(अनवारुल हक)
नयी दिल्ली, एक जनवरी (भाषा) देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव बेहतर संभावनाओं की उम्मीद जगाने वाला था लेकिन साल के आखिर में महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों ने पार्टी की उम्मीदों पर फिर से ब्रेक लगा दिया।
पिछले दिनों पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने पत्रकारों के साथ ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में 2024 का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘यह हमारे के लिए कभी खुशी, कभी गम वाला साल था।’’
देश की सबसे पुरानी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कुल 543 सीट में से 99 सीटें हासिल कीं और अपने गठबंधन के सहयोगियों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बहुमत से आंकड़े दूर रोकने में सफल रही।
इससे पहले, वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को क्रमश: 44 और 52 सीट हासिल हुईं थी तथा उसे संसद के निचले सदन में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भी नहीं मिल सका था। इस लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बने।
लोकसभा चुनाव में तुलनात्मक रूप से अच्छे प्रदर्शन के बाद कांग्रेस के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनावों में पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी। लेकिन लोकसभा चुनाव में संविधान को बड़ा मुद्दा बनाने वाली कांग्रेस का विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन निराशाजनक था।
कांग्रेस के लिए इस संसदीय चुनाव में बड़ी सफलता यह भी रही कि उसने भाजपा के ‘अबकी बार, 400 पार’ के नारे के मुकाबले के लिए ‘संविधान बदलने’ वाला एक ऐसा विमर्श खड़ा किया कि अनुसूचित जाति और जनजाति के एक बड़े हिस्से का उसे समर्थन मिला।
लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी के लिए पहला बड़ा झटका हरियाणा विधानसभा चुनाव का था जहां उसे अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा। भाजपा ने 10 साल की सत्ता के बाद फिर से जीत हासिल की। कांग्रेस ने इस हार के कारणों का पता करने के लिए एक समिति का गठन भी किया। हालांकि उसने कुछ स्थानों में ईवीएम को लेकर सवाल खड़े किए थे और हार को ‘अस्वीकार’ किया था।
कांग्रेस में गुटबाजी का सिलसिला हरियाणा में स्पष्ट तौर पर दिखा जब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और पार्टी महासचिव कुमारी सैलजा एक पार्टी में रहते हुए भी चुनावी रण में आमने-सामने नजर आए।
कांग्रेस अभी हरियाणा की हार से उबरी भी नहीं थी कि महाराष्ट्र में उसे और उसके गठबंधन ‘महा विकास आघाड़ी’ को बड़ा झटका लगा। यह गठबंधन 288 सदस्यीय विधानसभा में करीब 50 सीट ही हासिल कर सका, जबकि भाजपा की अगुवाई वाली ‘महायुति’ ने 230 से अधिक सीट जीतीं।
कांग्रेस के लिए बड़ा झटका यह भी था कि उसे सिर्फ 16 सीट हासिल हुईं जो राज्य विधानसभा में अब तक उसकी न्यूनतम संख्या है। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही उसे महाराष्ट्र में लोकसभा की 13 सीट हासिल हुई थीं।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, वह दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू सकी।
उसके लिए झारखंड विधानसभा चुनाव का नतीजा उत्साहजनक रहा, जहां उसने तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए 16 सीट हासिल कीं और ‘इंडिया’ गठबंधन के एक मजबूत घटक के रूप में उभरी। यह गठबंधन प्रदेश की 81 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीट हासिल करके अपनी सत्ता बरकरार रखने में सफल रहा।
बीते वर्ष कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा की चुनावी पारी का भी आगाज हुआ। वह केरल वायनाड के उपचुनाव में जीत हासिल करके पहली बार लोकसभा पहुंचीं। वह वर्तमान समय में संसद में गांधी परिवार की तीसरी सदस्य हैं। उनकी मां सोनिया गांधी अब राज्यसभा की सदस्य हैं और भाई राहुल गांधी लोकसभा में रायबरेली का प्रतिनिधित्व करते हैं।
राहुल गांधी ने बीते साल 14 जनवरी से 16 मार्च तक 6,200 किमी की 62 दिवसीय ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ भी की। यह यात्रा मणिपुर से शुरू हुई थी और मुंबई में इसका समापन हुआ।
कांग्रेस और राहुल गांधी ने वर्ष 2024 में संसद में आक्रामक रुख अपनाया और अदाणी तथा संविधान से जुड़े मुद्दों पर सरकार को घेरने का प्रयास किया। शीतकालीन सत्र के दौरान गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी को भी कांग्रेस ने बड़ा मुद्दा बनाया और बाबासाहेब आंबेडकर के अपमान का आरोप लगाया।
मुख्य विपक्षी दल ने साल के आखिर में 26 दिसंबर को कर्नाटक के बेलगावी में अपनी कार्य समिति की बैठक का आयोजन किया। यह बैठक 1924 के कांग्रेस के उस अधिवेशन के 100 साल पूरा होने के मौके पर आयोजित हुई थी जिसमें महात्मा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया था।
कार्य समिति की बैठक में कांग्रेस ने ‘संगठन सृजन’ की तत्काल शुरुआत करने का संकल्प लिया और कहा कि बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के ‘‘अपमान’’ तथा संविधान पर हमले के मुद्दे को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए वह राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करेगी।
उसने कहा कि 13 महीनों तक चलने वाले उसके अभियान के तहत पदयात्राएं करने के साथ ही ब्लॉक, जिला तथा प्रदेश स्तर पर संगोष्ठियों एवं जनसभाओं का आयोजन होगा।
कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के समापन के कुछ घंटे बाद ही 26 दिसंबर की रात को पूर्व प्रधानमंत्री और पार्टी के दिग्गज नेता मनमोहन सिंह का निधन हो गया।
सिंह के निधन के बाद कांग्रेस की कार्य समिति ने 27 दिसंबर की शाम बैठक कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
कार्य समिति की बैठक में पारित प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि कांग्रेस मनमोहन सिंह की स्मृति को संजोने और उनके योगदान को आगे बढ़ाने का संकल्प लेती है।
भाषा हक हक मनीषा
मनीषा
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कांग्रेस के लिए ‘कभी खुशी, कभी गम’ वाला साल रहा…
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