CG Ki Baat: रायपुर। छत्तीसगढ़ में एक बार फिर नौनिहालों के हक पर डाका डाला गया। मामला गंभीर है, जिसमें शिक्षा सत्र 2024-25 के लिए लाखों की लागत से किताबें छापीं तो गईं, लेकिन बच्चों तक नहीं पहुंची। हद ये कि ये नई-नवेली किताबें कबाड़ के दाम पर बेच दी गई। सबसे गंभीर बात ये कि ये सब उनकी देखरेख में हुआ जिन पर किताबों को बांटने की जिम्मेदारी थी। मामला खुला तो फौरी एक्शन भी दिखा, लेकिन क्या इतना एक्शन पर्याप्त है? क्योंकि इससे ना तो सवाल खत्म हुए और ना ही इससे जुड़ी चिंता।
सवाल ये कि ऐसी अंधेरगर्दी हुई कैसे। अगर वाकई सरकार करप्श पर जीरो टॉलरेंस अपना रहा है तो फिर सबसे बड़ी चिंता ये है कि कौन है जो सरकार की इस मंशा पर खुलेआम पलीता लगा रहा है? इसी साल 22 अगस्त 2024 में ही प्रदेश के गोबरा- नवापारा शासकीय हरिहर स्कूल में भी ऐसे ही मामले में प्राचार्य संध्या शर्मा पर स्कूल के लिए आई किताबों को रद्दी में बेचने का मामला सामने आ चुका है। DEO ने जांच टीम बनाई, लेकिन नतीजा सिफर है, कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है।
हैरान करने वाला लेकिन सौ फीसदी सच मामला है ये छत्तीसगढ़ राज्य पाठ्य पुस्तक निगम, किताबों की हेर-फेर को लेकर सुर्खियों में है। दरअसल, शैक्षणिक सत्र 2024-25 में,स्कूलों में बांटने के लिए पाठ्य पुस्तक निगम ने सैंकड़ों किताबे छपवाईं थी। लेकिन, ये किताबे स्कूलों तक पहुंची ही नहीं, बल्कि इन्हे कबाड़ के दाम पर एक पेपर मिल को बेच दिया गया। कांग्रेस के पूर्व विधायक विकास उपाध्याय ने मामले का खुलासा किया। कांग्रेस ने इसे बड़ा और गंभीर भ्रष्टाचार बताते हुए जांच की मांग की। सरकार ने भी बिना देर किए एक समिति बना दी, हालांकि समिति में पाठ्य पुस्तक निगम के महाप्रबंधक भी एक सदस्य हैं जो खुद इस घोटाले के आरोपी हैं। जाहिर है उनके नाम पर विवाद हो गया है।
जांच समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, मामले में छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के महाप्रबंधक, राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर प्रेम प्रकाश शर्मा प्रथम दृष्टया लापरवाही पाई गई, जिन्हें सस्पेंड किया जा चुका है। मामला बच्चों के शिक्षा के अधिकार से जुड़ा है, भ्रष्टाचार से जुड़ा है सो पक्ष विपक्ष में बहस छिड़ गई है। सरकार का दावा है कि वो करप्शन पर जीरो टॉलरेंस नीति पर काम कर रहे हैं। मामले में कड़ा एक्शन होना तय है तो विपक्ष इस जीरो टॉलरेंस नीति को दिखावा-जुमला कहकर तंज कस रही है।
कांग्रेस का दावा है कि, अफसरों पर दिखावे वाले एक्शन से क्या होगा, जबकि सबको पता है बिना संरक्षण, कमीशन का खेल कैसे चल सकता है। मामला गंभीर है, राजधानी के सिलयारी में, प्रशासन-सरकार की नाक के नीचे इतना बड़ा कारनामा सवाल उठाता है। साफ है कमीशन, करप्शन या लापरवाही की वजह से मौजूदा साल 2024–25 सत्र में हजारों जरूरतमंद बच्चे इन निशुल्क नई किताबों से वंचित हो गए हैं। सवाल ये है कि क्या इसके लिए सिर्फ एक अफसर जिम्मेदार है? क्या वाकई कमीशन का खेल, सरकारी संरक्षण इसके पीछे है ? क्या आरोपी अफसर को जांच में लेना संयोग मात्र था?