीय समुद्री संग्रहालय के महानिदेशक प्रोफेसर वसंत शिंदे ने कहा, ”ये भारी ईंटों से बने ढांचे हैं, जिनकी दीवारें भी मोटी हैं। इसलिए बहुत संभव है कि दूसरी और तीसरी शताब्दी में लोग दबाव कम करने के लिए बीच-बीच में अंतराल रखते हुए लड़कियों का इस्तेमाल करते हों।”

उन्होंने कहा, ”इनमें अधिकतर दूसरी-तीसरी सदी के मकान और अन्य ढांचे हैं। ऐसे निर्माण आज के जमाने में भी देखे जाते हैं। ये विभिन्न सांस्कृतिक कालों से गुजरते हुए आज भी कायम हैं।”

शिंदे ने कहा कि इन सभी मजबूत ढांचों में धार्मिक, रिहायशी और भंडारण संबंधी गतिविधियों के लिए अलग-अलग हिस्से पाए गए हैं और इससे बस्तियों की समृद्धि का पता चलता है।

उन्होंने कहा कि इन ढांचों में एक विशेष पद्धति का पता चला है और वह यह है कि इनमें मोटी ईंटों का इस्तेमाल किया गया है।

शिंदे ने कहा कि हड़प्पा सभ्यता की संरचनाओं में भी ऐसी ही पद्धति का इस्तेमाल पाया गया है क्योंकि तब भी ढांचे भारी-भरकम होते थे। अधिकतर तकनीक हड़प्पा सभ्यता में अपनाई गईं तकनीकों से मिलती हैं।

दिसंबर में स्थल का दौरा करने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व निदेशक निजामुद्दीन ताहिर ने कहा कि वाडनगर में पाए गए ढांचों से एकत्रित सबूतों का और अध्ययन किए जाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ”यह अध्ययन काफी प्रासंगिक है। ईंटों से बने ढांचों के बीच अंतराल है। साथ ही इन धरोहरों में दरार या टूट-फूट के कोई सबूत नहीं मिले हैं। अगर यह भूकंप संभावित क्षेत्र था तो इन ढांचों में भूकंप के कुछ सबूत मिलने चाहिए थे।”

ताहिर ने कहा कि बीच-बीच में लकड़ियों का इस्तेमाल मिला है, जिसका विश्लेषण कर यह पता लगाया जाना चाहिए कि क्या इन ढांचों में भूकंप के प्रभाव को झेलने के लिए किसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पैतृक नगर वाडनगर के मेहसाणा में राज्य के पुरातत्व विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में खुदाई का यह काम चल रहा है।

भाषा जोहेब नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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