Maa Aangarmoti Temple नवरात्रि… उछाह, उल्लास के संग देवी दाई दुर्गा के पूजा-पाठ के परब आय। जब कहूं नवरात्रि के बात आथे ता मन हा उछाह ले भर जाथे। आज ले शक्ति के मान-गौन के परब हा सुरू होवत हे। आप ला पहिली दिन दरसन कराथन धमतरी के गंगरेल मा विराजे दाई अंगारमोती के.. वइसे तो छत्तीसगढ़ राज ला दुर्गा दाई के बड़ आसीस मिले हे अउ मिलत हे। चारों मुड़ा कोनो न कोनो रूप मा अपन आसन लगाके देवी दाई हा छत्तीसगढ़िया भगत मन ला मया-दुलार देवत हे। धमतरी जिला के गंगरेल मा बांध के तीर मा मां आदिशक्ति हा अंगारमोती के रूप मा विराजे हे।
सब के कष्ट हरइया, मया बरसइया मां अंगारमोती ला अंगिरा रिसी के बेटी आय। कहे जाथे कि रिसी अंगिरा हा अपन तप शक्ति के परभाव ले उनला आगी ले सिरजाय हे। तेकरे सेती उंकर नांव अंगारमोती परगे हे। अंगारमोती के मूल जगा गंगरेल बांध के डूबान चंवर, बटरेल, कोकड़ी, कोरलमा चारों गांव के सरहद ला माने जाथे। तब ये हा 52 गांव के इष्ट देवी रिहिस। सन 1976 मा जब गंगरेल बांध सिरजन के नेंव रखे जावत रिहिस, तब माता के जगा बदले के जोखा घलो मढ़ाए गिस। सियनहा मन बताथे कि ओ समय गांव वाला मन कहिन कि दाई अउ लइका कइसे अलग हो सकत हे। जब विस्थापन करना हे ता गांव वाला मन संग देवी-देवता मन घलो जाही। सबो के सहमति के बाद दाई के जगा घलो बदले गिस अउ गंगरेल गांव के सरहद मा बांध के तीर मा दाई के आसन बनाय गिस। आज मां अंगारमोती के दरसन इही जगा होथे।
अंगारमोती माता के परछो के बड़ अकन किस्सा-कहानी आम लोगन के बीच मा कहे-सुने बर मिलथे। सबसे खास बात ये हे कि माता अंगारमोती कोनो मंदिर, देवाला या भवन मा नइ, बल्कि खुल्ला अगास के खाल्हे अपन भगत मन ला अपन अछरा के छांव देवत हे। मंदिर के पूजेरी सुदेव सिंह मरकाम जी बताथे कि मां अंगारमोती हा वनदेवी आय। जंगल-झाड़ी मा घुमइया मन कोनों भवन मा थोड़ी रही। माता जी हा कुंवारी के संगे-संग बिना छत्र-छाया के हे। तेकरे सेती माता ला मंदिर, देवाला अउ भवन नइ भावय। यहू कहे जाथे कि कई बेर मंदिर बनाय के उदिम करे गिस, फेर सफलता नइ मिलिस। बरोड़ा, गरेरा आके सब चीज ला उड़ा के ले जावय।
दाई अंगारमोती के इतिहास धमतरी के बिलाई माता के संघरा माने जाथे। कहे जाथे कि सिहावा के सात रिसी मन के आश्रम ले जब दोनों देवी मन निकलिस ता महानदी के भंडार दिसा मानें उत्तर दिसा में धमतरी सहर कोती देवी बिलाई माता के अउ महानदी के रक्सहू दिसा मा नगरी-सिहावा डहर देवी अंगारमोती ला अधिकार दे गिस। कहे जाथे कि चंवर गांव ले सन 1937 मा देवी के मूल मुरति चोरी होगे रिहिस, फेर चोर उंकर पांव ला नई लेग सकिस। विस्थापन के बेरा देवी के पांव ला गंगरेल लाने गिस और स्थापना करे गिस। चोरी होय मुरति के अभी तक पता नइ मिलिस। तेकरे सेती प्रतीकात्मक रूप से देवी मां के नाव मूर्ति गंगरेल में पूजा-पाठ बर लाने गिस।
