अजमेर: Threat To Lawyers While Ajmer Dargah Hearing ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह में मंदिर होने काि दावा करने वाली याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई। मामले में सुनवाई स्थानीय सिविल कोर्ट में हुई। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता पक्ष ने अपनी दलीलें पेश की, जिसके बाद अगली सुनवाई के लिए 1 मार्च की तारीख तय कर दी गई है। वहीं, सुनवाई के दौरान माहौल चिंताजनक हो गया, अजमेर दरगाह के विवाद से जुड़े वकील को कोर्ट के बाहर जान से मारने की धमकी दी गई।
Threat To Lawyers While Ajmer Dargah Hearing मिली जानकारी के अनुसार दरअसल अजमेर दरगाह विवाद की सुनवाई में शामिल होने पहुंचे सुप्रीम कोर्ट के वकील हुसैन मोइन फारूक को कोर्ट रूम से बाहर खुद को मीडिया वाला बताने वाले एक शख्स ने जान से मारने की धमकी दी। मामले को लेकर वकील हुसैन मोइन फारूक ने बताया कि मै दिल्ली में प्रैक्टिस करता हूं। सुबह 10 बजे कोर्ट पहुंचे थे, हालांकि सुनवाई 2:30 बजे होनी थी, ऐसे में बाहर आ गया। जब मैं कार के पास जा रहा था, तब एक व्यक्ति खुद को मीडिया वाला बताते हुए आकर बोला- अगर 2:30 बजे आया तो गोली मार देंगे। वकील ने इस बात की जानकारी जज को दे दी गई है। जज ने तत्काल पुलिस को मामले में उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
वहीं, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर स्थित दरगाह को हिंदू मंदिर घोषित करने के अनुरोध वाली याचिका में पक्षकार बनने के लिए छह और आवेदन स्थानीय अदालत में पेश किए गए हैं। इससे पहले, मामले में पक्षकार बनने के लिए पांच आवेदन पेश किए गए थे, जिससे ऐसे आवेदनों की कुल संख्या बढ़कर 11 हो गई है। हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से अदालत में याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में दावा किया गया है कि जिस स्थान पर दरगाह बनाई गई, वहां एक शिव मंदिर था और मंदिर का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण किया जाना चाहिए।
गुप्ता ने संवाददाताओं से कहा, “हमने पिछले आवेदनों पर अदालत के समक्ष अपना जवाब पेश किया है। याचिका को खारिज करने के लिए आवेदन पेश किए गए थे। हमने नये आवेदनों पर जवाब देने के लिए समय मांगा है। अब अदालत एक मार्च को मामले की सुनवाई करेगी।” अदालत ने पिछले साल 27 नवंबर को गुप्ता के वाद को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) दिल्ली को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
याचिका से एक नया विवाद खड़ा हो गया था और मुस्लिम धर्मगुरुओं व नेताओं ने इस पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था कि इस तरह की घटनाएं देश में एकता और भाईचारे के खिलाफ हैं और इन्हें रोका जाना चाहिए। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती फारस के एक सूफी संत थे, जो अजमेर में रहने लगे थे। कहा जाता है कि मुगल बादशाह हुमायूं ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की याद में यह दरगाह बनवाई थी और उनके बेटे अकबर अपने शासनकाल के दौरान हर साल यहां आते थे। अकबर और बाद में बादशाह शाहजहां ने दरगाह परिसर के अंदर मस्जिदें बनवाईं। अजमेर शरीफ दरगाह को भारत में मुस्लिमों के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।
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