Reported By: Neeraj Kumar Sharma
, Modified Date: June 21, 2024 / 12:31 AM IST, Published Date : June 20, 2024/8:28 pm ISTराजिमः Migratory birds arrived from Siberia छत्तीसगढ़ के प्रयाग के रूप में प्रसिद्ध राजिम के लचकेरा गांव में प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्टार्क खुशहाली का संदेश लेकर पहुंचने लगे हैं। ग्रामीण उन्हें मानसून व खुशियों का संदेश लेकर आने वाले देवदूत मानते हैं। गांव के पेड़ों में हजारों पक्षी अपना घर बनाने भी शुरू कर दिए है। प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्टार्क के करलव से पूरा गांव का माहौल खुशनुमा हो गया है। ग्रामीण इन पक्षियों को अपने बीच पाकर बेहद खुश नजर आ रहे है। इसे कृषि कार्यों को लेकर शुभ भी मानते है। यही वजह है कि ग्रामीण इसके शिकार या नुकसान पर पहुंचाने पर दंड का प्रावधान किया है। इतना ही नहीं इन्हें रेडिएशन का असर न हो, इसलिए गांव में अब तक मोबाइल टॉवर लगाने की भी अनुमति नहीं दी गई है।
Migratory birds arrived from Siberia ग्रामीणों के अनुसार इनका आना अच्छे मानसून के करीब होने का संकेत है, इसीलिए वे इसे शुभ मानते है। एक लंबे अरसे से ये प्रवासी पक्षी हजारों की तादात में हर साल जून-जुलाई में परिवार बढ़ाने यहां पहुंचते हैं। एशियन बिल्डस्टॉर्क पक्षी का वैज्ञानिक नाम एनास्टम्स ओसीटेन्स है। प्रायः अन्य पक्षियों की तरह इस पक्षी का प्रजनन काल भी जुलाई में शुरू होता है। प्रजनन के लिए यह पक्षी प्रायः उन स्थानों की तलाश करते है, जहां पानी व पर्याप्त चारा मिलता है। पक्षियों के मल में फास्फोरस, नाइट्रोजन, यूरिक एसिड आदि कार्बनिक तत्व होते हैं। जिन पेड़ों पर यह आवास बनाते हैं, उसके नीचे जमा मलमूत्र पानी के साथ बहकर खेतों की उर्वरकता को कई गुना बढ़ा देता है। यही कारण है, कि लचकेरा गाँव मे भी किसानों के खेतों में भी अच्छा फसल और पैदावार होता है। क्योंकि सैकड़ों सालों से ये पक्षी यहां पहुँच रहे है। इसलिए ग्रामीण भी इसे मित्र पक्षी कहते है।
लचकेरा के ग्रामीण इसके संरक्षण पर भी विशेष जोर दे रहे हैं। पक्षियों को मारने पर 1051 का जुर्माने का भी प्रावधान किया हुआ है। चूंकि लचकेरा के ग्रामीण इसे अच्छी बारिश का सूचक मानते हैं अत: इसकी पूरी सुरक्षा भी करते हैं। गांव के लोग बाकायदा सुरक्षा समिति गठित कर इन पक्षियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करते हैं। छत्तीसगढ़ में यह पक्षी प्रायः महानदी व उनकी सहायक नदियों के आसपास के ग्रामों में अपना घोसला पेड़ों पर बनाते हैं। नर मादा दोनों मिलकर अंडों से निकले बच्चों को पालते हैं। जब ये थोड़े बड़े हो जाते हैं तो पूरा गांव बच्चों के कलरव से गूंजने लगता है। बच्चे जब उड़ने लायक हो जाते हैं तो ये सितंबर अक्टूबर तक वापस चले जाते है।