सिलगेर टू सारकेगुड़ा...भीड़...विरोध...साजिश! विरोध के पीछे नक्सलियों की साजिश या राजनीतिक षड़यंत्र? | Silger to Sarkeguda...crowd...protest...conspiracy! Naxalites conspiracy or political conspiracy behind the protest?

सिलगेर टू सारकेगुड़ा…भीड़…विरोध…साजिश! विरोध के पीछे नक्सलियों की साजिश या राजनीतिक षड़यंत्र?

सिलगेर टू सारकेगुड़ा...भीड़...विरोध...साजिश! विरोध के पीछे नक्सलियों की साजिश या राजनीतिक षड़यंत्र?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:21 PM IST, Published Date : June 29, 2021/6:17 pm IST

रायपुर: दशकों से नक्सल हिंसा का दंश झेल रहा बस्तर इन दिनों आदिवासियों के आंदोलन को लेकर सुर्खियों में है। सिलगेर में सुलगी विरोध की आग की तपिश अब सारकेगुड़ा में महसूस की जा रही है। सारकेगुड़ा गोलीकांड की बरसी के बहाने हजारों की संख्या में आदिवासी जुटे और साफ कर दिया कि जब तक उनकी मांगे नहीं मानी जाती, तो वो पीछे नहीं हटेंगे। सिलगेर के बाद सारकेगुड़ा में आदिवासियों का आंदोलन चिंताजनक संकेत है। इस संकेत में कई सवाल भी छिपे हैं। क्या सिलगेर से पुलिस और सरकार ने कोई सबक नहीं लिया? क्या आंदोलन के पीछे नक्सलियों का दबाव है? सवाल ये भी कि बस्तर में बार-बार संघर्ष की असल वजह क्या है?

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बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में विशाल जनसभा की ये तस्वीरें बीते 28 जून की है। हजारों की संख्या में आदिवासी सारकेगुड़ा गोलीकांड की 9वीं बरसी पर जुटे थे। इस मौके पर उन 17 आदिवासियों को श्रद्धांजलि दी गई, जो सुरक्षाबलों की फायरिंग में मारे गए थे। जनसभा में शामिल ग्रामीणों ने कहा कि वो सिलगेर को दूसरा सारकेगुड़ा नहीं बनने देंगे। ग्रामीणों ने बस्तर में बनाए जा रहे पुलिस कैंपों को हटाने के साथ सारकेगुड़ा के दोषियों को सजा देने की भी मांग की। जनसभा में पहुंचे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि बहुत से मामलों में नक्सलियों के प्रदर्शन ने सरकार को सोचने को मजबूर किया है।

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दरअसल सारकेगुड़ा गोलीकांड की बरसी के मौके पर बुलाई गई विशाल जनसभा। सिलगेर कैंप के विरोध में शुरू हुए आंदोलन की अगली कड़ी बताई जा रही है। सिलगेर से पीछे हटने के बाद आदिवासी एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर लामबंद हो रहे हैं। इसके पीछे उनकी मंशा को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, लेकिन बस्तर में बार-बार संघर्ष को लेकर विपक्ष सरकार की नीतियों को दोषी ठहरा रहा है। वहीं सरकार का दावा है कि नक्सली नहीं चाहते हैं कि बस्तर का विकास हो।

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पुलिस कैंपों के विरोध में सिलगेर के बाद सारकेगुड़ा में इकट्ठा हुई भीड़ के पीछे सबके अपने-अपने तर्क और दावे हैं। लेकिन सच ये है कि ये पहला मौका नहीं है जब आदिवासियों ने शासन-प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोला है। बोधघाट और नगरनार जैसी परियोजना का भी आदिवासी विरोध करते रहे हैं। अब सवाल है कि बस्तर में विकास कार्यों के विरोध के पीछे नक्सलियों की साजिश है या फिर राजनीतिक षड़यंत्र? जिसका जिक्र बीते दिनों कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा भी कर चुके हैं।

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