CG Ki Baat: रायपुर। चुनाव आयोग ने रायपुर दक्षिण सीट के लिए उपचुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया है। 13 नवंबर को रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट के लिए वोटिंग होगी, जिसके नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। वहीं, अब ब्राह्मण समाज ने इस सीट पर टिकट के लिए अपना दावा ठोंक दिया है। रायपुर दक्षिण विधानसभा में ब्राह्मण समाज के मतदाताओं की संख्या 40 हजार से अधिक है। यही वजह है कि ब्राह्मण समाज ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों से ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट देने की मांग की है और टिकट मिलने पर एकतरफा समर्थन देने का भरोसा भी दिलाया है।
पहली बार समाज ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों से ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट देने की मांग की है। इतना ही नहीं, दोनों ही दलों को ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट मिलने पर एकतरफा समर्थन देने का भरोसा भी दिलाया है। समाज के प्रमुख पदाधिकारियों ने सैकड़़ों की संख्या में सियासी दलों के दफ्तर पहुंचकर न सिर्फ टिकट को लेकर दावेदारी की बल्कि अपनी ताकत दिखाने की कोशिश भी की। ब्राह्मण समाज के पदाधिकारी भाजपा कार्यालय में किरण देव और पवन साय से मुलाकात किए। तो वहीं, राजीव भवन में दीपक बैज की अनुपस्थिति के कारण पूर्व मंत्री धनेंद्र साहू और राजेंद्र तिवारी से मुलाकात कर अपनी मांग रखी।
दरअसल, भाजपा से सुभाष तिवारी, मनोज शुक्ला, मीनल चौबे,मृत्युंजय दुबे, अंजय शुक्ला और इसी तरह कांग्रेस से प्रमोद दुबे, राजीव वोरा, ज्ञानेश शर्मा, आकाश शर्मा प्रमुख ब्राह्मण दावेदार है। रायपुर दक्षिण के बीते चुनावों की बात की जाए, तो अब तक भाजपा से किसी ब्राह्मण को टिकट नहीं मिली है, जबकि कांग्रेस ने एक बार योगेश तिवारी को इस सीट पर चुनाव लड़ने का अवसर दिया है। ऐसे में इस बार ब्राह्मण समाज ने दोनों ही पार्टियों में टिकट के लिए दावेदारी की है। इसे अहम इसलिए भी माना जा रहा है, क्योंकि दोनों ही पार्टियों में ब्राह्मण समाज के नेता चुनाव लड़ने के लिए प्रमुख दावेदारों में शामिल हैं। ऐसे में समाजिक कार्ड खेलकर भी वे अपना नंबर बढ़ाने में लगे हैं। दूसरी ओर दोनों ही दल योग्य प्रत्याशी को टिकट देने की बात कहते नजर आ रहे हैं।
कैबिनेट मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल कहते हैं कि, पार्टी जिसे टिकट देगी, सभी कार्यकर्ता उसे विजयी बनाएंगे। वहीं, पूर्व मंत्री धनेंद्र साहू का कहना है कि समाज की मांग पर पार्टी विचार करेगी। दक्षिण के दंगल के लिए बिगुल बज चुका है। दावेदार ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं। इस बीच सामाजिक समीकरण साधने की कवायद ने सियासत भी तेज कर दी है। ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प हाेगा कि सामाजिक दबाव दावेदारों के कितना काम आता है।