रायपुर: नमस्कार, छत्तीसगढ़ की बात में आपका स्वागत है। मध्यप्रदेश में मोदी तो छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी। मिशन छत्तीसगढ़ के तहत, राहुल गांधी ने आमसभा के मंच से आज कई प्रहार किए। (Chhattisgarh Ki Baat) जिसके निशाने पर रही मोदी सरकार। राहुल ने एक बार फिर अडानी के बहाने पीएम मोदी को घेरा। राहुल ने सबसे बड़ा हमला बोला, जातिगत जनगणना को लेकर। राहुल का दावा है कि हमारी सरकार ने जातिगत गणना करवाई थी, उसके आंकड़े केंद्र सरकार साझा नहीं कर रही। राहुल ने दोहराया कि हमारी सरकार आते ही जातिगत गणना का काम पूरा कर उसके आधार पर ही वर्गों को लाभ देंगे। एक तरफ CM आवास न्याय योजना की सौगात तो दूसरी तरफ केंद्र और मोदी पर हमला, तैयारी तो 2023 की है लेकिन नजर सीधे 2024 पर है। इसी पर होगी खुलकर बहस।
जातिगत जनगणना पर मोदी सरकार पर गरजते राहुल गांधी के ये तेवर। ये चैलेंज बता रहा है कि जातिगत जनगणना के दम पर 2024 की सियासी बिसात बिछाई जा रही है। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना कराने की शुरुआत साल 1872 में की गई थी। अंग्रेज़ों ने साल 1931 तक जितनी बार भी भारत की जनगणना कराई, उसमें जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज किया गया। आज़ादी हासिल करने के बाद भारत ने जब साल 1951 में पहली बार जनगणना की, तो केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को जाति के नाम पर वर्गीकृत किया गया।
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लेकिन 1980 के दशक में कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय हुआ जिनकी राजनीति जाति पर आधारित थी। साल 1979 में भारत सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के मसले पर मंडल कमीशन का गठन किया था। मंडल कमीशन ने ओबीसी श्रेणी के लोगों को आरक्षण देने की सिफ़ारिश की थी. लेकिन इस सिफ़ारिश को 1990 में लागू किया जा सका। इसके बाद देशभर में सामान्य श्रेणी के छात्रों ने उग्र विरोध प्रदर्शन किए थे।
चूंकि जातिगत जनगणना का मामला आरक्षण से जुड़ चुका था, इसलिए समय-समय पर राजनीतिक दल इसकी मांग उठाने लग गए। आख़िरकार साल 2010 में बड़ी संख्या में सांसदों की मांग के बाद सरकार इसके लिए राज़ी हुई थी। जुलाई 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि 2011 में की गई सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना में हासिल किए गए जातिगत आंकड़ों को जारी करने की उसकी कोई योजना नहीं है।
राजनीतिक नब्ज को तुरंत पकड़ने वाली भाजपा को एहसास हुआ कि राजनीति में ध्रुव की स्थिति तक पहुंचने के लिए उसे हिंदुत्व और मंडल के संयोजन का अपना फॉर्मूला बनाना होगा। इसलिए, आरक्षण का पूरे दिल से समर्थन करने और अपने गढ़ों में ओबीसी नेताओं की पहचान करने और उन्हें प्रोजेक्ट करने का निर्णय, नरेंद्र मोदी के एक ऐसे नेता के रूप में उभरने और उभरने में परिणत हुआ, जिन्होंने हिंदुत्व को ओबीसी के रूप में अपनी मूल पहचान के साथ जोड़ा। सामाजिक पुनर्गठन: जाति जनगणना के बाद, ओबीसी समूहों में क्रीमी लेयर को उन लोगों से संघर्ष करना होगा जिन्हें अब तक कोटा का लाभ नहीं मिला था।
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