Jashpur Keshalapatha Pahad History

Jashpur Keshalapatha Pahad History: छत्तीसगढ़ में स्थित केशलापाठ पहाड़.. महाभारत काल के बकासुर राक्षस और भीम से जुड़ा है इतिहास, अन्य राज्यों से मन्नत मांगने भी आते हैं लोग

Jashpur Keshalapatha Pahad History: छत्तीसगढ़ में स्थित केशलापाठ पहाड़.. महाभारत काल के बकासुर राक्षस और भीम से जुड़ा है इतिहास

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Reported By: priyal jindal

Modified Date: January 17, 2025 / 11:11 AM IST
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Published Date: January 17, 2025 11:08 am IST

Jashpur Keshalapatha Pahad History: जशपुर। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिलें में आस्था का केंद्र तमता केशलापाठ पहाड़ को पर्यटन स्थल में शामिल करने की मांग उठने लगी है। महाभारत काल का पौराणिक महत्व और बुढ़ादेव की याद में यहां आस्था का तीन दिवसीय मेला का आयोजन किया गया है। युवक-युवतियों द्वारा अपने विवाह की मनौती मांगने के कारण तमता केशला पहाड़ का मेला छत्तीसगढ़ में अपने ढंग का अनोखा मेला माना जाता हैं। विवाह की मनौती पूरी होने पर श्रद्धालु बुढ़ादेव के पास फिर से पहुंच कर उसे धन्यवाद देना नहीं भूलते।

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इन राज्यों से मन्नते मांगने आते हैं लोग

यही कारण है कि तमता पहाड़ दूर दूर तक प्रसिद्ध है। यहां पर जशपुर, सरगुजा और रायगढ़ जिले के आपितु बिहार, झारखंड, ओड़िसा,एमपी, बंगाल के श्रद्धालुओं की भीड़ के मद्देनजर लोग पहुंचकर अपनी मन्नते मांगते है। इस पहाड़ की ऊंचाई लगभग 400 फीट है, और यहां 365 सीढ़ियां बनाई गई हैं, जिन पर चढ़कर श्रद्धालु पूजा पाठ कर सुख-समृद्धि की कामना करते है। इस जगह की खासियत यह है कि, यहां प्रतिदिन बैगा जनजाति के लोग नारियल फोड़कर प्रसाद बांटते हैं, और भक्तों का आना-जाना दिनभर लगा रहता है।

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पौष पूर्णिमा के दूसरे दिन होता है मेले का आयोदन

जशपुर जिले के लोगों के लिए यह मेला एक बड़ा त्यौहार माना जाता है, और प्रत्येक वर्ष जनवरी महीने की पौष पूर्णिमा के दूसरे दिन से इस मेले का आयोजन होता है। मेला न केवल क्षेत्रीय लोगों, बल्कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यह केशलापठ पहाड़ क्षेत्रवासियों के लिए एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, जहां श्रद्धा से जुड़े लोग अपने मान्यताओं और आस्थाओं के साथ यहां आते हैं। तमता केसला पाठ पहाड़ के तार महाभारत काल से जुड़े हुए हैं।

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पांडवों ने वनवास काल में बिताया था समय

मान्यता के मुताबिक, पांडवों ने अपने वनवास काल का कुछ समय यहां बिताया था। केसला पहाड़ पर बकासुर राक्षस ने अपना ठिकाना बना रखा था। गांव वाले मिलकर प्रतिमाह उसे चार गाड़ी भर खाना, मदिरा व मवेशी भेजते थे साथ ही बारी बारी से गांव के प्रत्येक परिवार से एक सदस्य को भी उसका आहार बनने के लिए भेजा जाता था। एक दिन माता कुंती रानी ने अपने पुत्र भीम को वहां भेजने का प्रस्ताव रखा। भीम ने केसलापाठ पहाड़ पर बकासुर के साथ घमासान युद्ध किया और बकासुर का अंत कर दिया। बकासुर के वध होने के खुशी में प्रत्येक वर्ष यह मेला का आयोजन किया जाता है।

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तमता के उपसरपंच विशाल अग्रवाल ने बताया कि, यहां के रहने वाले सभी लोग इस केसला पाठ पहाड़ को गांव देवता के नाम से मानते है। भक्त अपनी जो भी मनोकामना लेकर आते हैं उनकी मनोकामना निश्चित ही पूरी होती है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से इस देवस्थल को छत्तीसगढ़ पर्यटन स्थल में शामिल करने की मांग की है। सरगुज़ा विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष सह पत्थलगांव विधायक गोमती साय ने कहा है कि क्षेत्र में धार्मिक व पर्यटन स्थल को बढ़ावा देने के लिए हमारी सरकार प्रतिबद्ध है। प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सरकार में तमता केशलापाठ पहाड़ का पर्यटन की क्षेत्र में विकास निश्चित है।

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तमता केशलापाठ पहाड़ कहां स्थित है?

तमता केशलापाठ पहाड़ छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में स्थित है।

इस स्थान का पौराणिक महत्व क्या है?

तमता केशलापाठ पहाड़ का संबंध महाभारत काल से जोड़ा जाता है और इसे धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

तमता में कौन सा विशेष मेला आयोजित होता है?

यहां बुढ़ादेव की याद में तीन दिवसीय आस्था का मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें युवक-युवतियां अपने विवाह की मनोकामना करते हैं।

केशलापाठ पहाड़ को पर्यटन स्थल में शामिल करने की मांग क्यो उठ रही है?

महाभारत काल का पौराणिक महत्व और बुढ़ादेव की याद में यहां आस्था का तीन दिवसीय मेला का आयोजन किया जाता है। यही वजह है कि, केशलापाठ पहाड़ को पर्यटन स्थल में शामिल करने की मांग की जा रही है।

तमता मेला छत्तीसगढ़ में क्यों अनोखा माना जाता है?

यह मेला अपने ढंग का अनोखा आयोजन है, जहां धार्मिक आस्था के साथ विवाह की मनोकामना करने की परंपरा जुड़ी हुई है।
 
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