रायपुर: छत्तीसगढ़ की स्कूल शिक्षा लाख कोशिशों के बावजूद देश के दूसरे राज्यों के सामने टिक नहीं पा रही है। करोड़ों के बजट और बेहतर स्टूडेंट-टीचर रेशियों के बाद भी राज्य का स्थान सबसे आखिरी पायदान पर आता है। हाल ही में जारी PGI रिपोर्ट ने इसका खुलासा किया है, इसकी वजह भी हैरान वाली है। विभाग के अधिकारियों की लापरवाही ने अच्छे खासे मार्क कम कर दिए। वहीं अपेक्षित सुधार के लिए सरकार की तरफ से पहल ना होना भी बड़ी वजह है।
दरअसल केन्द्र सरकार की ओर से हाल ही में PGI यानी परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स जारी की गई है, जिसमें छत्तीसगढ़ सबसे निचले पायदान पर रहा। 360 अंकों की कैटेगरी में छत्तीसगढ़ को 169 अंक ही मिले, जबकि 2017-18 में 213 अंक मिले थे। 2018-19 में थोड़े सुधार के साथ 219 अंक मिले थे, लेकिन 2019-20 में परफॉर्मेंस गिरकर 169 अंक पर आ गई।
इसकी कई हैरान कर देने वाली वजह है। दरअसल 2019-20 में सरकार ना तो प्रदेश के शिक्षकों की ट्रेनिंग करा पाई और ना ही स्कूल के प्राचार्य- हेड मास्टर की स्कूल लीडरशिप का प्रशिक्षण कराया। शिक्षा विभाग की इस लापरवाही से प्रदेश को 30 अंक का नुकसान हुआ। प्रदेश में शिक्षकों की नियुक्ति और उनके ट्रांसफर के ऑनलाइन सिस्टम का ना होना और मेरिट के आधार पर स्कूल के प्रिंसिपल की नियुक्ति ना होना भी पिछड़े रैंक की बड़ी वजह बनी। 20-20 अंकों के कुल 60 मार्क्स में प्रदेश को जीरो अंक मिले। स्कूली शिक्षा में बच्चों के इंट्रैक्शन को बढ़ावा देने के लिए 10 अंक का प्रावधान था, लेकिन शिक्षा विभाग एक स्कूल के बच्चों को दूसरे स्कूल में ले जाने का कार्यक्रम नहीं करा सके, इसमें भी जीरो मार्क ही मिले। हालांकि, प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री कोरोना काल को इन खामियों की बड़ी वजह बता रहे हैं।
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छत्तीसढ़ देश के उन चुनिंदा राज्यों में एक हैं जहां सारे शिक्षाकर्मियों को नियमित कर शिक्षक बना दिया गया, जहां शिक्षक-छात्र का अनुपात भी दूसरे राज्यों से बेहतर हैं। इसके बावजूद सालों से ऐसे सर्वे में पिछड़ते रहना कई बड़े सवाल खड़ा करता है। सवाल है, आखिर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी पढ़ाई के स्तर में हम पिछड़ क्यों जाते हैं?