बिलासपुर : गरीबों को उनका आशियाना देने की एक अहम योजना बिलासपुर में दम तोड़ती नजर आ रही है। 58 करोड़ रुपए खर्च कर बनाए गए गरीबों के घर, आबंटन से पहले से ही खस्ताहाल होने लगे हैं। अधिकारियों की उदासीनता गरीबों के मकान पर भारी पड़ रही है। पक्के मकान बनाने और उसे गरीबों को आबंटित करने में भी निगम पिछड़ता जा रहा है।
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बिलासपुर के अशोक नगर में ये एक हजार 232 पक्के मकान 58 करोड़ की लागत से तैयार किए गए हैं। झुग्गी वासियों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनी इस कॉलोनी के भीतर कंक्रीट रोड, स्ट्रीट लाइट, मकानों में खिड़की, दरवाजे बिजली सभी सुविधाएं हैं। लेकिन आबंटन नहीं होने के कारण सालभर से ये मकान खाली पड़े हैं। देखरेख के अभाव में इन मकानों के खिड़की, दरवाजे टूट रहे हैं। नए बने 1232 मकानों में 1228 मकानों का सत्यापन हो गया है। लेकिन 75 हजार रुपए का आबंटन शुल्क जमा नहीं करने के कारण इसका पजेशन अटका है। कोविड संकट की वजह से आर्थिक संकट झेल रहे लोगों का कहना है कि वे एकमुश्त इतनी राशि नहीं दे सकते।
प्रत्येक मकान में केंद्र सरकार के डेढ़ लाख राज्य सरकार का ढाई लाख और लाभार्थी का अंश पंजीयन और आबंटन शुल्क समेत 75 हजार है। जिसमें दो कमरे, लेट बाथ और किचन युक्त पक्के मकान की लागत 4 लाख 75 हजार रुपए है। अफसरों का कहना है कि सिर्फ 22 हितग्राहियों ने ही आवंटन शुल्क जमा किया है। वहीं 330 हितग्राहियों ने केवल 5 हजार रुपए का पंजीयन शुल्क ही दिया है। हालांकि अब हितग्राहियों को समूह बनाकर या फिर माइक्रो फाइनेंस के जरिए लोन देकर मकानों का पजेशन देने पर विचार किया जा रहा है। गरीबों के मकान की इस स्थिति को लेकर अब सियासत भी शुरू हो गई है। पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।
आपको बता दें कि 2022 तक बिलासपुर में करीब 13000 झुग्गी वासियों के लिए पक्के मकान बनाने का लक्ष्य है। केंद्र और राज्य सरकार की स्वीकृति मिलने के बाद भी इसका 50 फ़ीसदी काम अधूरा है। नियम-कायदों के पेंच में मकान फंस गए हैं। अब देखना ये है कि कोरोना का काल देख रहे गरीबों को उनका आशियाना कब मिलेगा।