रायपुर: how long will humans and elephants continue छत्तीसगढ़ में हाथियों का उत्पात बढ़ता जा रहा है। अंबिकापुर से लेकर जशपुर, कोरिया से लेकर रायगढ़ तक डर का पर्याय बन चुके हैं हाथी। इन इलाकों मे विचरण करने वाला हाथियों का दल फसलों को बरबाद करने के साथ-साथ गांव वालों की जान भी ले रहा है। दूसरी ओर इंसानों के साथ बढ़ते संघर्ष में जंगल का सबसे ताकतवर जीव भी असमय मारा जा रहा है। जाहिर है हाथी और इंसान के बीच टकराव को रोकने के लिए करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। बावजूद इसके समस्या जस की तस बनी हुई है। अब सवाल ये है कि आखिर कब तक ऐसे टकराव के हालात बनते रहेंगे। आखिर हाथी का हल क्या है?
how long will humans and elephants continue छत्तीसगढ़ का एक बड़ा हिस्सा हाथियों की घुसपैठ और उत्पात से थर्रा रहा है। हाथियों का दल किसानों का फसल बर्बाद करने के साथ-साथ लोगों को बेघर भी कर रहा है। हाथियों के कहर के दर्जनों वाकया रोजाना दर्ज हो रहे हैं। इन 4 तस्वीरों के जरिए आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे हाथियों ने हाहाकार मचाया हुआ है। बलरामपुर में जहां 26 हाथियों का दल पहुंचने से ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। वहीं जशपुर में पत्थलगांव वन अनुविभाग में 32 हाथियों का दल जमकर उत्पात मचा रखा है। हाथी किसानों की फसल के साथ उनके घरों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। जबकि धरमजयगढ़ वनमंडल में 36 हाथियों का दल लोगों के लिये मुसीबत साबित हो रहा है, मूवमेंट को देखते हुए वन अमला अलर्ट है। बात करें सरगुजा की तो यहां 40 से ज्यादा हाथियों का दल आतंक मचा रहा है। ग्रामीण किसी तरह अपनी फसल और घरों को बचाने की कोशिश में जुटे हैं।
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छत्तीसगढ़ में हाथियों की समस्या से निपटने वन विभाग ने ढेरों उपाए किए। इसके बावजूद न तो ग्रामीण और न ही हाथी सुरक्षित हैं। हालात ये है कि कुमकी हाथी बाड़े में सिर्फ मेहमान बनकर रह गए हैं, तो सोलर फेंसिंग के तार भी गांव और जंगल सीमा से गायब है। मधुमक्खियां उड़ गई हैं, तो ढोल, झाल, मंजीरा, टॉर्च का भी पता नहीं। जानकार इसके पीछे निगरानी का अभाव को बड़ा कारण बताते हैं, तो सत्ता पक्ष और विपक्ष का अपना ही तर्क है।
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सियासी आरोप-प्रत्यारोप के इतर, आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में जितने हाथी हैं, उसका 1 फीसदी छत्तीसगढ़ में है। लेकिन हाथियों के मौत के मामले में ये आंकड़ा 15 फीसदी हो जाता है। पिछले विधानसभा सत्र में सदन में हाथी से जुड़े आंकड़े पेश किए गए। उसके मुताबिक हाथी के हमले में पिछले 3 साल में 204 लोगों की मौत, जबकि 97 लोग घायल हुए। फसल नुकसान के 64 हजार 582 प्रकरण दर्ज। हाथियों ने 5 हजार 47 मकानों को क्षतिग्रस्त किया। अन्य संपत्ति हानि के 3151 प्रकरण भी दर्ज हुए। जबकि राज्य राज्य सरकार नुकसान के बदले 57.81 करोड़ से ज्यादा का मुआवजा बांट चुकी है।
ऐसा नहीं है कि इंसान और हाथियों के संघर्ष में केवल इंसानों की जान गई है। इस लड़ाई में सबसे ताकतवर जीव को भी नुकसान उठाना पड़ा है। कुल मिलाकर हाथियों के नाम पर सभी सरकारों ने वादे किए, लेकिन कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पाया। अब सवाल ये है कि कब तक यूं ही असमय इंसान और हाथी मारे जाते रहेंगे?
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