रायपुर: BJP Chhattisgarh became so weak बीजेपी के पूर्व सांसद और वरिष्ठ नेता नंदकुमार साय जो अपने मुखर अंदाज और तेजतर्रार बयानों के लिए जाने जाते हैं, इस बार अपनी ही पार्टी को कमजोर बताया है। साय ने न केवल पार्टी की मौजूदा स्थिति पर चिंता जाहिर की, बल्कि प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व और उनकी भूमिका पर भी विचार की जरूरत बताई। अब सवाल ये है कि क्या विपक्ष में बैठने के बाद बीजेपी इतनी कमजोर हो गई है कि पार्टी के नेताओं को सार्वजनिक बयान देना पड़ रहा है? आखिर नंद कुमार साय के इस बयान के मायने क्या हैं? सवाल ये भी कि क्या साय की साफगोई से बीजेपी की मुसीबत बढ़ेगी?
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BJP Chhattisgarh became so weak छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव 2023 में है, यानी अभी चुनाव में पूरे 2 साल बाकी है। लेकिन बीजेपी और कांग्रेस की कवायद अभी से शुरू हो गई है। आला नेता बैठकों के जरिये नेताओं-कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोल रहे हैं। इसके अलावा जनता के बीच किन मुद्दों को लेकर जाना है, उसकी रणनीति भी बन रही है। खास तौर पर 15 साल बाद विपक्ष में बैठी बीजेपी सत्ता में वापसी करने को बेताब है। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी लगातार छत्तीसगढ़ का दौरा कर रही हैं। पार्टी का पूरा फोकस बस्तर और सरगुजा संभाग के आदिवासी वोटर्स पर है, जिसने 2018 में कांग्रेस पर भरोसा जताया था। लेकिन इसी बीच पार्टी के एक आदिवासी नेता के बयान ने एक बार फिर पार्टी को आईना दिखाने का काम किया।
नंदकुमार साय का ये बयान उस समय आया है, जब पार्टी आदिवासी वर्ग को साधने के लिए धर्मांतरण के मुद्दे को लगातार हवा दे रही है। संघ प्रमुख मोहन भागवत खुद मदकूद्वीप में आयोजित घोष कार्यक्रम में कह चुके हैं कि आगामी चुनाव में धर्मांतरण अहम मुद्दा रहेगा। आदिवासी वर्ग को साधने की रणनीति को धार देने और अपने जनाधार को वापस पाने के लिए ही बीजेपी ने अपने चुनावी अभियान की शुरूआत बस्तर में चिंतन शिविर से की। ऐसे में नंदकुमार साय का बयान कई सवाल खड़े करता है, जिसपर पार्टी को गंभीरता से विचार करना होगा। बहरहाल नंद कुमार साय के इस बयान के बाद कांग्रेस को बैठे बिठाए बीजेपी पर कटाक्ष करने का मौका दे दिया। वहीं बीजेपी भी अपने बचाव में तर्क दे रही है।
वैसे अपने ही पार्टी के खिलाफ नंद कुमार साय ने ऐसा बयान पहली बार नहीं दिया है. सत्ता जाने के बाद कई मौकों पर वो प्रदेश नेतृत्व को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं। कुछ दिनों पहले ही साय ने आदिवासी अंचलों में बीजेपी को कमजोर बताया था। इसके अलावा संगठन के जनाधार को मजबूत करने के लिए बेहतर लीडरशीप की जरूरत बता चुके हैं। ऐसे में जब छत्तीसगढ़ में विपक्ष के तौर पर बीजेपी की कमजोर भूमिका के आरोप लगते रहे हैं, साय की साफगोई बीजेपी नेतृत्व को नई मुसीबत में डाल सकता है।