रिपोर्ट- जितेंद्र थवाईत, रायपुर: Coal Crisis in Chhattisgarh प्रदेश के छोटे उद्योगों को जितना कोयला मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल पा रहा है। रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर और रायपुर जिलों में लगे कई बड़े स्टील प्लांट, जो पिछले कई सालों से राज्य के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते आए हैं, आज कोयले के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं। इन्हें अब तक SECL से कोयले की आपूर्ति होती आई थी, लेकिन इस साल पीक टाइम में कोयला नहीं मिलने से इनकी हालत लगातार खराब हो रही है। उत्पादन प्रभावित हो रहा है। छत्तीसगढ़ लघु उद्योग संघ कोल संकट के लिए SECL को जिम्मेदार ठहरा रहा है।
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Coal Crisis in Chhattisgarh छत्तीसगढ़ में एक बार फिर कोयले को लेकर कोहराम मचा हुआ है। पीक टाइम में कोयला नहीं मिलने से लघु उद्योगों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। राज्य की ओर से CSIDC ने कोयला की खरीदी के लिए SECL को भुगतान भी कर दिया है। इसके बावजूद SECL कोयले की सप्लाई नहीं कर रहा है। स्थिति ये है कि, कोयले की कमी के कारण अब लघु उद्योगों का उत्पादन प्रभावित होने लगा है।
छत्तीसगढ़ लघु एवं सहायक उद्योग संघ की माने तो 8 हज़ार टन कोयले के लिए इस महीने एडवांस में पैसा जमा कर दिया गया है, उसके बावजूद उद्योगों को कोयले का अलॉटमेंट नहीं मिल रहा है। ये पहली बार नहीं है जब लघु उद्योगों के सामने कोयले का संकट है। लघु उद्योगों को हर वित्तीय वर्ष में कोल संकट से जूझना पड़ता है। दरअसल, भारत सरकार के कोयला मंत्रालय ने लघु उद्योगों के लिए राज्य सरकार को हर साल 1 लाख टन कोयला अलॉट किया है। राज्य सरकार ने कोयले को लघु उद्योगों को बांटने के लिए सीएसआईडीसी को अधिकृत किया है, जिनके द्वारा भुगतान करने के बाद भी SECL कोयले की सप्लाई नहीं कर रहा है। छत्तीसगढ़ लघु एवं सहायक उद्योग संघ का आरोप है कि, इस वर्ष भी मार्च में लेप्स होने का इंतजार किया जा रहा है। वहीं SECL प्रबंधन ने कोयले की कोई कमी नहीं होने का दावा किया है।
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प्रदेश के छोटे उद्योगों को कोयला सप्लाई नहीं होने पर सियासत भी तेज हो गई है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का कहना है केंद्र सरकार लगातार कोशिश कर रही है कि किसी को कोल संकट न हो, राज्य सरकार को भी इस समस्या को दूर करने प्रयास करना चाहिए। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि केंद्र की गलत नीतियों की वजह से कोयले की कमी पूरे देश में हो रही है।
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सियासी आरोप प्रत्यारोप के इतर हकीकत यही है कि प्रदेश में छोटे उद्योग कोयले की भारी कमी से जूझ रहे हैं और आने वाले दिनों इसका सीधा असर प्रदेश के आर्थिक विकास और यहां के राजस्व पर पड़ेगा। ऐसे में सवाल है ही कि छत्तीसगढ़ के हितों का अगर नुकसान हो रहा है तो उसके लिए जिम्मेदार कौन है?