Aam Aadmi Party in support of free schemes: नईदिल्ली। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने गैरजरूरी मुफ्त योजनाओं से अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान पर चिंता जाहिर की थी, राज्यों पर बकाया लाखों करोड़ों रुपए के कर्ज का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले के समाधान के लिए एक कमिटी बनाने के संकेत दिए थे। कोर्ट ने मामले से जुड़े पक्षों से इस कमिटी के संभावित सदस्यों के नाम सुझाने के लिए कहा था। मामले की अगली सुनवाई गुरुवार, 11 अगस्त को होनी है।
वहीं अब अपने राष्ट्रीय सचिव पंकज कुमार गुप्ता को प्रतिनिधि बना कर दाखिल आवेदन में आम आदमी पार्टी ने मुफ्त योजनाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय को राजनीतिक व्यक्ति बताया है। पार्टी ने कहा है कि उपाध्याय का भारतीय जनता पार्टी से लंबे समय से जुड़ाव रहा है, उनकी याचिका का मकसद जनहित नहीं, बल्कि राजनीतिक हित है।
Aam Aadmi Party in support of free schemes: ’आप’ ने मामले में खुद को भी पक्षकार बनाए जाने की मांग की है और कहा है कि भारतीय संविधान में कल्याणकारी राज्य अवधारणा दी गई है, सरकारों से यह उम्मीद की जाती है, वह समाज के हर तबके को सुविधाएं दें। ऐसे में, जरूरतमंद लोगों की सुविधा के लिए सरकार अगर कुछ उपलब्ध कराती है, तो उसे मुफ्तखोरी कहना गलत है।
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अश्विनी उपाध्याय की याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त की योजनाओं की घोषणा को मतदाताओं को रिश्वत देने की तरह देखा जाए। चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ऐसी घोषणा करने वाली पार्टी की मान्यता रद्द करे लेकिन आम आदमी पार्टी ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है। संविधान में इस अधिकार की कुछ सीमाएं ज़रूर दी गई हैं लेकिन नेताओं का अपने मंच से लोगों के कल्याण के लिए किसी योजना का वादा करना इस किसी सीमा का उल्लंघन नहीं करता। इसलिए, उनके भाषण को इस तरह नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
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बता दें कि मामले को सुनते हुए चीफ जस्टिस ने भी कहा था कि गरीब और जरूरतमंद लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में सहायता करना सरकारों का कर्तव्य है लेकिन गैरजरूरी मुफ्त की योजनाएं देश का बहुत नुकसान कर रही हैं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस तरह की घोषणाओं से होने वाले राजनीतिक लाभ के चलते कोई भी पार्टी कर्ज में डूबे राज्यों की अर्थव्यवस्था पर चर्चा नहीं करना चाहती।