Corona muavja in India
बिलासपुर: कोरोना त्रासदी में हुई मौत के बाद परिजन संभल भी नहीं पाए थे और अब मुआवजे को लेकर उन्हें फिर से मौत के सर्टिफिकेट के लिए भटकना पड़ रहा है। बदनसीबी ये है कि उनकी मदद के लिए शासन-प्रशासन की ओर से पहल होने की बजाय सियासी शोर मच रहा है। परेशान लोगों को ये पता ही नहीं चल रहा है कि उन्हें मुआवजे के लिए सर्टिफिकेट बनवाने के साथ और करना क्या-क्या है?
ये वो लोग हैं, जिनके अपनों को कोरोना ने काल बनकर लील लिया। लेकिन अब उस मौत को सर्टिफिकेट में दर्ज कराने के लिए उनके परिजन यहां-वहां भटक रहे हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और केंद्र के शीर्ष अदालत में दिए हलफनामे के बाद राज्य सरकारों को कोरोना से मौत के मुंह में समाने वालों के परिजन को 50 हजार की आर्थिक सहायता दी जानी है। इसके लिए जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी DDMA के पास आवेदन, कोविड पॉजिटिव का रिपोर्ट और डेथ सर्टिफिकेट जमा करना होगा। अब इस प्रक्रिया के लिए लोगों को भटकना पड़ रहा है। क्योंकि अस्पताल में कोरोना के इलाज के दौरान मौत तो हुई, मगर डेथ सर्टिफिकेट में इसका कोई उल्लेख नहीं है। राज्य और जिले के डेथ आंकड़े अलग-अलग होने से भी समस्या बढ़ी है।
इस मुद्दे पर सियासत भी शुरू हो गई है। विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रही है, वहीं सत्ता पक्ष का कहना है कि कांग्रेस कमेटी भी मुआवजा दिलाने के लिए लोगों के साथ खड़ी है। स्वास्थ्य विभाग के प्रदेश के आंकड़ों में बिलासपुर जिले में कुल 1207 लोगों की मौत कोरोना से हुई है, जबकि जिले में ये आंकड़ा 1328 दर्ज है। मुश्किल यही है कि आंकड़ों में अंतर के वे 121 मृतकों के परिजन की समस्या का समाधान कौन करेगा?
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