Questions arising from the 'bloody game' in the CRPF camp

CRPF Camp में ‘खूनी खेल’ से उठते सवाल। कितनी गोलियां..कितने जवान.. कितनी बार?

CRPF Camp में 'खूनी खेल' से उठते सवाल। कितनी गोलियां..कितने जवान : Questions arising from the 'bloody game' in the CRPF camp

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Modified Date: November 29, 2022 / 08:54 PM IST
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Published Date: November 9, 2021 11:41 pm IST

रायपुरः नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के लिंगनपल्ली CRPF कैंप में कुछ ऐसा घटा, जिसने सबको सकते में डाल दिया। सोमवार तड़के सुबह एक जवान ने अपने साथी जवानों पर गोलियां चला दी। जिसमें 4 की मौत हो गई। घटना की सही वजह अभी साफ नहीं है लेकिन CRPF कैंप में हुई वारदात से कई सवाल जरूर उठ रहे हैं। आखिर कैंप में ऐसा क्या हुआ कि लोगों की सुरक्षा में तैनात जवान ने अपने ही साथियों पर गोलियां चलाई। क्या जवान को पारिवारिक टेंशन था या मुश्किल परिस्थितियों में काम करने का तनाव या फिर आपसी रंजिश।

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मामला सुकमा के लिंगनपल्ली कैंप की है। जहां सोमवार की सुबह हाहाकार मच गया। CRPF 50वीं बटालियन के जवान रितेश रंजन ने अपने ही साथियों पर AK-47 से ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। घटना में 4 जवानों ने मौके पर ही तोड़ दिया। जबकि 3 जवान घायल हो गए। अचानक हुई इस घटना से सुकमा से लेकर रायपुर तक हड़कंप मच गया।

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फिलहाल आरोपी जवान से पूछताछ जारी है। वैसे ये पहली घटना नहीं है जब किसी जवान ने अपने ही साथियों को अपनी गोली के निशाने पर लिया है। आंकड़े बताते हैं कि 2017 से अब तक बस्तर संभाग में 21 जवानों ने आपसी गोलीबारी में अपनी जान गंवाई। लिहाजा सुकमा के लिंगनपल्ली में जो कुछ भी घटा है उससे कई सवाल उठ रहे हैं। क्या ज्यादा काम की वजह से जवान परेशान या डिप्रेशन में था…क्या आपसी रंजिश की वजह से जवान ने गोली चलाई। क्या वो पारिवारिक परेशानी से जूझ रहा था.. आखिर जवान ने ऐसा कदम क्यों उठाया। बहरहाल CRPF कैंप की घटना पर सियासत भी जारी है।

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बहरहाल 4 साल में 21 जवानों की मौत वो भी अपने ही साथियों की गोलियों से। यानी इन घटनाओं को नजरअंदाज करना इतना आसान नहीं है। हालांकि सरकार का कहना है कि इसके लिए ऐसी घटनाओँ को रोकने स्पंदन प्रोग्राम चलाया जा रहा है। औसतन हर साल 200 जवान मनोवैज्ञानिक तौर पर काउंसलिंग लेते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 65 हजार से अधिक जवान जो बस्तर संभाग में तैनात हैं उनमें हर साल 200 जवान विभिन्न मनोवैज्ञानिक परेशानियों से ग्रसित हैं। लेकिन प्रशिक्षण के बाद उनकी स्थिति अपने आप बेहतर हो जाती हैं, लेकिन पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों की छुट्टियां और दूसरी सुविधाओं पर सवाल उठते रहे हैं। यही वजह है कि बेंगलुरु की नेशनल मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस संस्था से MoU कर जवानों के मानसिक स्वास्थ्य पर काउंसलिंग की व्यवस्था भी की गई है। हालांकि जानकार मानते हैं कि इन घटनाओं को रोकने कई और प्रयास करने होंगे।

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कुल मिलाकर सुकमा में CRPF कैंप की फायरिंग की घटना से सबको सकते में ला दिया है। बस्तर या दूसरी ऐसी जगहों पर तैनात जवानों में मानसिक अवसाद और छुट्टी को लेकर तनाव के अलावा आपसी रंजिश की बात हमेशा सामने आती हैं। लगातार बढ़ रही ऐसी घटनाओं को रोकना निश्चित तौर पर किसी चुनौती से कम नहीं। सवाल इस बात का है कि दूसरों को सुरक्षा देने वाले जवान अपनों की जान क्यों ले रहे हैं। सवाल ये भी कि इनके बीच आपसी टकराव को रोकने आखिर कौन से उपाय किए जाएं?