नईदिल्ली। 2030 तक देश दुनिया की सड़कों पर पेट्रोल-डीजल की जगह ‘पानी’ से दौड़ती गाड़ियां हम देख सकते हैं, तेजी से बदलती इस दुनिया में कुछ भी संभव है। इस बात पर पक्के तौर पर भरोसा करना होगा। इन दो दशकों में ही कई चीजें अचानक से हमारे आंखों के सामने से गायब हो गई हैं, जिसकी कल्पना खुद हम नहीं करते थे। लैंडलाइन फोन, रोल वाले मैनुअल कैमरा, टेप रिकॉर्डर जैसी कई चीजें हैं जो अचानक से खत्म हो गईं। कुछ इसी तरह ऑटोमोबाइल की दुनिया में ऐसी गाड़ियां आ गई हैं जिसकी दो-तीन दशक पहले तक कल्पना भी नहीं की सकती थी।
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हम बात कर रहे हैं पेट्रोल-डीजल के विकल्प हाइड्रोजन ईंधन की, हमने हाइड्रोजन की जगह पानी शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया है क्यों कि इस गैस का सबसे बड़ा स्रोत पानी ही है, हम सभी विज्ञान की स्कूली किताबों में ही पढ़ चुके हैं कि पानी दो हिस्से हाइड्रोजन और एक हिस्सा ऑक्सीजन के मिश्रण से बना है। दुनिया में हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियों का न केवल सफल परीक्षण हो चुका है बल्कि कई कंपनियां इस ईंधन से चलने वाली गाड़ियां बनाने भी लगी हैं। उम्मीद की जा रही है कि अगले दशक तक पेट्रोल-डीजल के एक कारगर विकल्प के रूप में हाइड्रोजन का विकास हो सकता है।
हाइड्रोजन एक ऐसी गैस है जो मौजूदा प्राकृतिक गैस से 2.6 गुना अधिक ऊर्जा देता है, लेकिन दुर्भाग्य से यह इंजन बहुत कारगर नहीं हो पाया क्योंकि उस वक्त दोनों गैसों- ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का उत्पादन बेहद महंगा पड़ता था। जानकार भी नहीं बता रहे हैं कि भविष्य में कौन सा ईंधन सड़कों पर राज करेगा, दरअसल, जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल की महंगाई और उससे पैदा हो रहे प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया में वैकल्पिक ईंधन पर जोर दिया जा रहा है।
इसका एक सबसे उपयुक्त विकल्प बैटरी संचालित इलेक्ट्रिक कार है, लेकिन इस तकनीक की अपनी सीमाएं हैं, इस कारण इसे फिलहाल पूरी तरह से पेट्रोल-डीजल के विकल्प के तौर पर नहीं देखा जा रहा है।
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इस साल जनवरी से जून के बीच पूरी दुनिया में 20 लाख से अधिक इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री हुई, इसमें सबसे ज्यादा कार चीन और यूरोप में बिके हैं, वहीं दूसरी ओर हाइड्रोजन फ्यूल सेल कार की बिक्री केवल 8500 रही। दरअसल, हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाली कार भी एक तरह की इलेक्ट्रिक कार ही होती है। इसमें अंतर यह है कि हम जिस इलेक्ट्रिक कार की बात करते हैं उसमें बिजली, उसमें लगी बैट्रियों से मिलती है जबकि हाइड्रोजन ईंधन आधारित इंजन में कार इस गैस की मदद से खुद बिजली पैदा करती है।
हाल ही में दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी टोयोटा ने मिराई फ्यूल सेल कार (Mirai Fuel Cell Car) का परीक्षण किया जिसने केवल 5.7 किलो हाइड्रोजन में 1352 किमी की दूरी तय की।
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दरअसल, हाइड्रोजन कार के साथ सबसे बड़ी चुनौती हाइड्रोजन की उपलब्धता है, अभी तक हमारे पास जो तकनीक है उसके जरिए हाइड्रोजन बनाने का खर्च बहुत ज्यादा है, वरना, हमारे पास करीब दो सौ साल पहले से ही हाइड्रोजन आधारित इंजन की तकनीक है, लेकिन, अब स्थितियां बदल रही हैं, देश और दुनिया में नई तकनीक के जरिए हाइड्रोजन उत्पादन की लागत तेजी से घट रही है, यह मामला काफी कुछ इलेक्ट्रिक कारों जैसा है।
इलेक्ट्रिक कार में इस्तेमाल होनी वाली बैटरी की लागत बीते कुछ सालों में तेजी से घटी है, भारत में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने खुद पिछले दिनों घोषणा की थी कि इस दशक के अंत तक हाइड्रोजन उत्पादन लागत एक डॉलर प्रति एक किलो के स्तर पर आ जाएगी, अगर ऐसा होता है तो दुनिया की तस्वीर बदल जाएगी।
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