coal crisis in chhattisgarh industries

कोल संकट पर सियासी बोल! SECL की लापरवाही..कोयले के लिए तरसे उद्योग! छत्तीसगढ़ के हितों के नुकसान का जिम्मेदार कौन?

कोल संकट पर सियासी बोल! SECL की लापरवाही..कोयले के लिए तरसे उद्योग! : coal crisis in chhattisgarh industries

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:55 PM IST, Published Date : March 2, 2022/11:14 pm IST

(रिपोर्ट- सौरभ परिहार, राजेश राज) रायपुरः coal crisis in chhattisgarh छत्तीसगढ़ में पिछले 6 महीनों से कोयले का संकट बना हुआ है। यहां के सबसे बड़े कोल प्रोवाइडर SECL कोयला खनन के लक्ष्य से पिछड़ गया है। इसके चलते प्रदेश के उद्योगों को जरुरत के मुताबिक कोयला नहीं मिल रहा है। इस पर अब राजनीति भी तेज हो गई है। कांग्रेस इसके लिए केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है और राज्य के हितों से खिलवाड़ करने का आरोप लगा रही है। जबकि बीजेपी इन आरोपों को राजनीतिक करार दे रही है।

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coal crisis in chhattisgarhप्रदेश में गहराते कोल संकट को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बार फिर SECL पर निशाना साधा है। सीएम ने कहा कि प्रदेश के उद्योगों को जितना कोयला मिलना चाहिए उतना नहीं मिल रहा। जाहिर तौर पर रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर और रायपुर जिलों में लगे कई बड़े स्टील प्लांट, जो पिछले कई सालों से राज्य के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते आए हैं, आज कोयले के गंभीर संकट से जूझ रहे हैं। इन्हें अब तक SECL से कोयले की आपूर्ति होती आई थी, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि SECL लक्ष्य के अनुरूप कोयला खनन करने में नाकाम रहा। प्रदेश में होने वाले कोयला खनन का 94 प्रतिशत हिस्सा पावर कंपनी को जाता है, सिर्फ 6 प्रतिशत हिस्सा ही नॉन पावर यानी स्टील या अन्य दूसरे प्लांट को मिल पाते हैं। कोयले उत्पादन में पिछड़ने के बाद SECL ने यहां के उद्योगों को ओडिशा के महानदी कोल फील्ड से कोयला आपूर्ति का विकल्प दिया, लेकिन ट्रांसपोर्टेशन के कारण उद्योंगों के लिए महंगा साबित हो रहा है। जिसपर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने केंद्र पर तंज कसते हुए कहा है कि इससे पहले की तमाम बैठकों में प्रदेश और यहां के उद्योगों की जरुरत के अनुसार कोयला आपूर्ति की मांग की गई लेकिन इन्हें पर्याप्त कोयला नहीं मिल रहा है।

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प्रदेश में कोल संकट को लेकर SECL पर कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसके पीछे SECL की ओर से जारी तीन अजीबोगरीब आदेश को वजह माना जा रहा है। सबसे पहले उसने रोड सेल पर रोक लगाई, यानि नॉन पावर उद्योगों को रेल की बजाय ट्रकों से आपूर्ति होने वाले कोयले पर रोक लगा दी गई। फिर आदेश आया कि नॉन पावर उद्योग को उनकी डिमांड का 75 प्रतिशत हिस्सा ही सप्लाई की जाएगी। जब दोनों आदेश का विरोध हुआ तो फिर आदेश जारी किया गया कि नॉन पावर सेक्टर रेल की बजाय रोड ट्रांसपोर्ट से कोयला ले सकते हैं। उद्योग एसोसिएशन का आरोप है कि जब SECL के पास पर्याप्त स्टॉक था तो कोयला आपूर्ति पर रोक क्यों लगाई गई और स्टॉक नहीं था तो रेल की बजाय रोड से कोयला देने कैसे राजी हो गया। हालांकि मौजूदा क्राइसिस के लिए बीजेपी राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है।

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सियासी आरोप प्रत्यारोप के इतर हकीकत यही है कि प्रदेश का नॉन पावर उद्योग कोयले की भारी कमी से जूझ रहे हैं और इसका सीधा असर प्रदेश के आर्थिक विकास और यहां के राजस्व पर पड़ेगा। ऐसे में सवाल है कि छत्तीसगढ़ के हितों का अगर नुकसान हो रहा है तो उसके लिए जिम्मेदार कौन है?