बिलासपुर। Pramukh swami maharaj centenary celebrations: गुरु घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय), गुजरात विश्वविद्यालय एवं बीएपीएस स्वामीनारायण शोध संस्थान नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में प्रमुख स्वामी महाराज के शताब्दी वर्ष समारोह पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन अहमदाबाद में किया गया। संगोष्ठी में 21 दिसंबर को गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के सशक्तिकरण में संतों की भूमिका पर प्रकाश डाला।
मंचस्थ अतिथियों में कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल सहित, बीएपीएस संत, मिलिंद कांबले, बिजय सोनकर शास्त्री, संजीव दांगी, पद्मश्री रविकुमार नारा और हिमांशू पंड्या उपस्थित रहे। सर्वप्रथम अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन किया गया। इसके बाद हिमांशू पंड्या ने स्वागत उद्बोधन एवं श्री मिलिंद कांबले ने उद्घाटन संबोधन दिया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता कुलपति चक्रवाल ने कहा कि मानव सेवा ही माधव सेवा है। हम सभी के जीवन के उद्देश्य सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय होना चाहिए। देश के मध्य प्रांत छत्तीसगढ़ में बाबा गुरु घासीदास ने लगभग ढाई सौ साल पहले मनखे-मनखे एक समान का सूत्र वाक्य दिया था जो हमारे संविधान, संयुक्त राष्ट्र संघ और मानवता की मूल भावना है। यदि हमें विश्व गुरु बनना है तो समरसता की भावना को आत्मसात करना होगा तथा मानव समाज में समानता का भाव पैदा करना होगा। संपूर्ण संत समाज और मानव एकात्मवाद के विचार में मानवता ही प्रमुख है।
GGU Bilaspur: कुलपति ने कहा कि स्वामीनारायाण संस्थान के प्रमुख स्वामी महाराज जी ने अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े और वंचित वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। हमारे संतों ने समाज में एकरूपता, समरसता और सकारात्मकता के लिए जीवंत संदेशों को प्रसारित किया। उन्होंने कहा कि यह हम सभी का कर्तव्य और दायित्व है कि बाबा गुरु घासीदास और प्रमुख स्वामी महाराज जी के बताये गये पथ पर चलकर समाज में व्याप्त किसी भी प्रकार के भेद, कुरीतियों और रूढ़ियों को जड़ से खत्म करें।
Pramukh swami maharaj centenary celebrations: कुलपति प्रोफेसर चक्रवाल ने सभागार में उपस्थित समस्त बौद्धिकजनों से आव्हान किया कि गुरु घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने बाबा गुरु घासीदास के जीवन दर्शन से जुड़ी विषयवस्तु को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाये जाने की पहल की है। इसी प्रकार समस्त संस्थान हमारे साधु, संतों एवं श्रेष्ठजनों के प्रेरक सादगीपूर्ण एवं सदगुणों से परिपूर्ण जीवन दर्शन को युवाओं तक पाठ्यक्र:म के माध्यम से पहुंचाएं ताकि युवा पीढ़ि को उनके आदर्श एवं प्रादर्श स्थापित करने में सहायता मिले। इस अवसर पर कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल का स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मान किया गया। अंत में अध्यवाद ज्ञापन ज्योर्तिंद्र दवे ने किया।