ग्वालियर: सड़कों पर 10 साल से कचरे में अपने लिए खाना ढूंढने वाले और भिखारी की तरह दिखने वाले इस व्यक्ति की जब पहचान उजागर हुई थी। सारे देश की सुर्खियां बन गई। सभी जानना चाहते हैं कि जिनके पिता एडिशनल एसपी थे और भाई थानेदार है। जिनकी पत्नी जज है, वो सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा 10 साल से भिखारी बनकर क्यों घूम रहा था। सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि इतने लंबे समय तक डिपार्टमेंट ने उनकी तलाश क्यों नहीं की?
दरअसल ग्वालियर में उपचुनाव की मतगणना के दिन डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिह भदौरिया गस्त लगा रहे थे और झांसी रोड की तरफ से गुजर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने सड़क के किनारे एक भिखारी को ठंड से ठिठुरते और कचरे के ढेर में खाना तलाशते देखा। इसपर दोनों अधिकारी रुककर उस भिखारी के पास पहुंचे। भिखारी की हालत देखकर एक अफसर ने जैकेट तो दूसरे ने अपना जूता दे दिया, लेकिन दोनों ही अधिकारी तब हैरान रह गए।
जब बातों-बातों में भिखारी ने बताया कि वह डीएसपी के ही बैच का ही ऑफिसर हैं। भिखारी ने अपना नाम मनीष मिश्रा बताया जिसने डीएसपी के साथ ही थानेदार के रूप में नौकरी ज्वाइन की थी। वह पिछले 10 सालों से लावारिस हालात में घूम रहा है। हैरत की बात ये है कि उसके पिता ASP थे, पत्नी जज और भाई थानेदार है। दरअसल अखबारों में कई तरह की खबरें छप रही है। बताया जा रहा है कि जब तक सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा पूरी तरह से स्वास्थ्य थे, पूरा परिवार उनके साथ रहता था लेकिन जैसे ही उनकी मानसिक स्थिति गड़बड़ाई, परिवार के लोगों ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया। अंत में उनकी अपनी पत्नी ने भी तलाक ले लिया।
बातचीत आगे बढ़ने के बाद पता चला कि मनीष मिश्रा डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिह भदौरिया दोनों अफसरों के साथ सन 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर भर्ती हुए थे। उन्होंने 2005 तक पुलिस की नौकरी की और अंतिम समय में दतिया में पोस्टेड रहे। वे एक शानदार निशानेबाज भी थे। सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा की कहानी में कई सवाल अहम है। उनके परिवार में पिता, चाचा, भाई और पत्नी कोई भी ऐसा नहीं है जो परिस्थितियों के आगे लाचार हो और मनीष के इलाज का खर्चा ना उठा सके। ऐसा क्या हुआ जो मनीष के परिवार ने उनका साथ छोड़ दिया।
ड्यूटी से अनुपस्थित होने से पहले कुछ ऐसा हुआ जिसने उनके मानसिक संतुलन को प्रभावित किया। क्या कारण है कि पुलिस डिपार्टमेंट में अपने एक जांबाज अधिकारी को तलाशने की कोशिश नहीं की? अनुपस्थित अधिकारी की तलाश और सेवा समाप्ति की कार्रवाई के लिए लंबी प्रक्रिया का पालन किया जाता है, क्या मनीष मिश्रा के केस में इस प्रक्रिया का पालन किया जा रहा था? पुलिस विभाग पर सवाल इसलिए क्योंकि मनीष मिश्रा के मिलने के 5 दिन बाद तक मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय की ओर से कोई बयान जारी नहीं हुआ है। क्या कारण है कि ज्यादातर मामलों में संवेदनशील नजर आने वाले गृह मंत्री डॉक्टर नरोत्तम मिश्रा ने सब-इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा के केस में कोई बयान नहीं दिया। जबकि मनीष मिश्रा की लास्ट पोस्टिंग दतिया में थी जो कि डॉ नरोत्तम मिश्रा का निर्वाचन क्षेत्र है।
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मनीष के मानसिक संतुलन खोने के मामले में आश्रम संचालक विकास गोस्वामी का भी कहना है कि जब भी मनीष से उसके परिवार उसकी पत्नी के बारे में बात की जाती है। तो वह अपना मानसिक संतुलन अचानक से खो बैठते हैं। काफी आक्रमक हो जाते हैं। जबकि सामान्य तौर पर वह अपने बैच में अधिकारियो ओर साथी पुलिस अधिकारियों से फोन पर गुफ्तगू करते हैं। फिलहाल ग्वालियर पुलिस के आधिकारियों ने मनीष मिश्रा भाई उमेश मिश्रा और चाइना मैं दूतावास में पदस्थ उनकी बहन मंजुला मिश्रा से बात कर मनीष की हालत के बारे में बाताया है। फिलहाल बड़े भाई उमेश मिश्रा, मनीष से मिलने जल ग्वालियर आने वाले हैं। लेकिन उनकी बहन मंजिला कब तक उनसे मिलने यहां पहुंचेंगी यह उन्होंने साफ नहीं किया है।
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