The plight of the adopted sons of the President

Balrampur News: राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों का हाल बेहाल..! आजादी के 75 साल बाद भी नहीं मिल पाई ऐसी सुविधाएं

राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों का हाल बेहाल..! आजादी के 75 साल बाद भी नहीं मिल पाई ऐसी सुविधाएं The plight of the adopted sons of the President

Edited By :   Modified Date:  April 3, 2023 / 05:56 PM IST, Published Date : April 3, 2023/5:45 pm IST

बलरामपुर। जिले में विकास के दावों की पोल खोलती हुई एक तस्वीर सामने आई है, जहां आजादी के सात दसक बाद भी ग्राम पंचायत भूताही में राष्ट्रपति के दत्तक कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा विशेष पिछड़ी जनजाति वाले गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क,बिजली,पानी और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए आज भी ग्रामीण तरस रहे हैं। मामला सामने आने के बाद संसदीय सचिव चिंतामणि महाराज ने गांव में जल्द ही मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का आश्वासन देते नजर आ रहे है, जबकि अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।

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बलरामपुर जिले में कुशमी जनपद पंचायत के पुनदांग ग्राम पंचायत का आश्रित गांव भुताही जहां पर करीब 70 से 75 घरो की आबादी है और इसमें करीब 375 से ज्यादा लोग निवासरत है। ये आबादी विशेष पिछड़ी जनजातियों की है, जो मूलतः जंगलों और पहाड़ों में ही निवास करते है और ये राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी कहे जाते है। भुताही गांव छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमा से लगा हुआ है। यहां एक समय नक्सलियों की आमद रफ्त हुआ करती थी, लेकिन वो अब पुरानी बाते हो चुकी है क्योंकि क्षेत्र को नक्सल मुक्क्त कराने के उद्देश्य से सामरी थाना क्षेत्र के अंतर्गत करीब चार सीआरपीएफ और जिला पुलिस बल के जॉइंट कैम्प खोल दिये गए, जिससे अब क्षेत्र में अमन चैन बना हुआ है।

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भुताही गांव सीआरपीएफ कैम्प से महज चार किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है। कैंप तक प्रशासन का आना जाना भी है, लेकिन भुताही गांव में आज तक कोई नहीं पहुंच सका है, जिसका मुख्य कारण गांव तक सड़क नहीं है। पहाड़ी रास्तो को तय करके पैदल ही गांव तक पहुंचा जा सकता है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में शुद्ध पेयजल की कोई सुविधा नहीं है जिसके कारण ग्रामीण नदी और नाले का दूषित पानी पीते आ रहे है, जिसके कारण मौसमी बीमारियों का खतरा बना रहता है और इलाज के लिए मरीजो को खाट के सहारे ही पहाड़ी रास्ते से मुख्य मुख्य मार्ग तक पहुंचाया जाता है, क्योंकि यहां स्वास्थ्य की कोई सुविधा नहीं है। इसके अलावा गांव में मात्र पांच लोग ही पांचवी तक पढ़े लिखे है क्योंकि यहां कच्चे घर में प्राथमिक स्कूल तो संचालित है मगर शिक्षक पढ़ाने के लिए स्कूल ही नहीं आते है। यही हाल आनगबाड़ी केंद्र का है जो महज कागजो में ही संचालित हो रहा है।

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यही कारण है कि यहां के ग्रामीण आज भी शिक्षा से वंचित है और बिजली नही पहुँच पाई जिसे ग्रामीणों को अंधेरे में ही रात गुजारनी पड़ती है। हालांकि प्रशासन ने कुछ ग्रामीणों को सौर ऊर्जा का कनेक्शन दिया था, परंतु खराब होने की स्थिति है गांव में कोई रोजगार नहीं है। यही वजह है कि ग्रामीण रोजगार की तलाश में यहां से पलायन करके दूसरी जगहों पर रोजगार की तलाश में जाते है। इसके अलावा ग्रामीणो के जीवन का सहारा यहां की वन संपदा ही है, जिसको बेचकर ग्रामीण अपना गुजर बसर करते है।

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ग्रामीणों का आरोप है कि गांव के सरपंच सिर्फ चुनाव के समय वोट मांगने के लिए गांव में आते है और क्षेत्रीय विधायक का तो ग्रामीण आज तक दर्शन ही नहीं किये है। शासन और प्रशासन की अनदेखी से ग्रामीणो में नाराजगी भी साफ देखी जा सकती है। हालांकि जब मीडिया के माध्यम से गांव के हालात की जानकारी संसदीय सचिव चिंतामणि महाराज को दी गई तो उन्होंने गांव तक सड़क बनवाकर गांव में मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की बात तो कही, लेकिन ये कब तक मिल पाएगी इसकी कोई गारंटी नहीं है, वही पूरे मामले जिला प्रशासन के अधिकारी कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से साफ इंकार कर दिया है। IBC24 से अरुण सोनी की रिपोर्ट 

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