माता अंगारमोती ला कुंवारी माने जाथे। इहां माइलोलिन मन ला मुड़ ढांके के मनाही। संगे-संग कुहकू या कोनों आने परकार के मांग भरके मां के तीर मा नइ जावय। मां अंगारमोती के तीर मा भंगाराम देवी के मंदिर घलो हे। कहे जाथे कि भंगाराम देवी हा बस्तर के संगे-संग ओकर ले सटे जगा मन के देवी-देवता मन ला अदालत लगाके ओमन ला सजा देथे। वइसे तो भंगाराम देवी के मंदिर कोंडागांव मा हावय, लेकिन अंगारमोती दाई के अंगना मा घलो हावय। ये जगा माइलोगिन के मन के जाना मनाही हे। ओकर परसाद ला घलव कोनों माइलोगिन मन नइ खावय।
अध्यात्म अउ देवी-देवता मन ले जुड़े कतकोन मान्यता हमर समाज मा कहे-सुने बर मिलथे। मां अंगारमोती ला लेके कई ठिन परोछ समाज के अलग-अलग लोगन बताथे। कहे जाथे कि माता के सात झन बहिनी मन गंगरेल के आसपास मा मौजूद हे। हालांकि सुदेव मरकाम हा ये दावा ला खारिज करथे अउ कहिथे कि अंगारमोती गंगरेल बाट मा एक्के झन विराजमान हे। उन कहिथे कि गंगरेल मा भंगाराम देवी अउ मतवार डोकरा हा पहिल्लिच हे। बाकी मंदिर मन ला लोगन अपन आस्था के अनुसार स्थापित करे हे। हालांकि उन ये घलव कहिथे कि मां अंगारमोती के सहयोगी के रूप मा धमतरी के बिलाई माता संगे बस्तर के देवी-देवता मन हे।
Maa Aangarmoti Temple मां अंगारमोती परछो तो जग जाहिर हे़। कतके भगत मन मन के झोली उन भरे हे। भगत मन बताथे कि दाई अंगारमोती बड़ मयारुक हे। अगर कोनो भगत मंदिर मा नइ आ सकय ता उन हा घरे ले दाई के सुमिरन के मन्नत मांगथे। वहू मन्नत हा पूरा होथे। बात अतका हे कि नियम-धियम ले चले बर परथे। बाद मा उन अपन कहे अनुसार दाई के मानगौन करथे। मां अंगारमोती मा बलि प्रथा आज घलो प्रचलित हे। शुक्रवार अउ इतवार के दिन भगत मन के इंहा रेला लगे रहिथे।
गंगरेल बांध के लहरा मारत पानी के तीर मा बइठे मां अगारमोती के मान्यता दुरिहा-दुरिहा तक फइले हे। देवारी तिहार के पहिली शुक्रवार को इंहा मड़ई होथे, जेमा 52 गांव के देवी-देवता मन संघरथे। निसंतान माइलोगिन मन मंदिर के आगु मा नरियर, अगरबत्ती अउ नींबू धरके लाइन लगा के खड़े रथे। जइसे ही बइगा हा आथे, वइसने माइलोगिन मन पेट के बल सुत जाथे। तहान बइगा ओकरे मन के उपर रेंगथे। कहे जाथे कि बइगा के उपर देवी सवार होथे। जेन माइलोगिन के उपर बइगा के पांव छुवाथे, ओकर सुन्ना कोख भर जाथे। पूरा छत्तीसगढ़ मा सबले पहिली मंडई गंगरेल मा होथे। तेकर पाछू अउ आने जगा मन मा अइसन आयोजन होथे।
सब्द जोरइयाः-
दीपक साहू