लॉकडाउन में बेरोजगारी और बीमार मां की चिंता से हार गई एक जिंदगी, सुसाइड नोट में किया दर्द बयां.. देखिए | A life lost in lockdown due to unemployment and sick mother's concern

लॉकडाउन में बेरोजगारी और बीमार मां की चिंता से हार गई एक जिंदगी, सुसाइड नोट में किया दर्द बयां.. देखिए

लॉकडाउन में बेरोजगारी और बीमार मां की चिंता से हार गई एक जिंदगी, सुसाइड नोट में किया दर्द बयां.. देखिए

Edited By :  
Modified Date: November 29, 2022 / 08:11 PM IST
,
Published Date: May 30, 2020 9:11 am IST

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में एक सुसाइड केस सामने आया है। युवक के शव की शिनाख्त के बाद उसके पास से सुसाइड नोट बरामद किया गया है। इस सुसाइड नोट को पढ़कर आपको लॉकडाउन के दौरान गरीब निसहराय और बीमार लोगों की क्या हालत होगी इसका अंदाजा लगा सकते हैं।

पढ़ें- देश में कोरोना ने पकड़ी रफ्तार, 24 घंटे में 7,964 पॉजिटिव केस मिले,…

युवक का शव मैगलगंज रेलवे स्टेशन के रेलवे ट्रैक पर मिला। शव की पहचान भानू प्रताप गुप्ता के तौर पर की गई है। भानू की जेब से एक सुसाइड नोट मिला जिसमें उन्होंने अपनी गरीबी और बेरोजगारी का जिक्र किया है।

पढ़ें- विमानों के लिए मुसीबत बनी टिड्डियां, लैंडिंग और टेक ऑफ में आ रही दि…

भानू ने सुसाइड नोट में लिखा है कि राशन की दुकान से उसको गेहूं-चावल तो मिल जाता था, लेकिन ये सब नाकाफी थे। चीनी, चायपत्ती, दाल, सब्जी, मसाले जैसी रोजमर्रा की चीजें अब परचून वाला भी उधार नहीं देता था। मैं और मेरी विधवा मां लम्बे समय से बीमार हैं। गरीबी के चलते तड़प-तड़प के जी रहे हैं। शासन-प्रशासन से भी कोई सहयोग नहीं मिला। गरीबी का आलम ये है कि मेरे मरने के बाद मेरे अंतिम संस्कार भर का भी पैसा मेरे परिवार के पास नहीं है।

पढ़ें- भीषण गर्मी के बीच राहत देने वाली खबर, 1 जून को ही केरल तट पर दस्तक

भानू शाजहांपुर में एक होटल में काम करता था। लॉकडाउन की वजह से भानू लंबे समय से घर पर ही था। भानू की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। लॉकडाउन में नौकरी चले जाने से भानू के पास घर पर खाने को कुछ नहीं था। मां की इलाज के लिए पैसे नहीं थे। खुद भी कई बीमारियों से पीड़ित था। लॉकडाउन के बीच जिंदगी की जद्दोजहद से थक हारकर भानू ने मौत को ही गले लगाना उचित समझा।

पढ़ें- लोगों के बीच दो गज की दूरी कम होते ही बजेगा अलार्म, बीटेक के छात्र …

भानू और उसकी मां दोनों ही सांस की बीमारी से जूझ रहे थे। भानू के तीन बेटियां और एक बेटा हैं। घर पर बूढ़ी मां और बीमारी का बोझ था। घर की पूरी जिम्मेदारी भानू के कंधे पर थी। जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर भानू ने जिंदगी से हार मान ली और रेलवे ट्रैक पर लेट मौत को गले लिया।