रायपुर: प्रदेश का आदिवासी समाज पिछले कुछ समय से अपनी मांगों को लेकर मुखर होकर सड़कों पर उतरने लगा है। सोमवार को ही सर्व आदिवासी समाज के नेतृत्व में अपनी बरसों पुरानी मांग। अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा कानून लागू करने और नक्सल समस्या का समाधान करने समते कुल 9 मांगों पर प्रदेश में दर्जनों जगह आर्थिक नाकेबंदी करते हुए अपनी एकता और ताकत दिखाने का प्रयास किया। जाहिर है इस आदिवासी प्रदर्शन से सियासी दल परेशान होंगे, क्योंकि ये वर्ग चुनाव में जिसके भी साथ गया वो सत्ता के करीब पहुंचेगा और जिससे दूर होगा उसके लिए खतरे की घंटी है। अब सवाल यही है कि आखिर क्यों आदिवासी समाज इतना आक्रोशित है?
प्रदेश के अलग-अलग जिलों की ये तस्वीरें सर्व आदिवासी समाज के नेतृत्व में बुलाई गई आर्थिक नाकेबंदी की है। सोमवार को आदिवासी समाज ने पेसा कानून लागू करने और नक्सल समस्या दूर करने समेत 9 सूत्रीय मांगों को लेकर 20 से ज्यादा जिलों में अपनी आवाज बुलंद की। हजारों की संख्या में आदिवासी सड़कों पर उतरे और चक्काजाम किया। इस दौरान सैकड़ों गाड़ियां अलग अलग जिले में घंटों तक जाम में फंसी रही। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार की तरफ से आवश्यक पहल नहीं होने तक आर्थिक नाकेबंदी जारी रहेगी।
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आदिवासी समाज की प्रमुख मांगों की बात करें तो बस्तर संभाग में नक्सल समस्या का स्थायी समाधान करने, पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में पेसा कानून लागू करने, 18 जनजातियों को जाति प्रमाणपत्र जारी करने, फर्जी जाति प्रमाणपत्रधारियों पर कार्रवाई करने और छात्रवृत्ति योजना के लिये आय सीमा ढाई लाख से बढ़ाकर 8 लाख करने सहित कई प्रमुख मागों को लेकर आदिवासी समाज ने प्रदेशव्यापी आर्थिक नाकेबंदी की। इस पर मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि प्रदर्शनकारियों में दो फाड़ जैसा देखने को मिल रहा है। हालांकि चौबे ने कहा कि आदिवासी समाज की मांगों पर संबंधित विभाग और मुख्यमंत्री विचार करेंगे। बीजपी ने भी सरकार से मांग की है कि आदिवासी समाज की मांगे जल्द पूरी की जाएं।
पहले सिलगेर और धर्मांतरण के मुद्दे पर प्रदर्शन और अब 9 सूत्रीय मांगों को लेकर आर्थिक नाकेबंदी। बीते कुछ समय से आदिवासी समाज लगातार लामबंद हो रहे हैं, अपनी ताकत दिखाई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आदिवासियों का हल्लाबोल आगामी चुनावों में सियासी दलों के लिए खतरे की घंटी साबित होगी? खास तौर पर सत्ता रुढ़ कांग्रेस के लिये जिसे 2018 में आदिवासियों ने एकतरफा वोट किया था।