Kankali Mata Mandir Petchua उछाह, उल्लास अउ आरुग उज्जर से संदेशा के परब नवरात्रि के आज तीसरइया दिन आय। चंद्रघंटा मइया के सुमरिन करत आज आप ला लेगथन.. धमतरी-चारामा राष्ट्रीय राजमार्ग के बीच म मरकाटोला गांव तीर पेटेचुआ गांव, जिंहा बिराज हे.. कंकालीन माई। चलव जानथन पेटेचुआ के कंकालीन दाई के का महिमा हे?
पेटेचुआ गांव के कंकालीन दाई के दुरिहा-दुरिहा के लोगन मन बड़ मानथे। माता के परोछ ला कतकोन अकन भगत मन पाय हे। कहे जाथे माता कंकालीन हा अपन भगत के हर आसा ला पूरा करथे। मां कंकालीन के पूरा कहानी हा महुआ बिनई के एक ठन किस्सा ले जुड़े हे। चूंकि छत्तीसगढ़ के जंगलराज के रहवइया मनखे मन अपन आमदनी बर जंगल मा ही आसरित रहिथे। जंगल-झाड़ी मा उपजे जड़ी-बुटी के संगे-संग अउ आने चीज मन ला बेच-भांज के अपन जरूरत ला पूरा करथे। अइसने पेटेचुआ गांव के लछिमन बइगा हा पेट बिगारी बर गर्मी के मउसम में मउहा बीने पर जावय। लछिमन हा हरदिन मउंहा तो बीन के एक खेप लानय अउ सुखो देवय। दूसर खेप के लानत से ओखर मउंहा ला कोनों अनजान मनखे का लुका देवत रहिस। एक दिन त एक दिन.. सरलग दस-पंदरा दिन अइसने होइस। लछिमन बइगा ला संसो होगे। दू चार दिन तो बइगा ला कुछ समझ नइ आइस। एक दिन बइगा ये खोजे के उदिम करिस कि आखिर महुआ ला लेगत हे ता कोन लेगत हे, फेर ओला ये काम मा सफलता नई मिलिस। Kankali Mata Mandir Petchua
एक दिन अइसने संझाकुन महुआ बीने के बेरा एक नारी हा प्रगट होइन। दिखब मा एकदम देवीच्च कस रिहिस। माथ मा मुकुट, हाथ मा तिरसूल भाला, बघवा के सवारी मा देवी ला देख बइगा ह सुकुडदुम रहिगे। बइगा के हाल ला देखके देवी किहिस कि तंय झन घबरा बेटा मंय कंकालीन देवी हरंव। तंय ह मोला गांव म स्थापित कर ताहन मंय ए अंचल के जम्मो बिपत्ती दूर करहूं। अब तंय मोर बात ल मान, तंय ह आगू-आगू चल मंय तोर पाछू-पाछु आवत हंव। ये बेरा देवी का एक ठिन सर्त घलो राखिन अउ कहिन कि तोला पाछू कोती नइ देखना हे, लेकिन बइगा हा बीच में देख पारिस। बइगा के लहूट के देखते साठ देवी अचानक छप होगे। बइगा ह उही मेर माटी कोड़ के बढ़िया देवी के मूरती बनइस। ओला जउन जघा ले देवी लुप्त होए रिहिस उही जघा स्थापित करके अपन जिम्मेदारी ल पूरा करिस।
पेटेचुआ गांव के कंकालीन दाई के मंदिर निर्माण के कहानी घलव बड़ अचरच भरे हे। पहिली मां कंकालीन के मुरति खुल्ला आगास के खाल्हे मा रिहिस। बाद मा खदर छानी वाला मंदिर बनाय के जोखा मढ़ाए गिस। गांववाला मन मंदिर सिरजन के कहानी बतावत कहिथे कि खप्पर वाला मंदिर के सिरजन चरोटा गांव के लोगन मन कराए हे। एक बेर चरोटा गांव मा हैजा फइल गे रिहिस। गांव मा हर दिन काकरो न काकरो मउंत हो जावत रिहिस। तब चरोटा के मनखे मन पेटेचुआ के मां कंकालीन के बारे में सुनिस और सियान मन तुरतें उंहा पहुंचिस। दाई के पंवरी मा गोहार लगाए के बाद उंकर समस्या के समाधान होइस। गांव वाला मन मां कंकालीन के परछो ला जानिन अउ मंदिर सिरजन के जोखा मड़ाइन।
वइसे तो हमर कोती दसहरा नवरात्रि के एक दिन बाद माने दसमी के दिन मनाए जाथे, लेकिन पेटेचुआ मा पितृमोक्ष यानी पितरखेदा के बाद अवइया पहिली मंगलवार को मनाए जाथे। ये दिन मनाए जाना वाला देस के पहिली दसराहा आय। ये दिन हजारो-हजार भगत मन गांव मा आथे अउ मां कंकालीन ले अपन आसा पुराय के आसीस मांगथे। ये दिन बिहनिया ले भगत दाई के दरसन खातिर आथे। देव दसराहा मा आसपास के गांव वाला मन घलव बाजा-गाजा, डांग-डोरी धरके आथे।
पेटेचुआ गांव ला कंकालीन पेटेचुआ के नांव ले जाने जाथे। गांव वाला बताथे कि पहिली गांव के नाव पेटेचुआ रिहिस। मां कंकालीन पधारे के बाद ले गांव के नाम बदले गिस अउ कंकालीन पेटेचुआ करे गिस। तब ले आज तक गांव ला कंकालीन पेटेचुआ के नांव से जाने जाथे।
संकलन-
दीपक साहू
मोहंदी, मगरलोड