भोपाल: किसी के लापता होने के कई किस्से आपने सुने होंगे, कहीं आदमी लापता, तो कहीं सामान लापता। लेकिन हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की, जहां कई गांव लापता हैं। क्योंकि ‘एमपी अजब है सबसे गजब है’, जी हां लापता गांव भी कोई एक दो नहीं हैं बल्कि इनकी संख्या भी 17 हैं। इन लापतागंज में जमीन, पेड़-पौधे, आबादी, खेती, स्कूलों से लेकर लोगों के घरों तक सब कुछ गायब हो चुका है।
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राजधानी भोपाल के लाइफलाइन कहे जाने वाला बड़ा तालाब के कैचमेंट एरिया में आने वाले 32 मे से 17 गांव लापतागंज हो गए हैं। जी हां ये कोई कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है, सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन यह बात शत प्रतिशत सच है। अफसरों व रसूखदारों की मिली भगत का नजीता है। यह मामला खूबसूरत बड़ा तालाब से जुड़ा हुआ है। तालाब से लगी हुई बेशकीमती जमीनें ही इन गावों के गायब होने का कारण बन गई।
दरअसल यह सभी 17 गांव बड़े तालाब के कैंचमेंट एरिया में आते हैं। यहां कई ऐसे रसूखदारों हैं जिनकी जमीनें इस कैंचमेंट एरिया में आती हैं। व्यवस्थित शहरी विकास व तालाब संरक्षण के नाम पर मास्टर प्लान 2031 की रूपरेखा तैयार की गई। संरक्षण के बजाए निर्माणों के लिए इन गांवों को मास्टर प्लान की सूची में से गायब कर दिया गया। तालाब संरक्षण के लिए सरकार ने अहमदाबाद की सेप्ट यूनिवर्सिटी से रिपोर्ट तैयार कराई थी, इसमें भोपाल की सीमा में आने वाले कुल 49 तालाबों को चिन्हित किया गया। दावा भी किया कि सेप्ट की रिपोर्ट के आधार पर ही मास्टर प्लान में तालाब संरक्षण के लिए प्राविधान किए गए हैं। आईबीसी 24 ने पड़ताल में पाया कि इन तालाबों में से सिर्फ 32 तालाबों का वजूद ही मास्टर प्लान के दस्तावजों में था, जबकि 17 गांव शहरी विकास के कागजों में गायब मिले।
दरअसल मास्टर प्लान 2031 तैयार हुआ था तो तालाब संरक्षण के तीन जोन बनाए गए। प्राविधान भी ऐसे किए गए कि यहां व्यवसायिक या व्यक्तिगत बड़े निर्माण संभव नहीं है लिहाजा 17 गावों के गायब कर नियमों से बाहर करने का षडयंत्र रचा गया। मामले पर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले एक जागरूक नागरिक ने आपत्ति भी दर्ज कराई थी, लेकिन जिम्मेदारों ने इसे भी अनसुना कर दिया।
अर्बन एक्सपर्टों के अनुसार यदि केंद्र सरकार के वेटटैंड रूल 2017 का पालन किया जाता तो यह गड़बड़ी नहीं होती। यदि इसी गड़बड़ी के साथ मास्टर प्लान 2031 लागू कर दिया जाए तो इन बेशकीमती जमीन पर रसूखदारों के व्यवसायिक व अन्य निर्माण होना भी तय है। मतलब जिस मंसूबे से गड़बड़ी की गई तो वो कामयाब हो जाएगी।
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जिम्मेदारों का कहना है कि मास्टर प्लान 2031 को लेकर हुई दावे आपत्तियों की सुनवाई के बाद विचार मंथन किया जा रहा है। इसे मजह एक भूल मानकर दूर करने का दावा किया गया। किस-किस की फ्रिक कीजिए… किस-किस को रोईए? आराम बड़ी चीज है… मुहं ढककर सोईए…ऐसे ही हालात है हमारे सिस्टम के है…यदि बैठकों के दौर में एक भी जिम्मेदार नींद से जागे होते तो शायद कागजों में दफन हुए 17 गांव अपना अस्तित्व नहीं खोते।