रायपुर: आज हम बात करेंगे असम के चुनावी अखाड़े की, जहां इन दिनों जमकर छ्त्तीसगढ़िया दांव चला जा रहा है। एक तरफ सीएम भूपेश बघेल और उनकी टीम कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने छत्तीसगढ़ मॉडल पर काम कर रही है, तो दूसरी ओर सीएम बघेल को काउंटर करने पूर्व सीएम रमन सिंह भी असम पहुंच गए हैं और सरकार के वादाखिलाफी को चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस का दावा है कि रमन सिंह के असम जाकर प्रचार करने से कांग्रेस को ही लाभ होगा। बहरहाल असम के दंगल में मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री आमने-सामने हैं और छत्तीसगढ़ के मुद्दों पर लड़ाई भी जारी है। लेकिन बड़ा सवाल है कि असम की जनता बीजेपी-कांग्रेस के छत्तीसगढ़िया मॉडल पर कितना यकीन करती है?
असम में कल पहले चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार थम जाएगा, उससे पहले बीजेपी-कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन खास बात ये है कि असम के चुनावी जंग में छत्तीसगढ़िया दांव खूब चल रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी टीम सक्रिय है, तो दूसरी ओर इसके जवाब में भारतीय जनता पार्टी ने भी पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रमन सिंह को मैदान में उतारा है।
असम में रमन सिंह के मोर्चा संभालने के बाद कांग्रेस ने जुबानी हमला तेज कर दिया है। रमन सिंह के चुनावी सभाओं को लेकर प्रभारी विकास उपाध्याय ने ट्वीट कर तंज कसा कि क्या बताएंगे असम को रमन सिंह जी? कैसे रमन राज में किसान आत्महत्या करते रहे? कैसे गरीब और गरीब होता गया? कैसे जनता से किए वादे कभी पूरे नहीं किए? असम की जनता को ठगना मुश्किल है सिंह साहब! हालांकि बीजेपी का कहना है कि रमन सिंह असम की जनता को छत्तीसगढ़ सरकार की वास्तविकता बताने गए हैं कि कैसे जनता से झूठे वादे कर कांग्रेस सत्ता में आई।
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दूसरी ओर सीएम भूपेश बघेल के साथ उनके मंत्री, विधायक और करीब 100 पार्टी नेताओं की टीम भी यहां लंबे समय से जमी हुई है। कांग्रेस नेता असम में भूपेश सरकार के मॉडल को लेकर जनता के बीच पहुंच रहे हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि बघेल असम में अपनी बूथ-लेवल स्ट्रैटजी से बीजेपी को मात देने में सफल होंगे जिसके दम पर उन्होंने 2018 में छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की 15 साल से चल रही सरकार को उखाड़ फेंका। बुधवार को डिब्रूगढ़ और शिवसागर में रोड शो कर सीएम ने जनता के सामने दो साल की उपलब्धियों रखा। साथ ही कहा इस बार असम परिवर्तन के लिए तैयार है।
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कुल मिलाकर असम में कांग्रेस और बीजेपी के बड़े नेताओं का चुनाव प्रचार में जोर लगाने के पीछे एक वजह ये भी है कि असम में तकरीबन 30 लाख छत्तीसगढ़िया हैं जो कि 30 विधानसभा क्षेत्र में निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसे में कांग्रेस जहां हाइकमान के निर्देश पर भूपेश सरकार के मॉडल को लेकर लगातार कैंपेनिंग में जुटे हैं, तो वहीं बीजेपी उस मॉडल को काउंटर करने लगातार मोर्चाबंदी कर रही है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि 27 मार्च को असम में होने वाले पहले चरण की वोटिंग में जनता किसकी बातों पर यकिन करती है।