रायपुर, 22 मार्च (भाषा) अपने लेखन से जादुई संसार गढ़ने वाले हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल की रचनाएं फिल्मकारों और नाट्यकारों को बेहद आकर्षित करती रही हैं।
शुक्ल के प्रसिद्ध उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणि कौल ने 1999 में इसी नाम से एक फिल्म बनाई थी। उनकी लोकप्रिय कहानी ‘आदमी की औरत’ पर अमित दत्ता ने एक फिल्म बनाई थी, जिसे वेनिस फिल्म महोत्सव के 66वें समारोह (2009) में विशेष इवेंट पुरस्कार मिला था। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उनके उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ पर मोहन महर्षि नाम के रंगमंच निर्देशक ने नाटक तैयार किया।
भारतीय ज्ञानपीठ ने शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए 2024 का ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा की है।
वह हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। शुक्ल छत्तीसगढ़ राज्य के ऐसे पहले लेखक हैं, जिन्हें इस सम्मान से नवाजा जाएगा।
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि, कथाकार और उपन्यासकार हैं। एक जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे शुक्ल हिंदी साहित्य के वृहत्तर परिदृश्य में अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट और संवेदनात्मक गहराई के लिए जाने जाते हैं।
उनकी मौलिक लेखन शैली ने भारतीय और वैश्विक साहित्य को प्रभावित किया है।
शुक्ल अपनी पीढ़ी के ऐसे अकेले लेखक माने जाते हैं, जिनके लेखन ने एक नयी तरह की आलोचना दृष्टि को आविष्कृत करने की प्रेरणा दी है।
डेढ़ दशक से ज्यादा समय से बच्चे और किशोर, शुक्ल के लेखन के केंद्र में हैं। बच्चों के लिए उन्होंने उपन्यास, कहानियां और कविताएं रची हैं, जिनके संग्रह प्रकाशित हैं।
विनोद कुमार शुक्ल को इससे पहले अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें भारत सरकार का ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, मध्यप्रदेश शासन का ‘राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’, मोदी फाउंडेशन का ‘दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान’, अमर उजाला का ‘आकाशदीप अलंकरण’ आदि प्रमुख हैं।
साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान ‘महत्तर सदस्यता (फेलोशिप)’ से सम्मानित किया है।
अंतरराष्ट्रीय साहित्य में शुक्ल के योगदान पर उन्हें वर्ष 2023 के ‘पेन-नोबोकोव अवार्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर’ से सम्मानित किया गया है।
उनकी रचनाओं के भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट, संवेदनात्मक गहराई, उत्कृष्ट सृजनशीलता से शुक्ल ने भारतीय और वैश्विक साहित्य को समृद्ध किया है।
‘लगभग जयहिंद’ (197):, ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ (1981), ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ (1992), अतिरिक्त नहीं (2000) उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं।
शुक्ल ‘नौकर की कमीज’ (1979), ‘खिलेगा तो देखेंगे’ (1996), ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ (1997), ‘एक चुप्पी जगह’ (2018) जैसे उपन्यासों के रचयिता हैं।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने पर बधाई दी है। साय ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ”देश के लब्धप्रतिष्ठ उपन्यासकार–कवि आदरणीय विनोद कुमार शुक्ल जी को प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का समाचार प्राप्त हुआ है। यह छत्तीसगढ़ के लिये गौरव की बात है। आदरणीय शुक्ल जी को अशेष बधाई। उन्होंने एक बार पुनः छत्तीसगढ़ को भारत के साहित्यिक पटल पर गौरवान्वित होने का अवसर दिया है। शुक्ल जी के सुदीर्घ और स्वस्थ जीवन की कामना।”
भाषा संजीव जितेंद्र दिलीप
दिलीप
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