मस्तूरी: बिलासपुर में इस बार भाजपा के सामने बड़ी चुनावी चुनौती है। इसकी प्रमुख और बड़ी वजह पुराने और विवादित चेहरों पर दांव लगाना है। बागी प्रत्याशी भी इन नेताओं का सियासी समीकरण बिगाड़ रहे हैं। ऐसे प्रत्याशियों में एक बड़ा नाम है सीनियर भाजपा नेता व पूर्व मंत्री डॉ कृष्णमूर्ति बांधी का। डॉ बांधी मस्तूरी विधानसभा से भाजपा के प्रत्याशी हैं। पार्टी ने 5वीं बार उन्हें मस्तूरी सीट से उम्मीदवार बनाया है। विवादों से जुड़े होने के कारण इसबार डॉ बांधी की राह कठिन नजर आ रही है।
दरअसल, मस्तूरी जिले का एकमात्र आरक्षित सीट है। इस सीट को अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही ये सीट महत्वपूर्ण रही है। कांग्रेस के वर्चस्व वाली इस सीट से गणेश राम अनंत, बंशीलाल धृतलहरे जैसे बड़े लीडर चुनाव जीतते रहे और मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री भी बनते रहे। 1998 में पहली बार ये सीट बीजेपी के कब्जे में आई, तब मदन सिंह डहरिया यहां से चुनाव जीते थे, लेकिन 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए। 2003 में मदन सिंह डहरिया को बीजेपी प्रत्याशी डॉक्टर कृष्णमूर्ति बांधी ने हराया और वे छत्तीसगढ़ सरकार के स्वास्थ्य मंत्री बने। लेकिन इसके बाद से डॉ बांधी का नाता विवादों से भी जुड़ता चला गया।
2008 में भी बांधी फिर चुनाव जीते, लेकिन उन्हें इस बार सरकार में शामिल नहीं किया गया। हालांकि 2013 में उन्हें भाजपा ने फिर मस्तूरी से टिकिट दिया लेकिन इस बार अजीत जोगी के समर्थक और स्थानीय लोक कलाकार दिलीप लहरिया ने उन्हें हरा दिया। विवादों में घिरे बांधी को मस्तूरी की जनता ने नकार दिया। इस दौर में उनपर कई गंभीर और संगीन आरोप भी लगे। हालंकि इसके बाद 2018 में फिर बांधी को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया। लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले में बांधी जीत दर्ज करने में कामयाब हो गए। बसपा के कारण कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ और बांधी को इसका फायदा मिल गया। हालंकि इस जीत के बाद भी बांधी का बेडलक रहा, भाजपा सत्ता से बाहर हो गई। कांग्रेस के राज में वे विपक्ष के विधायक बन कर रह गए।
सियासी करियर में डॉ कृष्णमूर्ति बांधी हमेशा से विवादों में रहे हैं। इस दौर में कई गंभीर और संगीन आरोप डॉ बांधी पर लग चुके हैं। विवादित बोली के कारण भी डॉ बांधी सियासी निशाने पर रहे हैं। सबसे बड़ा विवाद डॉ बांधी से तब जुड़ा जब वे विधायक बने। 2008 से 2013 के बीच उनपर गंभीर और संगीन आरोप लगे। कथित तौर पर एक आरक्षक ने डॉ बांधी पर महिला से संबंध को लेकर संगीन सवाल उठाया। दूसरे एक मामले में इसके बाद एक और महिला के साथ डॉ बांधी का नाम जुड़ा। महिला ने गंभीर और संगीन आरोप के साथ डॉ बांधी की शिकायत की। हालंकि इसके कुछ दिन बाद महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। इसे लेकर भी डॉ बांधी कटघरे में रहे।
डॉ कृष्णमूर्ति बांधी अपने बयानों के साथ समाज विशेष के भावनाओं को ठेस पहुंचाने के कारण भी विवादों में रहे हैं। तकरीबन दो वर्ष पहले क्षेत्र में सीसी रोड के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे बांधी ने भरे मंच से सतनामी समाज को लेकर अभद्र व अपमानित करने वाली टिप्पणी कर दी थी। जिससे सतनामी समाज खासा आक्रोशित हुआ था। इसके बाद से उन्हें सियासी तौर पर सतनामी विरोधी भी कहा जाने लगा है। डॉ बांधी विपक्ष के विधायक के तौर पर भी गलतबयानी के कारण विवादों में रहे हैं। उनकी गांजा भांग पीने की मुखालफत आज भी चर्चा में है। वे समाज में शराब की जगह गांजा भांग को बढ़ावा देने की मुखालफत सार्वजनिक तौर पर कर चुके हैं।
सियासी तौर पर डॉ बांधी पर क्षेत्र में अवैध उत्खनन का कारोबार चलाने के भी आरोप लगते हैं। वे गिट्टी खदान व क्रेशर का भी संचालन करते हैं। हालंकि मस्तूरी क्षेत्र खनन को लेकर हमेशा से चर्चा में रहा है। मस्तूरी क्षेत्र में कई पत्थर खदानें संचालित हैं। जिन्हें राजनीतिक संरक्षण है। खनन के कारण कई गांव भी इससे प्रभावित हैं। धूल डस्ट के साथ सड़कों की हालत खस्ताहाल है। बड़े लोडिंग वाहनों के कारण हादसों का ग्राफ भी बढ़ा हुआ है। आए दिन क्षेत्र में सड़क हादसों में लोगों की जान जा रही है।
डॉ बांधी पर क्षेत्र में भाजपा नेताओं के उपेक्षा के भी आरोप लगते हैं। कहा जाता है डॉ बांधी अपने विकल्प के तौर पर क्षेत्र में किसी दूसरे नेता का जमीन तैयार नहीं होने देना चाहते हैं। जिसके कारण क्षेत्र से समय- समय पर विरोध के स्वर सामने भी आते हैं। टिकट वितरण से पहले भी एक पक्ष ने डॉ बांधी के जगह नए प्रत्याशी की खुलकर मांग की थी। टिकट वितरण के बाद भी ये विरोध देखा गया। क्षेत्र की भाजपा नेत्री चांदनी भारद्वाज ने पार्टी छोड़ दिया और सीधे तौर पर इसके लिए डॉ बांधी पर उपेक्षा का आरोप लगाया।
तमाम विवादों और विरोध के बीच 2023 में डॉ बांधी को एकबार फिर प्रत्याशी बनाया गया है। लेकिन इस बार उनकी राह आसान नहीं है। तीसरे मोर्चे के तौर पर बसपा, जोगी कांग्रेस और बागी उनका समीकरण बिगाड़ रहे हैं। उनके पुराने विवादित विडियो एकबार फिर चुनाव में चर्चा का विषय बने हुए हैं, सोशल मिडिया में उन्हें फिर से जमकर वायरल किया जा रहा है। चुनावी सीजन में बांधी से जुड़े ये विवाद उन्हें बड़ा नुकसान पहुंचाते नजर आ रहे हैं।
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