CG Naxal News: रायपुर। देश के मध्य में बसा दंडकारण्य, माओवादियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना रहा है, लेकिन बीते 4 महीनों में पुलिस और सुरक्षाबलों के सिलसिलेवार साझा एक्शन का असर दिखने लगा है। 10 मई को बीजापुर में,दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर सरहद पर पीडिया के जंगल में जवानों ने 12 माओवादियों को ढेर कर दिया। मारे गए सभी नक्सलियों की पहचान हो चुकी है। मौके से हथियार और नक्सलियों का सामान मिला है। अहम बात ये कि इस बार भी ये कामयाबी बिना किसी नुकसान के मिली है, लेकिन इस बार भी मुठभेड़ में मिली सफलता सियासी लांछनों से बच ना सकी। विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है तो सत्ता पक्ष ने इसे विपक्ष का असल चेहरा बताया है। आखिर जनावों के सफल ऑपरेशन्स के बाद भी नक्सल उन्मूलन के मुद्दे पर सियासत क्यों हे रही ?
बीजापुर में 12 नक्सलियों को ढेर करने के बाद से साफ है कि बीते महीनों में बस्तर में पुलिस फोर्स के ताबड़तोड़ एक्शन से नक्सल मोर्चे पर पुलिस की नई रणनीति और बेहतर तालमेल असरकारक साबित हुई है। बस्तर में फोर्सेज के विभिन्न ऑपरेशन्स में इस साल 2024 में जनवरी से अब तक 104 नक्सलियों को ढेर किया, जिसमें कुछ बेहद कामयाब बड़े ऑपरेशन शामिल हैं। 10 मई को बीजापुर में 12 नक्सली ढेर हुए। इसके पहले 1 अप्रैल को बीजापुर में 10 नक्सली ढेर, 16 अप्रैल को कांकेर में 29 नक्सली, जबकि 30 अप्रैल को नारायणपुर में 10 नक्सली मारे गए। इसके अलावा जनवरी से मई तक 250 से ज्यादा नक्सलियों ने किया सरेंडर किया है। साथ ही घोर नक्सल प्रभावित 7 जिलों में 60 से ज्यादा नए पुलिस कैंप खोले गए हैं।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहले ही ऐलान कर चुके हैं, कि अगले 2 साल में माओवादियों के पूर्ण सफाये का प्लान तैयार है, जबकि प्रदेश सरकार बार-बार चेता चुकी है कि या तो माओवादी सरकार से बात को आगे आएं, या सरेंडर कर दें, वर्ना उनकी प्राथमिता नक्सल मुक्त प्रदेश बनाने की है। ऑपरेशन्स जारी रहेंगे। इधर विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक तरफ बातचीत का ऑफर दिया जाता है, दूसरी तरफ एनकाउंटर किया जाता है। सरकार बताए तो कि वो चाहती क्या है ?
इस मुद्दे पर भी सियासी स्कोप ढूंढ़ा जा रहा है, लेकिन असल में ये साफ दिख रहा है कि अब छत्तीसगढ़ पुलिस, आंध्रा की ग्रे-हाउंड फोर्स की तर्ज पर क्षमता विकास कर, इंटेलिजेंस, सर्विलांस और ऑपरेशनल स्ट्रेटजी के बेहतर इस्तेमाल से कामयाबी पा रही है। उन्हें सपोर्ट करते हुए केंद्र और राज्य सरकारें भी माओवादियों के सफाए के, स्थाई समाधान के इरादे जाहिर कर चुकी है। नक्सलियों को दो-टूक सरेंडर या बातचीत का विकल्प दे चुकी है। ऐसे में सवाल है, क्या इस संवेदनशील मसले पर सियासत ठीक है, क्या अब इस विषय पर ब्लेम-गेम छोड़ सही में एक स्वर की जरूरत नहीं है?
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