रायपुर: छत्तीसगढ़ में एक बार फिर बिजली संकट गहराता दिख रहा है। सप्लाई की तुलना में डिमांड अधिक होने से उद्योगों की बिजली कट करनी पड़ रही है। दरअसल पहली बार ऐसा हो रहा है कि मानसून में भी बिजली की खपत गर्मी से ज्यादा है। कम बारिश के किसान 24 घंटे कृषि पंपों से ही खेतों की सिंचाई कर रहे हैं, जिससे बिजली की खपत बढ़ गई है। संकट को देखते हुए अभी उद्योगों में लोड शेडिंग की जा रही है। अधिकारियों के मुताबिक अगर हालात जल्द नहीं सुधरे तो ग्रामीण अंचल और घरेलू स्तर पर भी लोड शेडिंग की जा सकती है। बिजली संकट को लेकर सरकार दावा जरूर कर रही है कि हालात जल्द सामान्य हो जाएंगे, लेकिन बीजेपी उसे कठघरे में खड़ा कर रही है।
बिजली के मामले में सरप्लस राज्य का तमगा रखने वाले छत्तीसगढ़ में बिजली संकट के हालात बन रहे हैं। दरअसल इस साल बारिश नहीं होने से प्रदेश में बिजली की मांग बढ़ोतरी हुई है। आंकड़ों के मुताबिक अगस्त-सितंबर में प्रदेश में औसत डिमांड पूरे प्रदेश में लगभग 4 हजार मेगावाट की रहती थी। लेकिन मानसून की बेरुखी की वजह से ये मांग 4700 मेगावाट तक पहुंच गई है। प्रदेश के DSPM यानी डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी थर्मल पावर स्टेशन से 400 मेगावाट, कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन से 900 और मड़वा से 650 मेगावॉट बिजली मिल रही है। इसी तरह सेंट्रल पूल से 2000 और प्रायवेट-बायोमास से 300 मेगावाट बिजली की आपूर्ति हो रही है। जबकि 400 मेगावाट की बिजली दूसरे राज्यों से ली जा रही है। अधिकारियों के मुताबिक डिमांड और सप्लाई को मेंटेन करने के लिए उद्योगों में लोड शेडिंग की जा रही है।
उद्योगों में लोड शेडिंग करने से उद्योगपति वर्ग नाराज हो रहा है। इस बात को लेकर उन्होंने बिजली कंपनी के अधिकारियों के साथ बैठक करके मांग की है। उद्योगपतियों के मुताबिक पीक अवर में लोड शेडिंग न कि जाए, जो उद्योग इंडस्ट्री के लिए बेहतर होगा।
दरअसल कम बारिश की वजह से किसान पंपों से जरिए ही अपने खेतों में सिंचाई कर रहे हैं, जिसकी वजह से बिजली खपत लगातार बढ़ी है और आने वाले दिनों मे जल्द बारिश नहीं हुई तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। बिजली कटौती की एक बड़ी वजह कोयला की कमी भी है। सरकार के तीन पावर प्लांटों में तीन से चार दिन का ही कोयले का स्टॉक बचा है। कोरबा वेस्ट और DSPM में 3 और मड़वा में 4 दिन का ही कोयला शेष बचा है। बिजली कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक अगर आने वाले समय में पानी नहीं गिरा और डिमांड बढती है तो फिर उद्योगों के साथ साथ ग्रामीण अंचल और घरेलू सेक्टर में भी लोड़ शेडिंग की नौबत आ सकती है।
कृषि मंत्री रविंद्र चौबे भी मानते हैं कि किसानों को अभी बिजली की जरूरत ज्यादा पड़ रही है..खंड वर्षा के कारण किसान पंपों से सिंचाई करने को मजबूर हैं। हालांकि वो ये भी कह रहे हैं कि बिजली का संकट जल्द दूर हो जाएगा। हालांकि बीजेपी आरोप लगा रही है कि सरकार के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। बिजली कटौती से न केवल उद्योगों की उत्पादन क्षमता घट रही है बल्कि प्रदेश के किसान भी परेशान हैं।
बिजली विभाग के मुताबिक इन दिनों प्रदेश में डिमांड करीब 4700 मेगावाट की है जबकि उपलब्धता 3850 मेगावाट की ही है। चूंकि बारिश नहीं हो रही है और खेती के लिए पंप के जरिए ही पानी की सप्लाई की जानी है। आगे त्योहारी सीजन है लिहाजा आने वाले समय में बिजली की मांग और अधिक बढ़नी तय है। ऐसे में बिजली उत्पादन बढ़ाना और दूसरे राज्यों से ज्यादा बिजली लेना सरकार के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाली है।
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